जयपुर: आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग को केंद्र सरकार ने ज़ोर शोर से आरक्षण की घोषणा की थी लेकिन आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लिए लागू की गई शर्तें ऐसी है कि राज्य में तो इस वर्ग को फ़ायदा मिल पा रहा है लेकिन केन्द्र की सरकारी नौकरियों से यह वर्ग अछूता ही रह रहा है यहाँ तक कि EWS सर्टिफ़िकेट बनने में भी आंकड़ों का अंतर साफ़ तौर पर देखा जा सकता है ऐसे में क्षात्र फ़ाउंडेशन सहित कई संगठन आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग कि इस विसंगति को लेकर लगातार सरकार का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं.
दरअसल जब आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किया गया तो पहले राज्य में भी EWS में विसंगतियां थी जिसको लेकर लगातार माँग के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वाली सरकार ने छूट दी और इसका लाभ यहाँ के अभ्यर्थियों को मिला लेकिन केन्द्र सरकार में ऐसा नहीं हो पाया. दरअसल इसके पीछे दोनों सरकारों के EWS श्रेणी के प्रमाण पत्र बनवाने के लिए तय अलग अलग मापदंड है . राज्य सरकार जहाँ 8 लाख रुपये तक की सालाना आय वालों को EWS का पात्र मानती है वहीं केंद्र सरकार ने भूमि और संपत्ति की सीमा तय कर रखी है राजस्थान जैसे भौगोलिक प्रदेश में सम्पत्ति की ये सीमा अभ्यर्थियों के लिए मुसीबत साबित हो रही है मसलन ज़मीन के नाम पर रेत का टीला भी है तो उसे सर्टिफ़िकेट नहीं मिल पाता ऐसे में छात्र फ़ाउंडेशन लगातार इसके लिए आंदोलनरत है भाजपा के नेताओं से लगातार संघ के प्रतिनिधिमंडल मुलाक़ात कर रहे हैं शास्त्र फ़ाउंडेशन जुड़े जुड़े नवीन सिंह तोमर कहते हैं कि केंद्र सरकार की मंशा का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
राजस्थान में असिंचित भूमि के मालिक के पास आय का कोई साधन नहीं होता , जबकि वह केन्द्र के मापदंड के अनुसार आर्थिक रूप से सक्षम हो जाता है और पात्र नहीं रहता . यही वजह है कि बीते वित्तीय वर्ष में प्रदेश में राज्य सरकार की नौकरियों के लिए ईडब्ल्यूएस के 2 लाख 77 हजार से ज्यादा प्रमाण पत्र बनाए गए . जिसे युवाओं ने सरकारी नौकरी और इस श्रेणी के आरक्षण का लाभ लेने के लिए काम में लिए . वहीं दूसरी तरफ केन्द्र सरकार की नौकरियों के लिए महज 95 हजार प्रमाण पत्र ही जारी हो पाए है
दरअसल ईडब्लूएस का लाभ चाहने वाले अध्ययनरत विद्यार्थी भी इसे एक बड़ी विसंगति बताते हैं वो कहते हैं कि राजस्थान में किसी के पास पाँच एकड़ ज़मीन के नाम पर आप सिंचित भूमि है या रेत का टीला है तो उसे भी इसका लाभ नहीं मिलेगा जबकि आर्थिक तौर पर उसका कोई फ़ायदा से नहीं होता है दाम भी कौड़ियों के भाव होते हैं ऐसे में इन लोग माँग कर रहे हैं कि केंद्र सरकार संपत्ति की सीमा को हटा लें ताकि वास्तव में आर्थिक आधार पर जरूरतमंदों को आरक्षण मिल सके.
दरअसल जिला बार हम नज़र डालें है कि किस तरह से राज्य सरकार और केंद्र सरकार की ईडब्लूएस प्रमाण पत्रों के बनने के आंकड़ों में अंतर है तो भी यह समझ जाता है कि केंद्र सरकार में इसका लाभ न के बराबर ही मिल पा रहा है आइए डालते हैं जिलावार ईडब्लूएस प्रमाण पत्रों पर एक नज़र
जिला राज्य केन्द्र
जयपुर 32469 15474
बीकानेर 10335 2946
अजमेर 7569 1158
बांसवाड़ा 1448 161
बारां 3351 757
बाड़मेर 7703 1304
भरतपुर 12984 7554
भीलवाड़ा 10010 1114
बूंदी 5009 746
चित्तोड़गढ़ 6268 619
चुरू 13521 2035
दौसा 13427 5387
धौलपुर 9618 4921
डूंगरपुर 2446 328
हनुमानगढ़ 6934 1483
जैसलमेर 5522 438
जालौर 4744 1170
झालावाड़ 3836 1152
झुंझुनूं 6574 4904
जोधपुर14081 3297
करौली 9259 3916
कोटा 6647 1326
नागौर14342 4062
पाली 6693 832
प्रतापगढ़ 854 107
राजसमंद 3669 185
सवाईमाधोपुर 8142 2728
सीकर 13520 8165
सिरोही 3063 476
श्रीगंगानगर 5970 2204
टोंक 8386 1498
उदयपुर 6482 703
केन्द्र सरकार के मापदंडों में विसंगतियों को दूर कर प्रदेश सरकार के तय मापदंड अपनाने की मांग लम्बे समय से राजस्थान के आर्थिक आधार पर पिछड़ेक युवा कर रहे है . राजस्थान सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का लाभ लेने के लिए अचल सम्पत्ति संबंधी प्रावधान समाप्त किया है . वार्षिक आय को ही आधार माना गया है . राज्य सरकार ने नियमों में बदलाव कर सर्टिफिकेट की वैधता एक साल से बढ़ाकर तीन साल कर दी है . यानि सर्टिफिकेट जारी होने की तिथि से तीन साल तक वैध रहेगा वही केंद्र सरकार ने इस तरह की कोई भी छूट अभी तक नहीं दी है जिसके चलते कुछ संगठन इस माँग को पुरज़ोर तरीक़े से उठा रहे हैं चुनावी साल में ये माँग भाजपा की कोर वोट बैंक को भी प्रभावित कर सकती है