Bharat Jodo Yatra: बैलगाड़ी पर बैठकर राहुल गांधी ने दिया किसानों को संदेश, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: राजस्थान में राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा को एक हफ्ता हो चुका है ,राहुल गांधी ने पूरे 1 हफ्ते में राजस्थान के किसानों ,युवाओं और ग्रामीण अंचल तक अपना संदेश पहुंचाने का प्रयास किया. आज बैलगाड़ी चलाकर राहुल गांधी ने जताने की कोशिश है कि कांग्रेस और किसान की एक राशि है लेकिन समय काल और परिस्थिति ने कांग्रेस से किसान को दूर कर दिया. अब कांग्रेस फिर से इस परंपरागत वोट बैंक को साधने में जुट गई है . 

राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बैलगाड़ी पर क्या बैठे इतिहास सामने आ गया और आज की सियासत के मद्देनजर संदेश भी दूर तलक चला गया . यह बात कम लोगों को ही पता है कि आजादी के बाद 1952 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ था .कांग्रेस ने पहला चुनाव इसी चिह्न पर पंडित जवाहर लाल नेहरू की अगुवाई में लड़ा और सरकार बनाई. 1970-71 में कांग्रेस में विभाजन हुआ. पार्टी से अलग हुए मोरारजी देसाई, चंद्रभानू गुप्ता ने संगठन कांग्रेस बनाई. विभाजन होते ही चुनाव चिह्न ‘दो बैलों की जोड़ी’ विवादित हो गया तो चुनाव आयोग ने उसे सीज कर दिया. बाद में इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस को चुनाव चिह्न मिला ‘गाय और बछड़ा’.साल 1979 में कांग्रेस में एक और विभाजन हुआ और उसे चुनाव चिह्न मिला ‘हाथ का पंजा’. आज कांग्रेस का चुनाव चिन्ह हाथ ही है ,इस हाथ पर बनी लकीरों में जरूर कभी फर्क दिखा है मगर ये चुनाव चिन्ह ही अब कांग्रेस आई की पहचान है.राहुल गांधी ने किसानों की धरा राजस्थान में बैलगाड़ी पर बैठकर एक तीर से कई निशाने साधे है .

 -राजस्थान की राजनीति किसान आधारित रही है

- 200 विधानसभा सीटों में से तकरीबन सवा सौ सीटें ऐसी मानी जाती है जहां हार और जीत का फैसला किसान करते 

- जमींदारी सामंती प्रथा के खिलाफ कांग्रेस ने ही राजस्थान में किसानों के कंधे से कंधा मिलाकर हुंकार भरी थी

-चुनावों में राहुल गांधी ने राजस्थान की जमीन से ही किसान कर्ज माफी का ऐलान किया था

