VIDEO: राजधानी के जेएलएन मार्ग की 200 फीट पट्टी का मामला, पिछले 23 सालों से यह बना हुआ है एक सुलगता सवाल, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: राजधानी की सबसे वीआईपी सड़क माने जाने वाले जवाहरलाल नेहरू मार्ग के दोनों तरफ की 200 फीट पट्टी का मामला 23 वर्ष बीतने के बाद भी एक सुलगते सवाल की तरह है. सुलगता सवाल इसलिए कि इस मसले को हल करने के बजाए लगातार टाला जा रहा है. अगर जेडीए और राज्य सरकार इच्छा शक्ति दिखाए तो यह मामला जेडीए का खजाना भर सकता है. 

सांगानेर स्थित अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के इस पहुंच मार्ग जवाहरलाल नेहरू मार्ग के नियोजित विकास को ध्यान में रखते हुए सड़क किनारे दोनों तरफ दो सौ फीट पट्टी आरक्षित की हुई है. जवाहरलाल नेहरू मार्ग पर महावीर पार्क से लेकर जवाहर सर्किल तक दोनो तरफ दो सौ फीट चौड़ी पट्टी निर्धारित करने के पीछे राज्य सरकार की मंशा इस महत्वपूर्ण सड़क को ध्यान में रखते हुए विकास को बढ़ावा देना है. लेकिन सालों बीतने के बावजूद सरकार की यह मंशा पूरी नहीं हो पा रही है. आपको सबसे पहले बताते हैं कि पूरा माजरा क्या है और मामला लटकने के कारण क्या समस्याएं सामने आ रही हैं.

- नगरीय विकास विभाग ने 15 जनवरी 2002 को एक आदेश जारी किया था

-इस आदेश के तहत सरकार ने कॉलोनियों नियमन की नीति लागू की थी

-जवाहरलाल नेहरू मार्ग के दोनाें तरफ बसी कॉलोनियों के नियमन के लिए नीति लागू की थी

-इसके मुताबिक नियमन के लिए 200 फीट पट्टी के लिए भूमि छोड़ना अनिवार्य किया गया

-गृह निर्माण सहकारी समितियों की कॉलोनियों की जो भूमि इस पट्टी के लिए समर्पित होगी

-नि:शुल्क समर्पित की जाने वाली इस भूमि की गणना सुविधा क्षेत्र में ही की जाएगी

-जितनी भूमि जेएलएन मार्ग की 200 फीट पट्टी के लिए समर्पित की जाएगी  

-जरूरी 40 प्रतिशत सुविधा क्षेत्र की गणना में उसे घटाया जाएगा

-इस आदेश के मुताबिक अवाप्तशुदा भूमि के लिए और

-अवाप्ति से बाहर की भूमि के लिए भी नियमन की दरें निर्धारित की गई थी

-इस आदेश को जारी किए हुए 23 साल से अधिक समय हो चुका है

-महालक्ष्मी नगर, गोकुल वाटिका, काला कॉलोनी, शक्ति नगर, आदिनाथ नगर आदि का ही नियमन हो पाया है

-इनसे समर्पित भूमि में से फाेर्टिस अस्पताल,वर्ल्ड ट्रेड पार्क व जेनपेक्ट आदि को जेडीए ने भूमि आवंटित की

-लेकिन श्री विहार,पंचशील एनक्लेव,लाल बहादुर नगर आदि कॉलोनियों का नियमन अब तक नहीं हुआ है

-इस असमंजस की स्थिति का फायदा उठाते हुए इस पट्टी की भूमि पर कब्जा करने की आए दिन शिकायतें आती है

-हाल ही पंचशील एनक्लेव की इस पट्टी में 12 हजार वर्गगज भूमि पर कब्जे का मामला सामने आया था

-कॉलोनी की शिकायत पर जेडीए ने वहां से कब्जा हटाया

पिछले 23 साल में मामले में ठोस कार्यवाही नहीं होने से जहां कॉलोनियों का नियमन नहीं हो पा रहा है. वहीं यहां की बेशकीमती भूमि भी जेडीए को विधिक रूप से नहीं मिल पा रही है. मामले में किस तरह से निकाला जा सकता है समाधान? किस तरह पिछले 23 साल से सुलगते इस सवाल का जवाब ढूंढा जा सकता है. इसको लेकर फर्स्ट इंडिया न्यूज ने जेडीए और नगर नियोजन से जुड़े विशेषज्ञों से गहन चर्चा की. आपको बताते हैं कि विशेषज्ञों के अनुसार इस मामले का क्या है समाधान और इस समाधान से किस तरह जेडीए के खजाने में एक हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि आ सकती है. 
-विशेषज्ञों के अनुसार जेडीए को समर्पित की जा चुकी भूमि को लेकर योजना तैयार की जानी चाहिए

-इस भूमि का भू उपयोग संस्थानिक व व्यावसायिक है

-जवाहरलाल नेहरू मार्ग के महत्व को देखते हुए भूमि की व्यावसायिक नीलामी की जा सकती है

-जिन कॉलोनियों का नियमन नहीं हुआ है,उनके नियमन के लिए जेडीए को शिविर लगाने चाहिए

-नियमन में आ रही तकनीकी व कानूनी अड़चनों को त्वरित गति से दूर किया जाना चाहिए

-विशेषज्ञों का मानना है कि इस नियमन से जेडीए को 50 हजार से 70 हजार वर्गमीटर भूमि मिल सकती है

-इस भूमि की नीलामी से बाजार भाव के अनुसार जेडीए के खजाने में 1 हजार करोड़ से अधिक राशि आ सकती है

-विशेषज्ञों की मानें तो इस दो सौ फीट पट्टी की भूमि पर अगर सोसायटी ने पट्टे काट रखे हैं
-और सोसायटी के इन भूखंडधारियों की सूची वर्ष 1999 की कट ऑफ डेट से पहले जेडीए में जमा है

-इन भूखंडधारियों के पक्ष में भूमि का नियमन किया जा सकता है

-नियमन के बदले इन भूखंडधारियों से जेएलएन मार्ग की आरक्षित दर या उससे अधिक राशि ली जा सकती है

-विशेषज्ञ कहते हैं कि मामले का हल मौजूदा मंत्री शांति धारीवाल के कार्यकाल में निकल सकता है

-इसके पीछे वजह है कि शांति धारीवाल तीसरी बार नगरीय विकास मंत्री हैं

-अपने लबे अनुभव और विषय की समझ के चलते धारीवाल शहरी विकास के मामले में खुद बहुत बड़े विशेषज्ञ हैं 

जवाहरलाल नेहरू मार्ग के इस दो सौ फीट पट्टी को लेकर जल्द समाधान नहीं निकाला गया तो यहां बेतरतीब अवैध निर्माण होने की पूरी संभावना है. जिसके चलते जेडीए के पास फिर भविष्य में इनको नियमित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा. इससे एक तरफ जहां जेडीए के हाथ से यहां की बेशकीमती भूमि निकल जाएगी, वहीं यहां के नियोजित विकास को भी धक्का लगेगा.