नई दिल्ली। माना जाता है कि औरतो को समझना बहुत ही कठिन है और यहां तक कि बड़े-बड़े साधू-महात्माओं के लिए भी ये सदैव राज ही रहीं हैं। बात अगर हिंदू धर्म की करे तो वेदों में औरतों को देवी का दर्जा दिया गया है और शास्त्रों के अनुसार एक पति का ये कर्तव्य है कि वो अपनी पत्नि को हर हाल में खुश और सुरक्षित रखे।
गरुण पुराण में स्त्रीयों के कुछ गुणों पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि पुरूषों को ऐसी स्त्रीयों पर कभी शक नहीं करना चाहिए और ना ही इनके बारे में किसी तरह की बूरी सोच रखनी चाहिए। आइए जानते हैं कि वो कौन-कौन से गुण हैं।
गृहे दक्षा- इस गुण का तातपर्य घरेलू काम-काज लेकर है। माना जाता है कि एक स्त्री को गृह कार्यों की समझ होनी चाहिए और उसे भोजन बनाना, साफ-सफाई करना, घर को सजाना, कपड़े-बर्तन आदि साफ करना आना चाहिए। माना जाता है कि जो औरत बच्चों की जिम्मेदारियों को ठीक से समजती है वो परिवार को जोड़कर रखती है।
प्रियंवदा- इस गुण का तातपर्य बहुत मधुर बोलने से है। औरतो से अपेक्षा की जाती है कि वो सदैव मधुर बोले और बड़ों से संयमित भाषा में ही बात करे। इस गुण के होने के की फायदे है, जैसे कि औरतो को शादी के बाद अंजान जगह पर खुद को ढ़ालने में दिक्कतों का सामना नहीं करना पड़ता और दूसरा ये कि मधुर बोली उनकी सुंदरता को और भी निखार देती है।
पतिप्राणा- इस गुण को वैसे पतिपरायणा के नाम से भी जाना जाता है। शासत्रों में बताया गया है कि जो स्त्री अपने पति का आदर करती है और उसके परिवार को भी अपना परिवार समझती है वो सभी के आदर के योग्य है। ऐसी स्त्रीयां ही समाज को जोड़ती है और परिवार को सूत्र में बांधे रखती है।
पतिव्रता- ये गुण स्त्री के आत्मनियंत्रम से जुड़ा हुआ है, जिसके अनुसार औरतों को अपने पति के अलावा किसी अन्य पुरुष के बारे में नहीं सोचना चाहिए। माना जाता है कि जिस स्त्री में ऊपर बताए गए सभी गुण मौजूद होती हैं, उसका सम्मान सदैव करना चाहिए और जहां इन स्त्रीयों का सम्मान नहीं होता वहां दुखों का आगमन तय है।