राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा पर बोले अमित शाह, कहा-22 जनवरी का दिन ऐतिहासिक, राम के बिना देश की कल्पना नहीं

नई दिल्ली: लोकसभा में केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने संबोधन कहा कि हर चर्चा संविधान से बंधी होती है. आज मैं अपने मन और जनमानस की आवाज को रखूंगा. 22 जनवरी 2024 का दिन ऐतिहासिक है. 22 जनवरी का दिन समग्र भारत के लिए अहम है. 22 जनवरी 2024 आध्यात्मिक चेतना का दिन है. राम के बिना देश की कल्पना नहीं है. राम जनमानस के प्राण हैं. राम भारत और भारतीयता का प्रतीक है. राम लोगों के आदर्श हैं. रामायण से प्रेरणा ली जाती है. कई देशों ने रामायण को स्वीकार किया. 

500 साल के संघर्ष की जीत:
500 साल के संघर्ष की जीत है. देश में 330 साल के बाद कानूनी लड़ाई का अंत हुआ. अमित शाह ने कहा कि मैं आज अपने मन की बात और देश की जनता की आवाज को इस सदन के सामने रखना चाहता हूं. जो वर्षों से कोर्ट के कागजों में दबी हुई थी. मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उसे आवाज भी मिली और अभिव्यक्ति भी मिली. 22 जनवरी का दिन सहस्त्रों वर्षों के लिए ऐतिहासिक बन गया है. जो इतिहास और ऐतिहासिक पलों को नहीं पहचानते, वो अपने अस्तित्व को खो देते हैं. 22 जनवरी का दिन 1528 में शुरू हुए एक संघर्ष और एक आंदोलन के अंत का दिन है. 1528 से शुरू हुई न्याय की लड़ाई इस दिन समाप्त हुई. 

22 जनवरी का दिन आशा, आकांक्षा और सिद्धि का दिन:
22 जनवरी का दिन करोड़ों भक्तों की आशा, आकांक्षा और सिद्धि का दिन है. ये दिन समग्र भारत की आध्यात्मिक चेतना का दिन बन चुका है. 22 जनवरी का दिन महान भारत की यात्रा की शुरुआत का दिन है. ये दिन मां भारती विश्व गुरु के मार्ग पर ले जाने को प्रशस्त करने वाला दिन है. इस देश की कल्पना राम और रामचरितमानस के बिना नहीं की जा सकती. राम का चरित्र और राम इस देश के जनमानस का प्राण है।जो राम के बिना भारत की कल्पना करते हैं, वो भारत को नहीं जानते. राम प्रतीक हैं कि करोड़ों लोगों के लिए आदर्श जीवन कैसे जीना चाहिए, इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है.

कई भाषाओं, कई प्रदेशों और कई प्रकार के धर्मों में भी रामायण का जिक्र:
भारत की संस्कृति और रामायण को अलग करके देखा ही नहीं जा सकता. कई भाषाओं, कई प्रदेशों और कई प्रकार के धर्मों में भी रामायण का जिक्र, रामायण का अनुवाद और रामायण की परंपराओं को आधार बनाने का काम हुआ है. राम मंदिर आंदोलन से अनभिज्ञ होकर कोई भी इस देश के इतिहास को पढ़ ही नहीं सकता. 1528 से हर पीढ़ी ने इस आंदोलन को किसी न किसी रूप में देखा है. ये मामला लंबे समय तक अटका रहा, भटका रहा. मोदी जी के समय में ही इस स्वप्न को सिद्ध होना था और आज देश ये सिद्ध होता देख रहा है. 

मैं सभी योद्धाओं को विनम्रता के साथ करता हूं स्मरण:
अनेक राजाओं, संतों, निहंगों, अलग-अलग संगठनों और कानून विशेषज्ञों ने इस लड़ाई में योगदान दिया है. मैं आज 1528 से 22 जनवरी, 2024 तक इस लड़ाई में भाग लेने वाले सभी योद्धाओं को विनम्रता के साथ स्मरण करता हूं. 1990 में जब ये आंदोलन ने गति पकड़ी उससे पहले से ही ये भाजपा का देश के लोगों से वादा था. हमने पालमपुर कार्यकारिणी में प्रस्ताव पारित करके कहा था कि राम मंदिर निर्माण को धर्म के साथ नहीं जोड़ना चाहिए, ये देश की चेतना के पुनर्जागरण का आंदोलन है. इसलिए हम राम जन्मभूमि को कानूनी रूप से मुक्त कराकर वहां पर राम मंदिर की स्थापना करेंगे.