Maha Navami 2022: शारदीय नवरात्रा की महानवमी आज, जानिए देवीपीठ मंदिर की अनूठी प्रथा

कोटा: शारदीय नवरात्री (Navratri) की महानवमी आज है. शहर में स्थित देवीपीठ मंदिर (Devi Peeth temple) के अंदर ना प्रसाद और ना ही माला ले जाने की इजाजत है और यहां मंदिर के गर्भगृह में देश-प्रदेश में इस तरह की एकमात्र नीलधर भगवती विराजमान है. नीलधर भगवती के इस स्वरूप में देवी दशम् भुजाओं वाले रुप में होती है. 

आमतौर पर चराचर जगत में किसी भी देवीमंदिर में जाएंगे तो मां के अलग-अलग रूप देखने को मिलेंगे और आमतौर पर मां दुर्गा की अष्ठभुजा मुद्रा वाली मूर्ति मिलेगी. लेकिन वैदिक श्रीकुलम् शक्तिपीठ की अवधारणाएं देवी स्वरूप को लेकर अलग है. यहां मां भगवती दस भुजाओं के साथ नीलधर भगवती के रूप में विराजमान है. जिसके पीछे धारणा यह है कि अष्ठ भुजा में अलग-अलग यंत्रों और अस्त्र-शस्त्रों को धारण करने के अलावा भी देवी दुर्गा के दो अन्य स्वरूप है जो अंतरिक्ष भैरवी और पाताल भैरवी के रुप में है और इसीलिए इन सभी स्वरूपों को समाहित करके देवी दस भुजाओं के साथ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को धारण करके नीलधर भगवती स्वरूप में यहां विराजमान है.

माना जाता है कि देवी साधना के मोटे तौर पर दो कुल होते हैं- कलिकुलम् और श्रीकुलम्. इनमें से कलिकुलम् तामसिक् जबकि श्रीकुलम् पूरी तरह से सात्विक और वैष्णवी परंपराओं वाला कुल है. कोटा के स्टेशन क्षेत्र में बीते साल ही स्थापित श्रीकुलम् पीठ का राज्यपाल कलराज मिश्र ने उद्घाटन किया था. भक्तों का दावा है कि पीठ की माताजी नीति अम्बा बीते करीब 3 दशकों से सवा करोड़ रुद्र और देवी पाठों के साथ इस स्थान को सिद्व कर चुकी है और इस वक्त भी यहां अखंड जोत के साथ अनवरत पाठ जारी है. रसायन विज्ञान में एमएससी माताजी नीतिअम्बा ने श्रीकुलम् पीठ की स्थापना के साथ अपना जीवन नीलधर भगवती की भक्ति को ही समर्पित कर दिया है.

भोज्यशाला में निर्मित भोग ही चढ़ाने की इजाजत:

श्रीकुलम् शक्तिपीठ की खास बात यह भी है कि यहां केवल पीठ की रसोई की भोज्यशाला में निर्मित भोग ही देवी-देवताओं को चढ़ता है बाहर से ना प्रसाद और ना ही माला चढ़ाने की इजाजत है. मंदिर के गर्भगृह में नीलधरी भगवती के साथ लक्ष्मीनारायण और गौरीपुत्र के अलावा पंचमुखी गणेश की दक्षिण भारत के कसौटी पत्थर से निर्मित मंत्रसिद्व करके स्थापित की गई मूर्तियां श्रीकुलम् को और भी अद्भुत बनाती है.