स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस पर तेलुगू में बनी बायोपिक का 53वें IFFI में प्रदर्शन

गोवा: भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के शहीदों में से एक खुदीराम बोस पर तेलुगू में बनी एक बायोपिक को आज 53वें इफ्फी के इंडियन पैनोरमा खंड के तहत प्रदर्शित किया गया.

निर्देशक विद्या सागर राजू ने जब तीसरी बार फिल्‍म निर्देशक की भूमिका निभाने का मन बनाया, तो उन्‍होंने इस बायोपिक को बनाने का फैसला किया. इसका कारण बताते हुए उन्‍होंने कहा, "मैं चाहता हूं कि हर कोई खुदीराम के बारे में जाने."

इफ्फी के दौरान एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए निर्देशक विद्या सागर राजू ने कहा कि इस फिल्‍म की पटकथा तैयार करने से पहले उन्हें गहन शोध करना पड़ा. उन्‍होंने कहा कि खुदीराम का जीवन और काल स्वतंत्रता आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाओं और व्यक्तित्वों, जैसे बंगाल का विभाजन और रवींद्रनाथ टैगोर, स्वामी विवेकानंद, सिस्टर निवेदिता, बरेंद्रनाथ घोष और अन्य के साथ जुड़ा हुआ था. फिल्म में स्वतंत्रता संग्राम के बारे में कुछ कम ज्ञात तथ्य भी दिखाए गए हैं, जैसे खुदीराम का केस छह वकीलों ने लड़ा था. उस समय के जाने-माने वकील नरेंद्र कुमार बसु ने खुदीराम का केस लड़ा था, हालांकि वे इसे जीत नहीं पाए थे. इसमें दिखाया गया है कि भारत का पहला झंडा सिस्टर निवेदिता ने डिजाइन किया था और फिल्म में इसका बहुत ही महत्वपूर्ण प्लॉट है. इसमें 1906 में घटित एक अन्‍य महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना को भी प्रदर्शित किया गया, जब देश में पहली ध्वनि रिकॉर्डिंग की गई थी, जिसमें रवींद्रनाथ टैगोर ने वंदे गाया था.

विद्या सागर राजू ने कहा, “जब हमारी टीम ने खुदीराम का इतिहास पढ़ा, तो हमने पाया कि दिखाने के लिए बहुत कुछ था. "पटकथा हमें बंगाल में विभाजन की भयावहता तक ले जाती है, जिसमें अनेक ऐतिहासिक पात्र शामिल हैं. मैंने उनके जीवन पर आधारित फिल्‍म को थोड़ा विस्‍तृत बनाने की कोशिश की."

निर्देशक ने फिल्म को बढि़या बनाने का श्रेय फिल्‍म के अभिनेता, अभिने‍त्री और टीम के अन्‍य सदस्‍यों को दिया. उन्होंने कहा, इसमें काम करने वाले वरिष्ठ तकनीशियन जानते थे कि पटकथा को कैसे जीवंत किया जाए. वे फिल्म के पीछे से काम करते हैं, लेकिन मेरे लिए वे सर्वप्रथम हैं.

नवोदित अभिनेता राकेश जगरलामुदी, जिन्होंने खुदीराम बोस की भूमिका निभाई है, उन्होंने अपनी पहली फिल्म में एक स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका निभाने में सक्षम होने पर प्रसन्नता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक चरित्र के वास्तविक जीवन का किरदार निभाना उनके लिए थोड़ा चुनौतीपूर्ण था, लेकिन टीम के सहयोग ने इसे आसानी से करने में मदद की. राकेश ने कहा, विवेक ओबेरॉय, अतुल कुलकर्णी, नसीर और अन्य वरिष्ठ अभिनेताओं के साथ काम करना एक नवोदित अभिनेता के लिए सीखने का एक समृद्ध अनुभव था.

विद्या सागर राजू ने कहा, फाइन-ट्यूनिंग, निपुणता, सूक्ष्‍म विवरण, संस्कृति और पात्रों को अपनाना फिल्म निर्माण के महत्वपूर्ण तत्व हैं. क्षेत्रीय फिल्मों के बारे में उन्होंने कहा, "दुनिया भर में सभी भावनाएं समान हैं इसलिए क्षेत्रीय फिल्में भी अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को आकर्षित करती हैं."

निर्देशक ने कहा कि जब देश, "आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, तो हमने अपने महान स्वतंत्रता सेनानियों पर एक फिल्म बनाने के बारे में सोचा. फिर हमने खुदीराम बोस पर फिल्म बनाने की अपनी यात्रा शुरू की."

यह फिल्म सात भारतीय भाषाओं में रिलीज होगी. खुदीराम बोस पर फिल्म बनाने वाली टीम ने कहा कि वह संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान इस फिल्म के हिंदी संस्करण को प्रदर्शित करने की योजना बना रही है.