- गहलोत सरकार बनते ही इसकी शुरुआत किसान कर्ज माफी के वादे को पूरा करने से हुई थी

-अशोक गहलोत ने सरकार की पहली सालगिरह 'किसान शक्ति' के साथ मनाई थी

-राजस्थान की राजनीति किसान आधारित रही है. 200 विधानसभा सीटों में से तकरीबन सवा सौ सीटें ऐसी मानी जाती है जहां हार और जीत का फैसला किसान करते है. यहीं कारण है विधानसभा चुनाव से पहले राहुल गांधी ने किसान कर्ज माफी का ऐलान किया था. तीन राज्यों में सरकार बनी थी राजस्थान, एमपी और छत्तीसगढ़ में सरकार बनते ही किसान कर्ज माफी की घोषणा को पूरा किया. राजस्थान के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनते ही अशोक गहलोत ने तुरंत घोषणा की और किसान कर्जमाफी कर दी हालांकि बीजेपी लगातार आरोप लगा रही किसानों से किया गया वादा पूरा नहीं किया गया. राहुल गांधी अपनी राजस्थान यात्रा में ग्रामीण अंचल के किसानों से संवाद कर रहे और बीजेपी के आरोपों को झुठलाने में जुटे है . राहुल गांधी की सोच है कि किसान कौम हमेशा से राजस्थान में कांग्रेस की धुरी रही है यही कारण है कि बैलगाड़ी पर बैठकर राहुल गांधी ने फिर से उसी वोट बैंक को साधा जिसे चुनाव से पहले साधा गया था. राजस्थान मे कांग्रेस और किसान बीच का स्वर्णिम सियासी इतिहास है. जब भरी जाती थी जमींदारी प्रथा के खिलाफ हुंकार तब कांग्रेस की कोख से जन्म किसान नेताओं ने सामंती-जागीरदारी प्रथा के खिलाफ अलख जाई और किसान आंदोलन का सूत्रपात किया. कांग्रेस में किसान वर्ग से जुड़े नेताओं का इतिहास रहा है. सरदार हरलाल सिंह सबसे प्रखर अध्यक्ष साबित हुये और कांग्रेस को मजबूत बनाने का काम किया उनका ताल्लुक शेखावाटी से रहा देश के प्रखर किसान नेता नाथूराम मिर्धा ने दो बार पीसीसी चीफ का पद संभाला एक बार तो उन्हें चुनाव हारने के बाद पीसीसी का चीफ बनाया गया. शेखावाटी के रामनारायण चौधरी ने भी प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष संभाला ,वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रहे कद्दावर किसान नेता और मारवाड़ की धरती से ही निकले परसराम मदेरणा भी प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे मदेरणा के समय किसान पॉलिटिक्स को पोषण मिला. आगे चलकर शेखावाटी के ही नारायण सिंह पीसीसी चीफ रहे और बाद में डॉ चंद्रभान ने बतौर जाट नेता पीसीसी अध्यक्ष का कार्यभार संभाला. सरदार हरलाल सिंह,नाथूराम मिर्धा और परसराम मदेरणा ये वो चर्चित जाट अथवा किसान नेता रहे जो पीसीसी अध्यक्ष के तौर पर खासे पॉवरफुल साबित हुये,यूं कह सकते है कि सिद्धांतवादी पॉलिटिक्स इन्होंने की 1948 से लेकर अब तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष के पद को संभालने का अवसर 6 किसान नेताओं को मिल चुका है.

4 0 से 50के दशक के बीच जमींदारी प्रथा के खिलाफ राजस्थान में किसान आंदोलन का बिगुल बज गया था. मारवाड़ से लेकर शेखावाटी तक हर ओर सामंती-जागीरदारी प्रथा के खिलाफ किसान आंदोलन ने हिंलौरे लेना शुरु कर दिया था. देश को आजादी मिली तो आंदोलन को और धार मिल गई. उस समय देश की सबसे बडी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का भी आंदोलन के प्रति समर्थन आ गया. आगे चलकर 1952 के चुनावों मे किसान आंदोलन के प्रणेता कांग्रेस के साथ खड़े हो गये तो राजे-रजवाड़ो से निकले नेताओं ने अलग पार्टी का गठन कर लिया. किसान नेता आगे चलकर कांग्रेस पार्टी की बैक बॉन साबित हुये. इनमें सबसे प्रखर नाम रहा चौधरी बलदेव राम मिर्धा का किसान आंदोलन को ख्याति दिलाने में बलदेव राम मिर्धा का योगदान रहा धीरे-धीरे किसान और कांग्रेस की राशि साथ साथ दिखने लग गई. सरदार हरलाल सिंह,नाथूराम मिर्धा,कुंभाराम आर्य,दौलतराम सारण, शीशराम ओला,रामनारायण चौधरी,रामदेव सिंह महरिया,नारायण सिंह सरीखे दिग्गज नेताओं ने किसानों के बीच सामाजिक औऱ राजनीतिक चेतना की अलख जगाई. इन नेताओं का कांग्रेस पार्टी से जुड़ाव रहा.दो बैलों की जोड़ी से लेकर हाथ तक का सफर कांग्रेस का सफलताओं से भरा रहा है बीते कुछ सालों में कांग्रेस की जड़े हिली है , सवाल उठ रहे क्या बैलगाड़ी चुनावी नैया पार लगा सकती है क्या?