WHO के भारतीय कंपनी की दवाओं को लेकर आगाह करने के बाद CDSCO ने जांच की शुरू

WHO के भारतीय कंपनी की दवाओं को लेकर आगाह करने के बाद CDSCO ने जांच की शुरू

नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के गाम्बिया में 66 बच्चों की मौत के बाद एक भारतीय दवा कंपनी की चार दवाइयों को लेकर आगाह किए जाने के मद्देनजर केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने मामले की जांच शुरू कर दी है. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी.

‘डब्ल्यूएचओ मेडिकल प्रोडक्ट अलर्ट’ उन चार ‘घटिया उत्पादों’ के लिए जारी किया गया है, जिन्हें सितंबर 2022 में गाम्बिया में चिह्नित किया गया और डब्ल्यूएचओ को इसकी जानकारी दी गई. डब्ल्यूएचओ ने कहा कि घटिया चिकित्सकीय उत्पाद ऐसे उत्पाद हैं, जो अपने गुणवत्ता मानकों या विशिष्टताओं को पूरा नहीं करते.

साथ मिलकर मामले की जांच तत्काल शुरू कर दी:
ये चार उत्पाद भारतीय कंपनी ‘मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड’ द्वारा उत्पादित प्रोमेथाजिन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सिरप, मेकॉफ बेबी कफ सिरप और मैग्रिप एन कोल्ड सिरप हैं.

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने अभी तक केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के साथ उत्पादों का ‘लेबल’ और विवरण साझा नहीं किया है, जिससे पता लगाया जा सके कि उनका निर्माण कहां हुआ. उन्होंने बताया कि हालांकि उपलब्ध जानकारी के आधार पर सीडीएससीओ ने हरियाणा में नियामक अधिकारियों के साथ मिलकर मामले की जांच तत्काल शुरू कर दी है.

एथिलीन ग्लाईकॉल अस्वीकार्य मात्रा में मौजूद हैं:
एक अधिकारिक सूत्र ने कहा कि सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे. एक मजबूत नियामक प्राधिकरण के तौर पर डब्ल्यूएचओ से अनुरोध किया गया है कि वह मौत के मामलों से जुड़े कथित चिकित्सा उत्पादों के संबंध में एक रिपोर्ट और उत्पादों के लेबल/तस्वीरें आदि जल्द से जल्द सीडीएससीओ के साथ साझा करे. सूत्रों के अनुसार, डब्ल्यूएचओ ने 29 सितंबर को भारत के औषधि महानियंत्रक को सूचित किया था कि वह गाम्बिया को तकनीकी सहायता प्रदान कर रहा है. डब्ल्यूएचओ ने कहा कि चारों में से प्रत्येक दवा के नमूनों का प्रयोगशाला विश्लेषण पुष्टि करता है कि उनमें डायथाइलीन ग्लाईकॉल और एथिलीन ग्लाईकॉल अस्वीकार्य मात्रा में मौजूद हैं.

औषधि नियंत्रक के सहयोग से मामले की विस्तृत जांच शुरू की गई:
डब्ल्यूएचओ ने उत्पादों से जुड़े जोखिमों को रेखांकित करते हुए कहा कि डायथाइलीन ग्लाईकॉल और एथिलीन ग्लाईकॉल मनुष्यों के लिए घातक साबित हो सकते हैं. सीडीएससीओ ने कहा कि उसने राज्य नियामक प्राधिकरण के समक्ष मामला उठाया और सूचना मिलने के एक-डेढ़ घंटे के भीतर डब्ल्यूएचओ को जवाब दिया. सूत्रों ने बताया कि इसके अलावा, हरियाणा राज्य औषधि नियंत्रक के सहयोग से मामले की विस्तृत जांच शुरू की गई है.

गुणवत्ता का पता लगाने के लिए उनकी जांच करते हैं:
उन्होंने कहा कि प्रारंभिक जांच में पता चला है कि उक्त उत्पादों के निर्माण के लिए हरियाणा के सोनीपत की ‘मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड’ कंपनी ने राज्य दवा नियंत्रक से लाइसेंस लिया था और उसके पास इन उत्पादों के विनिर्माण की अनुमति थी. कंपनी ने अभी तक ये उत्पाद केवल गाम्बिया ही भेजे थे. सूत्रों के मुताबिक, दवाओं का आयात करने वाले देश उत्पादों के उपयोग को मंजूरी देने से पहले उनकी गुणवत्ता का पता लगाने के लिए उनकी जांच करते हैं.

उनका निर्माण कहां हुआ और उनका स्रोत क्या है:
उन्होंने बताया कि डब्ल्यूएचओ को मिले जांच के कुछ परिणामों के अनुसार, परीक्षण किए गए 23 नमूनों में से चार में डायथाइलीन ग्लाईकॉल और एथिलीन ग्लाईकॉल के अंश मौजूद थे.

डब्ल्यूएचओ ने भारत से कहा कि वह जल्द ही विश्लेषण संबंधी जानकारी साझा करेगा. सूत्रों ने कहा कि साथ ही डब्ल्यूएचओ द्वारा मौत के कारण की सटीक जानकारी अभी तक प्रदान नहीं की गई है, न ही सीडीएससीओ के साथ उत्पादों के ‘लेबल’ या अन्य विवरण साझा किए गए हैं, जिससे पता चल सके कि उनका निर्माण कहां हुआ और उनका स्रोत क्या है.

अन्य देशों में भी संभवत: वितरित किया गया:
इस बीच, डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस अदनोम गेब्रेयेसस ने बुधवार को पत्रकारों से कहा कि ये चार दवाएं ‘मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड’ द्वारा बनाए गए सर्दी एवं खांसी के सिरप हैं. डब्ल्यूएचओ भारत में कंपनी के अधिकारियों एवं नियामक प्राधिकारियों को लेकर आगे जांच कर रहा है. डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा कि ये उत्पाद अब तक केवल गाम्बिया में पाए गए हैं, लेकिन उन्हें अन्य देशों में भी संभवत: वितरित किया गया.

जिससे मरीज की जान भी जा सकती है:
डब्ल्यूएचओ ने एक परामर्श जारी कर कहा कि सभी देश इनसे होने वाले नुकसान से बचने के लिए इन उत्पादों की बिक्री पर रोक लगाएं. विश्व स्वास्थ्य निकाय ने कहा कि डायथाइलीन ग्लाईकॉल और एथिलीन ग्लाईकॉल से पेट दर्द, उल्टी, दस्त, मूत्र त्यागने में दिक्कत, सिरदर्द, मानसिक स्थिति में बदलाव और गुर्दे को गंभीर नुकसान हो सकता है, जिससे मरीज की जान भी जा सकती है. सोर्स-भाषा