World Nature Conservation Day: कोरोना ने इंसान को सांसों की कीमत समझाई, प्रकृति संरक्षण की दिशा में हो ठोस कार्य

जयपुर: प्रकृति को सहेजना, संरक्षित करना और मानव-प्रकृति के ताने बाने को बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है, लेकिन विकास के नाम पर मानव ने प्रकृति पर्यावरण और वन्यजीवों का जो विनाश किया है. वो अकल्पनीय है. वैश्विक स्तर पर मानव की वजह से प्रकृति में एवं पर्यावरण पर दीर्धकालीन कुप्रभावों की छाप पड़ी है. कोरोना ने इंसान को सांसों की कीमत समझाई. इसलिए बेहतर होगा कि प्रकृति संरक्षण की दिशा में ठोस कार्य किए जाएं. आज प्रकृति संरक्षण दिवस है और कोरोना जैसी महामारी ने प्रकृति की अहमियत को मानव जाति के सामने एक बार फिर मजबूती से रखा है. प्रकृति का संरक्षण यानी स्वयं की सुरक्षा. ग्लोबल वार्मिंग, बुश फायर या जंगलों की आग, असामयिक बारिश तो कभी सूखा, कहीं बाढ़ तो कहीं भूकंप औऱ भूस्खलन, ग्लेशियर का पिघलना, अरावली जैसे प्राचीन पहाड़ों का विनाश, नदियों में जंगलों में अवैध खनन औऱ बड़े बड़े जंगलों को काट काट कर खत्म कर देना.

मानव जनित पर्यावरण के विनाश का परिचायक है. राजस्थान की बात करें तो यहां अदभुद वन वन्यजीव, रेत के धोरों से लेकर आरवली की सुरमई पहाड़िया, झरने, जल स्त्रोतों में पक्षियों का कलरव, नदियां, तालाब से लेकर पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देने वाली प्राकृतिक  संपदा है. राजस्थान के जंगल हमारी प्राकृतिक धरोहर हैं. लेकिन इसका विनाश करने में हमनें कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. बेतहाशा पेड़ों औऱ जंगलों को काटा गया, हालांकि जंगल केवल कागजों में ही बढ़ते रहे. अंधाधुंध वन्यजीवों का शिकार किया गया, लेकिन वन विभाग के आंकड़ों में वन्यजीवों का कुनबा बढ़ता चला गया. झीलों नदियों में दिन रात अवैध खनन होता रहा लेकिन सरकारी अधिकारी आंखे मूंदे रहे. घरों से निकलने वाले सीवरेज के नाले हमनें उन जल स्त्रोतों में छोड़ दीए जो हमारे पेयजल के स्त्रोत थे. झीलों में प्लास्टिक की बोतलें और गंदगी फेंकते हुए लोग देखे जा सकते हैं. एसी कमरों में बैठकर प्रकृति संरक्षण की योजनाएं बनती रही लेकिन धरातल पर शायद कुछ एक कामों को छोड़कर बाकी पूरे हो पाए हों. जंगलों को भी हंमनें अपने मनोरंजन का साधन समझ लिया. जंगलों के आसपास कुकरमुत्तों की तरह होटल, रिसोर्ट और रेस्टॉरेंट पनप गए जिनमें से कइयों के लिए तो हमनें नियम कायदों को भी ताक पर रख दिया. 

अरावली का सीना चीर कर उसमें होटल, निजी हवेलीयों से लेकर कच्ची बस्तियां तक पनप गई. लेकिन सरकारी महकमे की नींद नहीं उड़ी. जंगलों में बाहरी लोग बसते चले गए, और वन्यजीवों के आशियाने खत्म करते चले गए. और यदि कभी किसी वन्यजीव नें गलती से हमला कर दिया तो नेताओं से लेकर जंगलों पर अतिक्रमण करने वाले वन्यजीव को मारने पर उतारू हो गए. ये सब नतीजा है हमारे प्रकृति के साथ असंतुलन का. प्रकृति का विनाश करने वालों के मुकाबले प्रकृति का संरक्षण करने वालों की संख्या कम है. वहीं वोट बैंक पॉलिटिक्स के चलते नेताओं और रसूखदारों के लिए वन महकमा लीस्ट कंसर्नड डिपार्टमेंट है. 

वन्यजीव विशेषज्ञों नें बताया कि संरक्षण के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ नहीं होनी चाहिए. प्रकृति स्वयं अपने आप को संतुलित करना जानती है, इसके लिए प्राकृतिक वातावरण में मानवीय हस्तक्षेप बिल्कुल कम होना चाहिए. आज वर्ल्ड नेचर कंजरवेशन दिवस पर भी कई संगोष्ठियां हो जाएंगी ट्वीट हो जाएंगे, लेकिन वास्तविक संरक्षण के काम शायद ही हो पाएंगे. इसलिए बेहतर होगा कि पर्यावरण और प्रकृति को संरक्षित करने के लिए ठोस प्रयास किए जाएं. इस बार ट्री आउटसाइड फॉरेस्ट योजना सहित तमाम सकारात्मक पहल हुई है उम्मीद की जानी चाहिए कि यह पहल दीर्घकालिक सुखद परिणाम देने वाली साबित होंगी.