VIDEO: डॉक्टर चाहते 'House Cum Hospital' ! नौकरी चाहिए सरकारी, मन में प्राइवेट प्रेक्टिस, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर:  राइट टू हेल्थ को लेकर खड़ा हुआ विवाद अभी शांत भी नहीं हुआ और मेडिकल टीचर्स ने फिर से नया आंदोलन शुरू कर दिया है.इस बार आंदोलन की वजह है परामर्श शुल्क में बढ़ोत्तरी समेत दस सूत्री मांग पत्र.चिकित्सक चाहते है कि उनकी न सिर्फ घर पर मरीज देखने की फीस दोगुना तक बढ़ाई जाए, बल्कि उन्हें प्राइवेट प्रोसिजर यानी ऑपरेशन भी अलाउ किए जाए.ज्वाइंट एक्शन कमेटी के आह्वान पर सभी सरकारी मेडिकल कॉलेज की फैकल्टी ने आज से काली पट्टी बांधकर आंदोलन का आगाज किया है.साथ ही चेतावनी भी दी है कि यदि सांकेतिक आंदोलन से बात नहीं बनी तो वे फिर से कार्यबहिष्कार की राह पर आएंगे. धरती का भगवान यानी चिकित्सकों ने एकबार फिर आंदोलन का बिगुल बजाया है.चिकित्सकों का तर्क ये है कि वर्ष 2011 में सरकार ने घर पर मरीज देखने की फीस निर्धारित की थी, जो अभी तक जस की तस है.जबकि महंगाई की मार से कोई भी सेक्टर अछूता नहीं है.ऐसे में ज्वाइंट एक्शन कमेटी के आह्वान पर सभी मेडिकल टीचर्स एक मंच पर आए है और परामर्श शुल्क में बढ़ोत्तरी समेत दस सूत्री मांगों को लेकर आंदोलन शुरू किया है.सेवारत चिकित्सक संघ ने भी मांगों का समर्थन किया है.

ये है परामर्श शुल्क का गणित:  

चिकित्सकमौजूदा शुल्क शुल्क बढ़ोत्तरी की मांग
सहायक प्रोफेसर100 रुपए200 रुपए
एसोसिएट प्रोफेसर125 रुपए 300 रुपए
प्रोफेसर150 रुपए400 रुपए
सीनियर प्रोफेसर  200 रुपए500 रुपए

ये भी है मेडिकल टीचर्स की मांग:
- राजस्थान मेडिकल एजुकेशन सर्विसेज का पृथक कैडर का गठन
- DGME और निदेशक के पद पर वरिष्ठ चिकित्सक शिक्षक को लगाया जाए
- सीनियर प्रोफेसर के बाद हायर एडमिनिस्ट्रेटिव ग्रेड पद पर एक और प्रमोशन
- सातवें वेतन आयोग में PAY FIXATION में NPA लेने और नहीं लेने वाले समकक्ष चिकित्सक शिक्षकों के बीच मूल वेतन में उत्पन्न हुई विसंगति को PAY STEPPING से दूर किया जाए
- 2014 से 2018 के बीच डीएसीपी प्रमोशन के प्रभावी दिनांक से देय भुगतान दिया जाए
- एकेडमिक अलाउंस में रिवीजन, हाई रिस्क अलाउंस और मासिक टेलीफोन राशि की शुरूआत
- परामर्श शुल्क को डीए से अटैच किया जाए, सालाना 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी
- एनएमसी निरीक्षण के लिए तबादले बन्द किए जाए, विदेश यात्रा की अनुमति प्रिंसिपल कार्यालय से ही मिले
- जो वरिष्ठ प्रदर्शक एनएमसी की गाइडलाइन के अनुसार सहायक आचार्य पद की योग्यता रखते है, उन्हें एकसाथ नवीन पद सृजित कर पदोन्नति दी जाए

चिकित्सकों ने दस सूत्री मांगों के साथ ही एक नया राग भी शुरू किया है.सरकारी मेडिकल टीचर्स की ये भी मांग है कि जैसे घर पर परामर्श अलाउ किया हुआ है, उसी तर्ज पर सर्जंस को प्राइवेट प्रोसिजर भी अलाउ किए जाए.आश्चर्य की बात ये है कि इस दौरान फील्ड में शुरू होने वाली चिकित्सकों की मनमर्जी को लेकर अधिकांश जिम्मेदार चुप है. मेडिकल टीचर्स ने जिस तरह से अपनी मांगों को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया, उसको देखते हुए मेडिकल कॉलेज से जुड़े अस्पतालों में उनके कामकाज की समीक्षा भी लाजमी है.यदि इस मुद्दे पर बात की जाए तो हालात काफी चिंताजनक नजर आते है.

सरकारी अस्पतालों की ओपीडी की ये रोजाना की तस्वीर:
- सरकारी अस्पताल में छह घंटे का है ओपीडी टाइम निर्धारित  
- अभी मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों में सुबह आठ बजे से शुरू होता है ओपीडी
- लेकिन अधिकांश बड़े चिकित्सक 9 बजे बाद ही बैठते है सीट पर
- इसके बाद ओपीडी में मरीजों का जैसे-जैसे बढ़ता है दबाव
- तो 12 बजे ही इधर-उधर होने लगते है बड़े डॉक्टर्स
- रेजीडेंट्स चिकित्सकों के भरोसे छोड दी जाती है ओपीडी
- जबकि नियमानुसार 2 बजे तक चिकित्सकों को देनी चाहिए ड्यूटी
- बड़े डाक्टरों की मनमर्जी का मरीज उठा रहे खामियाजा

बड़े चिकित्सकों के तर्क पर अब सवाल ये:
तर्क - मेडीकल टीचर्स को सुबह स्टूडेंटस की कक्षाएं भी लेनी होती है, वार्ड के अन्दर भर्ती मरीजों को भी संभालना होता है.
जवाब - अस्पताल में जिस यूनिट का ओपीडी हो, उसको कक्षाओं से मुक्त क्यों नहीं रखा जाता....इसके अलावा वार्ड में मरीजों की देखभाल ओपीडी में व्यवस्थाएं सुचारू करने के बाद भी की जा सकती है.

ओपीडी में बैठने से यूं बचते है चिकित्सक:
- ओपीडी के निर्धारित समय में से आधे समय भी बड़े डॉक्टर सीट पर नहीं बैठते
- अगर बैठते भी है तो बैठक या इमरजेंसी केस की आड में वे हर आधे-एक घंटे में गायब हो जाते है
- ओपीडी में सुबह एक घंटे क्लास का बहाना, फिर वार्ड के राउण्ड के लिए हो जाते है रवाना
- ऐसे में मरीजों को रेंजीडेंस से भी सलाह लेकर घर लौटना पड़ रहा है