राजस्थान में बढ़ रहा सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा, जानिए किन जिलों में बढ़ी हादसों में जान गंवाने वालों की संख्या

जयपुर: परिवहन विभाग के तमाम प्रयासों के बाद भी प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा है. इससे परिवहन विभाग के रोड सेफ्टी अभियान पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. करोड़ों रुपए का भारी भरकम बजट खर्च होने के बाद भी सड़क दुर्घटनाएं कम नहीं कर पाने से सड़क सुरक्षा और परिवहन विभाग पर सवालिया निशान लग रहा है. 

सड़क दुर्घटनाओं का दंश ऐसे तो पूरा देश झेल रहा है लेकिन बीते कुछ वर्षों से राजस्थान देश भर में सड़क दुर्घटनाओं में अग्रणी बना हुआ है. राज्य सरकार ने इस मानसा के साथ परिवहन विभाग का नाम बदलकर परिवहन और सड़क सुरक्षा विभाग किया था कि विभाग गंभीरता से सड़क हादसों को रोकने और काम करने के लिए प्रयास करेगा लेकिन परिवहन विभाग का यह नाम परिवर्तन सिर्फ खानापूर्ति बनकर रह गया है क्योंकि परिवहन विभाग ने सड़क दुर्घटनाओं को कम करने के लिए कोई ऐसा ठोस प्लान तैयार नहीं किया जिससे प्रदेश में सड़क हादसों में कमी आ सके और इन हादसों में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या भी कम हो सके.

 

परिवहन विभाग किलापरवाही का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक परिवहन विभाग के अधिकारियों का पद नाम परिवर्तित नहीं किया गया है. हैरानी की बात यह है की रोड सेफ्टी के नाम पर परिवहन विभाग के पास हर साल 100 करोड़ से अधिक का बजट है जो के नॉन लेप्सेबल है लेकिन बीते कई सालों से परिवहन विभाग इस बजट को पूरा खर्च तक नहीं कर पा रहा और उसका कारण यही है कि परिवहन विभाग के पास इस बजट को सही से खर्च करने के लिए कोई योजना नहीं है. इतना ही नहीं जी परिवहन विभाग के पास इस फंड को खर्च करने की जिम्मेदारी है. वह परिवहन विभाग अपने ही विभाग के आरटीओ और डीटीओ को इस फंड से बजट देने में कंजूसी कर रहा है. देश के कई ऐसे राज्य हैं जिन्होंने छोटे-छोटे प्रयास कर अपने राज्यों में सड़क हादसों की संख्या को सीमित किया है लेकिन राजस्थान में सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा न सिर्फ बढ़ता जा रहा है बल्कि बहुत भयावह होता जा रहा है.

- रोड सेफ्टी का बजट 100 करोड़ से अधिक का है.

- यह फंड लेप्स नहीं होता है.

- बीते 7 साल से पूरा पैसा खर्च नहीं हो रहा.

- परिवहन विभाग के जिन अधिकारियों पर सड़क सुरक्षा की जिम्मेदारी है उन्हें ही इस फंड से राशि देने में विभाग कंजूसी कर रहा है.

- DTO को एक साल में सिर्फ  2 लाख रुपये दिए जा रहे हैं. 

- RTO को एक साल में सिर्फ 5 लाख रुपये दिए जा रहे हैं. 

- इतनी कम राशि मिलने के कारण साल में एक बार ही सड़क सुरक्षा गतिविधि हो पाती है. 

सड़क हादसों को कम करने के लिए परिवहन विभाग के प्रयास प्रभावी नहीं है. यही कारण है कि प्रदेश में सड़क हादसे कम होने की वजह बढ़ते जा रहे हैं. अगर मौजूदा वर्ष की ही बात करें तो जून के महीने तक प्रदेश में पिछले साल की तुलना में सड़क दुर्घटना में जान गवाने वाले लोगों की संख्या में 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है. जिन जिलों में अभी तक सड़क दुर्घटनाएं कम हो रही थी उन जिलों में भी सड़क दुर्घटनाओं का आंकड़ा बढ़ गया है. परिवहन विभाग अभी भी परंपरागत तरीकों से सड़क दुर्घटनाओं को कम करने की कोशिश कर रहा है. यही कारण है कि परिवहन विभाग को सफलता नहीं मिल पा रही. 

अब आपको बताते हैं पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष जून तक किन जिलों में बढ़ा है सड़क हादसों में जान गंवाने वालों का आंकड़ा...

- जयपुर दक्षिण में 44 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है

- करौली में 60 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है

- जोधपुर पूर्व में 51 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है

- हनुमानगढ़ में 33 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है

- दौसा में 29 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है

- भिवाड़ी में 19 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है

- अलवर में 26 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है

सड़क हादसों में जान गंवाने वाले लोगों के आंकड़े इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि परिवहन विभाग का नाम परिवर्तन सिर्फ एक रस्म अदायगी ही साबित हुआ है. करोड़ों रुपए के भारी भरकम बजट के बावजूद विभाग सड़क हादसों को कम करने में पूरी तरह से विफल साबित नजर आ रहा है.