VIDEO: BJP में नेताओं की वापसी पर अंदरूनी घमासान! अब भाजपा में वापसी के लिए बन गई नई कमेटी, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: भाजपा में नेताओं की एंट्री को लेकर अब अंदरूनी घमासान और तेज होना लगभग तय है. सूत्रों की माने तो एक धड़े ने आलाकमान तक एक विशेष रिपोर्ट को भिजवाया है. इन नेताओं की दलील ने और नई कमेटी गठन के बाद पार्टी में अंदरूनी घमासान और बढ़ सकता है. 

भारतीय जनता पार्टी में करीब 4 साल से लगातार पार्टी में फिर से शामिल होने वालों और कुछ अन्य नए नेताओं की एंट्री समय-समय पर होती रही है. इस दौरान वह नेता की मजबूती से एंट्री पा गए जिन्होंने कभी पार्टी के ही कैंडिडेट को हराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी. लेकिन पार्टी में नेताओं की एंट्री के साथ ही कुछ नाम बाकी थे जिनकी एंट्री को लेकर सुगबुगाहट भी होने लगी. अचानक जैसे ही देवी सिंह भाटी सुभाष महरिया समेत अन्य लोगों के नाम की चर्चा शुरू हुई तो पार्टी का अंदरूनी घमासान और तेज हो गया. इसी तरह से देवी सिंह भाटी की एंट्री की खबरें वसुंधरा राजे कैंप की तरफ से जब आने लगी तो केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और उनके कैंप में इस बात को लेकर सुगबुगाहट शुरू हुई.

करण साहब की पहले जब नेताओं की एंट्री हो गई तो वसुंधरा राजे कैंप भी अन्य कई नेताओं की एंट्री उसी तर्ज पर चाहता था.

इन तमाम चर्चाओं के साथ ही वसुंधरा राजे की बीकानेर यात्रा के दौरान जब देवी सिंह भाटी की भाजपा में एंट्री रुकी तो उसी के साथ ही भाजपा के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह का जयपुर आना हुआ.

अरुण सिंह के साथ अर्जुन राम मेघवाल और राजेंद्र राठौड़ की चर्चा भी हुई.

नतीजन भाजपा ने फैसला लिया कि अब नेताओं की भाजपा में एंट्री के लिए कमेटी बनाई जाएगी उस कमेटी की सिफारिश के आधार पर भाजपा प्रदेश नेतृत्व एंट्री की राह की हरी झंडी देगा.

लेकिन जैसे ही कमेटी बनी और कमेटी में अर्जुन राम मेघवाल अध्यक्ष बने इसी के साथ काम आसान और ज्यादा बढ़ा.

अब भाजपा के एक धड़े की दलील है कि जब पार्टी से बगावत करके पार्टी के कैंडिडेट को हराने वाले नेताओं की पहले ही एंट्री हो चुकी तो फिर अब कुछ बचे हुए नेताओं के एंट्री के लिए कमेटी क्यों बनाई गई है.

जिन नेताओं की भाजपा में एंट्री हुई वह नेता इस प्रकार है.

1- सुखराम कोली कभी भाजपा के विधायक रहे थे .लेकिन जब 2018 में उन्होंने बगावत करके चुनाव लड़ा और चुनाव हार गए. आरोप लगा कि उन्हीं की वजह से भाजपा के कैंडिडेट को हार मिली. लेकिन सुखराम कोली वापस भाजपा में आए और धौलपुर भाजपा के जिला महामंत्री भी बन गए.

2- लक्ष्मीनारायण दवे कभी वसुंधरा सरकार में वन मंत्री रहे लेकिन उनकी सीट जब परिसीमन में 80 सीट हो गई तो उन्होंने मारवाड़ जंक्शन से टिकट मांगा टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने बागी बन कर चुनाव लड़ा. चुनाव लड़ने के कारण कुछ ही वोट से भाजपा के कैंडिडेट केसाराम की हार हुई. लक्ष्मीनारायण दवे भी भाजपा में शामिल हुए.

3-  हेम सिंह भड़ाना वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे. लगातार तीन बार विधायक और एक बार मंत्री रहने के बाद जब वह थानागाजी से भाजपा प्रत्याशी नहीं बने तो बगावत कर के मैदान में उतर गए. हेम सिंह भडाना पर भी आरोप लगे कि उनकी बगावत से पार्टी के कैंडिडेट की हार हुई.

4- धन सिंह रावत वसुंधरा सरकार में संसदीय सचिव रहे 2018 में पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ा जीत नहीं पाए ऐसे में आरोप लगा कि उनकी वजह से पार्टी के कैंडिडेट की हार हुई और वह भी भाजपा में शामिल हुए.

