VIDEO: लोकसभा चुनाव 2024 का रण, 5 सीटें कांग्रेस के लिए बनी सिरदर्द, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: लोकसभा चुनाव के रण में जुटी कांग्रेस के लिए आधा दर्जन सीटों पर जीत का खाता खोलना बड़ा चैलेंज बन गया है. दौसा,चूरु,झालावाड़-बारां,बीकानेर और जालौर-सिरोही सीट पर लगातार कांग्रेस चुनाव हारती जा रही है. झालावाड़ सीट पर तो कांग्रेस पिछले 9 चुनाव से हार का मुहं देख रही है. शेष सीटों पर कांग्रेस तीन से चार चुनाव हार चुकी है.

लोकसभा चुनाव की रणभेरी बजने वाली है. कांग्रेस और भाजपा दोनों दल चुनावी तैयारियों में जुटे हुए हैं. बात कांग्रेस की करें तो दो चुनाव में एक भी सीट नहीं जीतने वाली कांग्रेस के सामने इस बार भी कईं बिग चैलेंज है. 25 में से 5 लोकसभा सीटों पर तो कांग्रेस जीत के लिए तरस चुकी है. इन सीटों की हार की गुत्थी कांग्रेस अभी तक नहीं सुलझा पाई है. हर प्रयोग कांग्रेस इन सीटों पर कर चुकी है पर जीत है कि एक सपना बन चुकी है.

बारां-झालावाड़ लोकसभा सीट-
इस सीट पर कांग्रेस पिछले 9 चुनाव से लगातार हारती जा रही है. पूर्व सीएम वसुधरा राजे पहले यहां लगातार 5 बार सांसद रही. तो वहीं 2004 से यानि पिछले चार चुनाव से उनके बेटे दुष्यंत सिंह यहां से लगातार सांसद है. बीजेपी ने एक बार फिर दुष्यंत सिंह को यहां से टिकट दे दिया है.

दौसा-
पूर्वी राजस्थान की यह सीट भी कांग्रेस के लिए चुनौती बनी हुई है. कांग्रेस 2009 से दौसा से चुनाव हार रही है. पिछले 3 चुनाव से कांग्रेस यहां हार का सामना कर रही है. लास्ट बार हरीश्चंद्रम मीणा यहां कांग्रेस से सांसद चुने गए थे. हालांकि पिछला चुनाव कांग्रेस यहां करीब 75 हजार से सबसे कम अंतर से हारी थी.

चूरु-
चूरु सीट पर भी कांग्रेस लगातार हार रही है. 2004 से कांग्रेस चूरु सीट पर लगातार शिकस्त खा रही है. यहां तक कि दिग्गज नेता बलराम जाखड़ भी चुनाव नहीं जीत पाए. पिछले दो चुनाव से लगातार बीजेपी से राहुल कस्वां सांसद है और उससे पहले उनके पिता रामसिंह कस्वां चुनाव जीतते गए.

बीकानेर-
बीकानेर सीट पर लास्ट बार कांग्रेस ने 1999 में जीत का स्वाद चखा था. 2004 से बीजेपी अब लगातार यहां चुनाव जीत रही है. 2004 में अभिनेता धर्मेन्द्र सांसद चुने गए थे. लास्ट तीन बार से केन्द्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल यहां से अब सांसद है.

जालोर-सिरोही-
जालोर-सिरोही सीट पर भी कांग्रेस जीत के लिए तरस चुकी है...पिछले चार चुनाव से भाजपा का यहां दबदबा बरकरार है. एक दौर था कांग्रेस का इस सीट पर जलवा होता था औऱ बूंटा सिंह जैसे दिग्गज चुनाव जीतते थे. लेकिन अब कांग्रेस के लिए यहां जीत दर्ज करना बड़ी चुनौती बन चुका है.

खास बात है कि इन सीटों को जीतने के लिए कांग्रेस ने खूब जतन किए. लेकिन लगातार निराशा ही हाथ लग रही है. दरअसल कांग्रेस की गुटबाजी, कमजोर प्रत्याशी और अन्य कईं कारणों के चलते कांग्रेस यहां हारती गई. पार्टी के थिंक टैंक और आला नेताओं ने भी यहां जीत के लिए कोई ज्यादा जतन नहीं किए.

कांग्रेस खेमें में इस बार भी कोई खास जतन इन सीटों को जीतने के नहीं देखे जा रहे. अगर मजबूत प्रत्याशी, सटीक जातिगत और सियासी समीकरण साधने औऱ ठोस बूथ मैनजेमैंट जैसे मसलों को हैंडल कर लिया जाए तो यकीनन कांग्रेस यहां करिश्मा कर सकती है. अब देखना होगा कि कांग्रेस इन सीटों पर हार के चक्रव्यूह तोडृने के लिए क्या स्टेप उठाती है या फिर एक बार महज चुनाव लड़ने के लिए ही लड़ेगी.

...फर्स्ट इंडिया न्यूज के लिए दिनेश डांगी की रिपोर्ट