एक थी 'मछली': देश दुनिया में रणथंभौर का नाम करने वाली...सबसे उम्र दराज बाघिन, राजस्थान को दिए 60 फीसद बाघ

जयपुर: देश दुनिया में रणथंभौर का नाम करने वाली...दुनिया की सबसे उम्र दराज बाघिन. सर्वाधिक 11 बच्चों को जन्म देने वाली और जिसकी विश्व में सर्वाधिक फोटो खींची गई और तो और जिस पर बनी फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला हो उस बाघिन मछली की शुक्रवार को सातवीं पुण्यतिथि थी. 

रणथंभौर की बाघिन मछली 7 साल पहले 18 अगस्त के दिन इस दुनिया को छोड़ गई थी. मछली ने एक बार 10 फीट लंबे मगरमच्छ का शिकार किया था. 11 बच्चों की मां मछली को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिल चुका है. इतना ही नहीं सरकार ने इस बाघिन पर एक डाक टिकट भी जारी किया है. रणथंभौर क्वीन बाघिन 'मछली' की 7 साल पहले मौत हो गई. उसका जन्म 1997 में हुआ था. उसे मछली नाम दिए जाने के पीछे भी एक रोचक कहानी है. उसकी मां के चेहरे पर मछली के आकार का एक चिह्न था, इसलिए बाघिन को मछली नाम दिया गया. 

पार्क में बाघों की संख्या के 60 फीसदी हिस्से का संबंध उसके वंश से ही:
अपने शांत स्वभाव और कैमरे के प्रति विशेष लगाव के कारण मछली रणथंबौर नेशनल पार्क का वर्षों से प्रमुख आकर्षण का केंद्र रही है. यहां तक कि उसके नाम का फ़ेसबुक पेज भी रहा है. उसने 11 बाघों को जन्म दिया, जिनमें सात मादा और चार नर थे. इससे मछली के कुनबे में बढ़ोतरी हुई. पार्क में बाघों की संख्या के 60 फीसदी हिस्से का संबंध उसके वंश से ही है. मछली अपने शिकार के तरीकों, ताकत और कौशल से भी जानी जाती है. एक बार उसने 10 फीट लंबे मगरमच्छ का शिकार किया था. दरअसल, मगरमच्छ ने बाघिन के बच्चे पर हमला कर दिया था. दोनों के बीच जबर्दस्त टक्कर हुई और उसमें मछली को अपने कुछ दांत भी गंवाने पड़े. 

 

मछली को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिल चुका:
आखिरकार बाघिन ने इस विशाल मगरमच्छ को मौत के घाट उतार दिया. मछली अपने बच्चों को बड़े और खतरनाक जानवरों से बचाने के लिए भी मशहूर थी....11 बच्चों की मां मछली को लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड मिल चुका है. इतना ही नहीं सरकार ने इस बाघिन पर एक डाक टिकट भी जारी किया है. ट्रैवल टूर ऑपरेटरों के अनुसार, मछली से हर साल करीब 65 करोड़ रुपये का बिजनेस वन विभाग को मिलता था. 

दुनिया में सबसे ज्यादा फोटो मछली के खींचे गए:
बता दें कि दुनिया में सबसे ज्यादा फोटो मछली के खींचे गए हैं. एक रॉयल बंगाल टाइगर की उम्र 10 से 15 साल होती है. ऐसे में 20 साल की मछली वन विभाग की दया पर जी रही थी. चार में से दो शिकारी दांत पांच साल पहले ही टूट चुके थे, बचे हुए दो भी दो साल पहले गिर गए. वन विभाग उसे शिकार के रूप में बंधे हुए जानवर दे रहा था, जबकि कानूनन इस पर पाबंदी है, लेकिन मछली को जिंदा रखने के लिए यह जरूरी था. मछली की देखभाल के लिए एक गार्ड हमेशा मौजूद रहता था. 

नल्लामुथु और मछली के बीच एक अनूठा रिश्ता रहा:
मछली पर प्रख्यात फिल्मकार नल्लामुथु की बनाई फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है. नल्लामुथु और मछली के बीच एक अनूठा रिश्ता रहा. मुथु मछली के जीवन काल में अधिकांश समय उसके इर्द-गिर्द ही रहे. उन्होंने ऐसे ऐसे शॉट मछली पर फिल्माए जो अनदेखे और किसी अजूबे से कम नहीं थे. मछली की मौत के बाद तत्कालीन वन मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर में रणथंभौर में मछली मेमोरियल बनाने की घोषणा की थी. इस मेमोरियल का डिजाइन और स्थान भी फाइनल हो गया लेकिन आज तक इस मेमोरियल का निर्माण नहीं हो सका है. उम्मीद की जानी चाहिए कि अब जल्द ही मछली मेमोरियल का निर्माण होगा.