5- जीवाराम चौधरी सांचौर से विधायक रहे थे. पार्टी के खिलाफ 2018 में उन्होंने भी चुनाव लड़ा. दलील दी गई कि यदि उनका टिकट नहीं कटता तो वह जीत जाते . कुल मिलाकर गुणा भाग में गणित कुछ भी रही हो लेकिन सीट कांग्रेस के खाते में चली गई समय के साथ ही वह भी पार्टी में शामिल हो गए.

6- अलवर के देवी सिंह शेखावत को वसुंधरा सरकार में एक राजनीतिक पद मिला था. और लगातार संगठन में काम कर रहे थे लेकिन टिकट नहीं मिलने के कारण निर्दलीय ताल ठोक दी. नतीजन इस सीट पर बीजेपी को हार मिली. आरोप इन पर भी बगावत के लगे लेकिन समय के साथ यह भी भाजपा में शामिल हो गए.

7- नवलगढ़ के विक्रम जाखल को पार्टी में कुछ ही दिन पहले शामिल किया गया है लेकिन आरोप इन पर भी है कि भाजपा की हार की वजह यह भी रहे.

8- फूलचंद भिंडा पार्टी के विधायक रहे थे लेकिन इस सीट पर कुलदीप धनकड़ ने बगावत ताल ठोक दी .उनके बागी बनने के साथ ही भाजपा के हाथ से यह सीट निकल गई कारण जो भी रहो. पार्टी के महामंत्री रहे कुलदीप धनकड़ पर आरोप लगा कि यदि यह निर्दलीय ताल नहीं ठोकते तो फूलचंद भिंडा जीत जाते. कुलदीप धनकड़ को भी भाजपा में शामिल किया जा चुका है.

9- घनश्याम तिवारी भले ही लंबे समय तक आर एस एस के प्रति निष्ठा रखे हुए थे . भाजपा में एक बड़ा नाम था. लेकिन समय के साथ तिवारी को भी भाजपा छोड़नी पड़ी . बाद में तिवारी कि भाजपा में एंट्री हुई और राज्यसभा सांसद की बने.

10- अभिषेक रावत जोकि ओबीसी मोर्चा के प्रदेश मंत्री हैं ब्यावर में पार्टी प्रत्याशी के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन पार्टी ने उन्हें भी वापस ले लिया.

11-  इसी कड़ी में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज रहे नटवर सिंह के पुत्र जगत सिंह जो भाजपा से विधायक थे लेकिन टिकट नहीं मिलने पर नाराज हुए और पार्टी छोड़ दी. लेकिन पार्टी ने जिला परिषद चुनाव से ठीक पहले उनकी एंट्री कराई और उन्हें सम्मानजनक पद भी दे दिया.

12- घनश्याम तिवारी ने जब पार्टी बनाई तो उनकी पार्टी में युवा टीम के अध्यक्ष रहे विमल अग्रवाल हवामहल सीट से विधानसभा चुनाव लड़े थे . पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ने के बाद भी उन्हें वापस शामिल किया गया और नगर निगम चुनाव में जीतकर भाजपा से पार्षद जी बन गए.

13- प्रभुदयाल सारस्वत बीकानेर ,रत्नाकुमारी विराटनगर ,देवेंद्र रावत अजमेर ,अजय सोनी राजसमंद ,महेंद्र सिंह भाटी जोधपुर, राजेश दीवाल जयपुर, प्रहलाद टॉक श्रीगंगानगर, समेत कई नेता भाजपा में शामिल हो चुके हैं.

यह तमाम चेहरे भाजपा में शामिल हुए हैं इनके अलावा भी कई अन्य नाम है जिनकी भाजपा में फिर से एंट्री हुई है. लेकिन कुछ अन्य नाम और है जिनकी आगामी दिनों में भाजपा में एंट्री की राह अब मुश्किल हो चुकी है.

यदि इन चेहरों पर गौर फरमाएं तो अपने-अपने क्षेत्रों के यह नाम इस प्रकार हैं.

1- कभी वसुंधरा राजे के खास सिपहसालार रहे और राजेंद्र राठौड़ के परम मित्र रहे सुभाष महरिया अटल बिहारी सरकार में केंद्र में मंत्री रहे थे भाजपा में बड़े जाट नेता के तौर पर मेहरिया का नाम रहा लेकिन समय के साथ भाजपा को उन्होंने भी टाटा कर दिया.
कांग्रेस में शामिल तो हुए लेकिन कहा जा रहा है इन दिनों उनका वहां मन नहीं लग रहा.
कहा जा रहा है कि मेहरिया फिर से भाजपा में आना चाहते हैं. शेखावाटी में बड़े जाट नेता के तौर पर उनका अभी नाम भी रहा था.

