आठ वर्षो में गंगा नदी की मुख्यधारा पर सफाई का काम लगभग पूरा, अब सहायक नदियों पर ध्यान

नई दिल्ली: गंगा की निर्मलता और अविरलता के 'नमामि गंगे' कार्यक्रम को नदी स्वच्छता का एक मॉडल करार देते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक जी. अशोक कुमार ने दावा किया कि कुछ प्रारंभिक समस्याओं को दूर करते हुए पिछले आठ वर्षो में नदी की मुख्यधारा पर सफाई का काम लगभग पूरा हो गया है और अब सहायक नदियों पर ध्यान दिया जा रहा है. राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक कुमार ने कहा कि नमामि गंगे मिशन की शुरुआत वर्ष 2014-15 में 20 हजार करोड़ रूपये की लागत से प्रारंभ की गई थी. पिछले आठ वर्षों में मिशन के तहत विभिन्न कार्यक्रमों के कारण मुख्यधारा पर गंगा नदी का पानी काफी हद तक साफ हो चुका है और अब हम इसकी सहायक नदियों पर ध्यान दे रहे हैं.’’ उन्होंने दावा किया कि गंगा नदी के जल के साफ होने का प्रमाण यह है कि इसमें डॉल्फिन और जैव विविधता में बढ़ोत्तरी हुई है तथा रासायनिक परीक्षण और प्रयोगशाला जांच से भी स्पष्ट हुआ है कि गंगा नदी के पानी की गुणवत्ता बेहतर हुई है.

नमामि गंगे परियोजना की रफ्तार धीमी होने को लेकर आरोप पर कुमार ने कहा कि वर्ष 2014 में जब कार्यक्रम को मंजूरी दी गई थी तब कुछ समस्याएं थीं जो विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर), राज्यों में क्षमता निर्माण, भूमि आदि से जुड़ी थीं.उन्होंने कहा कि लेकिन पिछले दो वर्षों में इसको लेकर काफी काम हुआ है और अभी 3000 एमएलडी जलमल शोधन क्षमता तैयार हो गई है.उन्होंने कहा कि वर्ष 2021 तक 900 एमएलडी जलमल शोधन क्षमता थी और पिछले डेढ़ वर्षों में 2000 एमएलडी से अधिक जलमल शोधन क्षमता तैयार हुई है, जिससे स्पष्ट है कि काफी काम हुआ है.

ज्ञात हो कि राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के आंकड़ों के मुताबिक, अब तक नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत कुल 436 परियोजनाएं मंजूर की गई जिनकी लागत 37,150 करोड़ रूपये थी. इसमें से 244 परियोजनाएं पूरी हो गई हैं.एनएमसीजी के महानिदेशक ने कहा कि मिशन को लेकर राज्यों से आने वाले प्रस्ताव, जमीन से जुड़ी भी समस्याओं आदि की पहचान की गई और इन्हें दूर किया गया है. कुमार ने कहा कि हमने राज्यों को अच्छी डीपीआर तैयार करने के लिए प्रशिक्षण दिया है, वेंडरों का क्षमता निर्माण तथा वित्त प्रदाताओं की क्षमता निर्माण पर भी काम किया है. विभिन्न स्तरों पर किये गये काम के परिणाम सामने आए हैं और पिछले वर्ष दिसंबर में मांट्रियल में नमामि गंगे को संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में दुनिया के 10 सबसे बेहतरीन कार्यक्रम में शामिल किया गया. उन्होंने कहा कि पहले लोग सोचते थे कि गंगा नदी साफ नहीं की जा सकती है, वह सोच आज पूरी तरह से बदल गई है.

अशोक कुमार ने कहा कि गंगा नदी की स्वच्छता एवं निर्मलता के अभियान के लिए प्रारंभ में 20 हजार करोड़ रूपये मंजूर हुए और फिर 2021 में 22,500 करोड़ रूपये आवंटित किए गए.उन्होंने कहा कि इस पर अब तक 15 हजार करोड़ रूपये खर्च हुए हैं और 37 हजार करोड़ रूपये की परियोजनाएं मंजूर की गई है.एनएमसीजी के महानिदेशक ने कहा कि नमामि गंगे मिशन का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इसका संचालन ‘हाइब्रिड एन्यूटी मॉडल’ के तहत होता है जिसमें आधारभूत ढांचे के विकास के लिए 40 प्रतिशत राशि खर्च होती है और इसके बाद शेष राशि 15 वर्षों में प्रदर्शन के आधार पर दी जाती है.उन्होंने कहा कि ऐसे में खर्च दिखने में कम है, लेकिन काम काफी हुआ है और काफी संख्या में परियोजनाएं पूरी हो गई हैं.

गंगा नदी के किनारे गंदे जल को शोधित करके बेचने की योजना के बारे में एक सवाल के जवाब में कुमार ने कहा कि वर्ष 2019 में राष्ट्रीय गंगा परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अर्थ गंगा का सुझाव दिया था, इसका एक महत्वपूर्ण स्तम्भ गंदे जल को शोधित करने से जुड़ा है.उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत हमने गंगा नदी के किनारे स्थित शहरों से निकलने वाले गंदे जल को शोधित करके विद्युत संयंत्रों, तेल शोधक कारखानों, रेलवे आदि को बेचने की पहल की है . इस उद्देश्य के लिए इनके साथ समझौता ज्ञापन पर काम किया जा रहा है. कुमार ने कहा कि मथुरा स्थित इंडियन ऑयल कारपोरेशन (आईओसीएल) रिफाइनरी को शोधित जल की आपूर्ति की जा रही है और 11 विद्युत संयंत्रों के साथ इस उद्देश्य के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयू) किया गया है. सोर्स भाषा