भ्रष्टाचार मुक्त और गुड गवर्नेंस को लेकर भजनलाल सरकार गंभीर, अब भ्रष्ट, नॉन परफॉर्मर और कामचोर कार्मिकों को रवाना करेगी सरकार

जयपुर: अकर्मण्यता,संदिग्ध सत्यनिष्ठा,नाकारापन या अकार्यकुशलता के आधार सरकारी कर्मचारी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति मिल सकती है. मुख्य सचिव सुधांश पंत के हस्ताक्षर से कार्मिक विभाग की ओर से जारी आदेश में 15 साल की सेवा या 50 वर्ष की आयु वाले कर्मचारी को 3 माह के नोटिस या उसके स्थान पर तीन माह के वेतन,भत्तों के भुगतान के साथ अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा सकती है. इसमें अहम यह है कि मुख्य सचिव ने विभागों से इसकी कार्यवाही निर्धारित समय सीमा में पूरा करने, सीमा अनुसार बिंदुवार अपडेट सूचना हर माह विभाग को भेजना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. 

कार्मिक विभाग के 21 अप्रैल 2000 और इसके बाद के परिपत्रों अनुसार राजस्थान सिविल सेवा 1996 के नियम 53-1 में यह प्रावधान है कि जिन्होंने 15 साल की सेवा पूरी कर ली है या जो 50 वर्ष की आयु के हैं,ऐसे कर्मचारी को उसकी अकर्मण्यता या नाकारापन, संदिग्ध सत्यनिष्ठा, अक्षमता, अकार्यकुशलता या असंतोषजनक काम निपटारे के आधार पर तुरंत प्रभाव से सेवानिवृत्त किया जा सकेगा. 

क्या रहेगा अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आधार
-आदेश में बताया गया है कि पूर्व के परिपत्र और आदेश अनुसार  अकर्मण्यता या नाकारापन, संदिग्ध सत्यनिष्ठा, अक्षमता, अकार्यकुशलता या असंतोषजनक काम निपटारे वाले ऐसे कर्मी जो जनहित में जरूरी उपयोगिता खो चुका है उन्हें अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी जा सकेगी. 
उन्हें तीन माह के नोटिस या तीन माह के वेतन-भत्ते के भुगतान के साथ तुरंत राज्य सेवा से सेवानिवृत्त किया जा सकेगा. 

क्या होगी प्रक्रिया ? 
आदेश में कहा गया है कि इस बारे में 17.05.2018 का प्रशासनिक सुधार विभाग का आदेश, कार्मिक विभाग का 19.04.2006 का परिपत्र,वित्त नियम विभाग का 3.12.2002 का परिपत्र जारी हुआ है. इन आदेशों और परिपत्रों की पालना सुनिश्चित करने के बाद निर्धारित प्रक्रिया अपनाते हुए अनिवार्य सेवानिवृत्ति की कार्यवाही की जा सकेगी. 
इस आदेश में विभागाध्यक्षों को ये निर्देश दिए गए हैं कि सभी विभाग इस आदेश के अनुसार राज्य सेवा अधिकारियों/ कर्मचारियों की स्क्रीनिंग करके जनहित में अनिवार्य सेवानिवृत्ति की कार्यवाही तय समय सीमा में पूरा करना सुनिश्चित करेंगे. 
इसके साथ ही समय सीमा अनुसार बिंदुवार अपडेट सूचना हर माह कार्मिक विभाग को भेजना भी सुनिश्चित करना होगा. 

अभी तक विभागीय स्तर पर ऐसी कार्यवाहियों को लेकर समुचित रूप से डीओपी को जानकारी नहीं मिलती थी. वहीं इसमें विभागों के स्तर पर वैध प्रकरणों में अनावश्यक देरी की आशंका भी होती थी. ऐसे में अब इसे व्यवस्थित रूप देने की कोशिश की गई है.