2- देवी सिंह भाटी के नाम को लेकर इन दिनों यह पूरी सियासत शुरू हुई है . देवी सिंह भाटी छह बार विधायक रहे हैं साथ ही मंत्री भी रहे लेकिन अर्जुन राम मेघवाल और भाटी की आपसी लड़ाई को हालात कह हुए की भाटी को भाजपा से बाहर आना पड़ा. वसुंधरा राजे की बीकानेर यात्रा के दौरान भाटी के भाजपा में एंट्री की खबरें लगातार चली लेकिन पार्टी में सहमति नहीं बनने के कारण भाटी की फिलहाल एंट्री रुक गई. और अब नेताओं की भाजपा में वापस से एंट्री के लिए नई कमेटी बनी जिस कमेटी के अध्यक्ष अर्जुन राम मेघवाल है. हालांकि बीकानेर संभाग में बड़े राजपूत नेता के तौर पर राजेंद्र राठौर का नाम शामिल है ऐसे में देवी सिंह भाटी की एंट्री को लेकर कई तरीके की चर्चाएं और भी हैं.

3- सुरेंद्र गोयल भाजपा में दो बार मंत्री रहे हैं लेकिन जैसे ही इस बार टिकट कटा वैसे ही उन्होंने पार्टी से बगावत कर दी अब सुरेंद्र गोयल भी भाजपा में वापस आने को बेकरार है. सुरेंद्र गोयल कैंप के लोग दलील देते हैं कि जब अन्य लोग शामिल हो गए तो वह क्यों नहीं ?

4-  इसी तरह राजकुमार रिणवा वसुंधरा सरकार में मंत्री रहे तीन बार विधायक भी रहे उन्होंने एक भूल ऐसी की कि उनका टिकट कट गया.
अपना धैर्य खोया और पार्टी से बगावत करके चुनाव लड़े लेकिन पार्टी से बाहर जाने पर कहीं भी मन नहीं लगा अब रिणवा और उनके समर्थक चाहते हैं कि वह वापस भाजपा में एंट्री करें.

5-  विजय बंसल भरतपुर के भाजपा के बेहद लोकप्रिय विधायक रहे हैं ऐसा नहीं कि वह एक या दो बार विधायक रहे हो पांच बार विधायक रहे विजय बंसल भाजपा से बाहर चले गए. पार्टी खिलाफ गतिविधियों का आरोप भी लगा लेकिन बंसल और उनके समर्थक चाहते हैं कि वह फिर से भाजपा में शामिल हो. विजय बंसल वसुंधरा राजे के आज भी करीबी नेताओं में एक माने जाते हैं.

7- दीनदयाल कुमावत फुलेरा से ताल ठोक चुके थे और नतीजन भाजपा को भले ही चुनावी हार नहीं मिली लेकिन नुकसान झेलना पड़ा था.
ऐसे में दीनदयाल कुमावत भी फिर से भाजपा में एंटी जाते हैं जो कि वसुंधरा राजे के करीबी नेताओं में से एक है.

8- हालांकि मानवेंद्र सिंह सरीखे नेता के भाजपा में आने की अटकलें और कयास लगाए जा रहे हैं. लेकिन मानवेंद्र सिंह फिलहाल राजस्थान सरकार में राजनीतिक पद पर हैं और उनकी तरफ से इस तरीके की कोई बात सामने नहीं आई है. हालांकि उनके समर्थक कुछ भी सोच है लेकिन मानवेंद्र सिंह फिलहाल खामोश है.

अब देखना यह बड़ा रोचक होगा कि आखिरकार एक कैंप जो यह दलील दे रहा है कि इससे पहले जिन नेताओं की भाजपा में एंट्री हुई वह भी तो पार्टी को नुकसान पहुंचा चुके थे . ऐसे में अब दूसरे अन्य नेताओं में कमेटी बनाकर दोगला व्यवहार क्यों किया जा रहा है.

बहरहाल तय सा लग रहा है कि आगामी कोर कमेटी की बैठक में अंदर खाने यह मुद्दा उठ सकता है . क्योंकि वसुंधरा राजे और प्रदेश अध्यक्ष दोनों अपनी अपनी दलील दे सकते हैं.

ऐसे में देखना होगा कि यदि कोर कमेटी में यह मुद्दा उठता है तो प्रदेश अध्यक्ष को इस मुद्दे पर कौन सहयोग देगा तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे को कौन सहयोग देगा.

क्योंकि कोर कमेटी में ज्यादातर सदस्यों की राय के आधार पर ही फैसले होते हैं.

करीब एक दर्जन अन्य नेता भी है जो भारतीय जनता पार्टी में एंट्री चाह रहे हैं. हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि कांग्रेस के कई बड़े नेता आगामी दिनों में बीजेपी में आने को आतुर है.

फिलहाल भले ही इन बातों में ज्यादा दम दिखाई नहीं दे लेकिन एक बात तो तय है कि आगामी दिनों में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों में आवक जावक लगी रहेगी.