बेबुनियाद आपराधिक आरोप प्रतिष्ठा को कलंकित करते हैं; न्यायिक राहत से चरित्र हानि की भरपाई नहीं हो सकती : अदालत

मुंबई: “बेबुनियाद आपराधिक आरोप प्रतिष्ठा को कलंकित करते हैं और बदनामी का कारण बनते हैं. चरित्र हानि या प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान को कानूनी राहत से भी बहाल नहीं किया जा सकता है.” बंबई हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने एक महिला न्यायिक अधिकारी के खिलाफ उसकी भाभी द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की.

न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई और न्यायमूर्ति आर एम जोशी की खंडपीठ ने सात जनवरी को पारित आदेश में कहा कि किसी व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 और 19 (2) का एक एकीकृत हिस्सा माना जाता है. खंडपीठ ने शेक्सपीयर को उद्धृत करते हुए कहा, “किसी महिला या पुरुष द्वारा कमाई गई ख्याति उसका असल गहना है. जो मेरा बटुआ चुराता है, वह असल में कबाड़ चुराता है. हजारों लोग इसी ख्याल के अधीन रहते हैं कि कल मेरे पास कुछ था, आज कुछ नहीं, यह मेरा नसीब है और यह उसका. लेकिन जो मुझसे मेरा अच्छा नाम और ख्याति छीनता है, वह मुझसे मेरी वह चीज छीन लेता है, जिस से वह तो अमीर नहीं होता, लेकिन वास्तव में मुझे जरूर कंगाल कर देता है.”

हाई कोर्ट 40 वर्षीय महिला न्यायिक अधिकारी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उसने मानसिक और शारीरिक यातना के आरोप में उसकी 30 साल की भाभी की ओर से नवंबर 2019 में जलगांव थाने में दर्ज कराई गई प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी. याचिकाकर्ता के भाई (शिकायकर्ता का पति) और माता-पिता (शिकायकर्ता के सास-ससुर) के खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी. हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता शादीशुदा है और शिकायकर्ता के साथ नहीं रहती है.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता को वैवाहिक विवाद में ‘घसीटते’ हुए आरोप लगाया गया कि उसने सबके लिए खाना ऑर्डर किया था, लेकिन शिकायतकर्ता से खुद के लिए भोजन बनाने को कहा था, उसने शिकायकर्ता से अपने माता-पिता के खिलाफ ऊंची आवाज में बात न करने और अपने तौर-तरीके बदलने को कहा था. अदालत ने कहा, “उपरोक्त आरोपों को भले ही उसी स्वरूप में लिया जाए और पूरी तरह से स्वीकार कर लिया जाए, तो भी याचिकाकर्ता के खिलाफ जांच को न्यायोचित ठहराने वाला कोई अपराध नहीं बनता है.”

चरित्र हानि या प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान को कानूनी राहत से भी बहाल नहीं किया जा सकता:
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इस बात पर गौर फरमाना जरूरी है कि बेबुनियाद आपराधिक आरोप और लंबी आपराधिक कार्यवाही के गंभीर परिणाम हो सकते हैं. उसने कहा, “इस तरह की मुकदमेबाजी से व्यक्ति को अत्यधिक मानसिक आघात, अपमान और वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ता है. बेबुनियाद आरोप पेशेवर तरक्की और भविष्य की संभावनाओं पर भी गंभीर प्रभाव डाल सकते हैं.” पीठ ने कहा, “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बेबुनियाद आरोप प्रतिष्ठा को कलंकित करते हैं, बदनामी का कारण बनते हैं और दोस्तों, परिजनों व सहकर्मियों के बीच व्यक्ति की छवि खराब करते हैं. इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि चरित्र हानि या प्रतिष्ठा को पहुंचे नुकसान को कानूनी राहत से भी बहाल नहीं किया जा सकता है.” सोर्स- भाषा