Jaipur News: बैन के बावजूद रोजाना 200 से 300 टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा, चोरी करने का खेल जारी; जबकि देश के कई शहरों के लिए कमाई का साधन

जयपुर: राज्य सरकार ने पूरे प्रदेशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन कर रखा है. इसके बावजूद दोनों नगर निगम में कचरे में रोजाना 200 से 300 टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है. सिंगल यूज प्लास्टिक के कचरे के बढते ढेर प्रशासन की रोकथाम की कोशिशों को  साफ बयां कर रहे हैं. यहीं नहीं निगम की डोर टू डोर कचरा संग्रहण के लिए चलाए जा रहे हूपरों से रोज प्लास्टिक चोरी करने का भी खेल लगातार जारी है जिससे निगम का रेवन्यू भी लगातार कम हो रहा है.

- 100 माइक्रोन से कम मोटाई की प्लास्टिक के बने तमाम उपयोगी सामान पर बैन

- जयपुर शहर का कुल वेस्ट प्रतिदिन करीब 1400 मीट्रिक टन

- जयपुर शहर से निकलने वाला प्लास्टिक वेस्ट 280 मीट्रिक टन

- प्लास्टिक वेस्ट देश के कई शहरों के लिए कमाई का साधन

- वर्ग्रेतामान में ग्रेटर नगर निगम के 9 कचरा ट्रांसरप स्टेशन

- निगम के 9 में से 7 कचरा ट्रांसफर स्टेशनों पर कचरे से प्लास्टिक निकालने का काम दिया गया

- ग्रेटर निगम को हर महीने दस लाख रुपए की कमाई हो रही है.

केन्द्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु मंत्रालय ने 100 माइक्रोन से कम मोटाई की प्लास्टिक के बने तमाम उपयोगी सामान पर एक जुलाई से बैन लगाया जा चुका हैं. जयपुर में भी प्लास्टिक बैन के बाद निगमों की ओर से रोज छोटी-बड़ी कार्रवाई की जा रही हैं. मगर कचरे से निकल रहे प्लास्टिक का निस्तारण ठीक तौर पर नहीं हो पा रहा हैं. जयपुर शहर का कुल वेस्ट प्रतिदिन करीब 1400 मीट्रिक टन है, जिसमें प्लास्टिक वेस्ट 280 मीट्रिक टन है. इस कचरे को कई लोग उठा रहे हैं, लेकिन पूरा प्लास्टिक कचरा निस्तारित नहीं हो पा रहा है. कुछ कचरे को सेग्रीगेट करके ऊर्जा संयंत्र में इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन नगर निगम दूसरा संयंत्र नहीं लगा पाया है. जयपुर शहर से उठने वाले डेढ़ हजार टन कचरे में प्लास्टिक का कचरा कितना है, इसकी कोई मात्रा तय नहीं है.  लेकिन शहर की कई संस्थाएं नगर निगम के कचरे से प्लास्टिक बीनकर इसका निस्तारण कर रही हैं.  

प्लास्टिक वेस्ट देश के कई शहरों के लिए कमाई का साधन बन गया:
प्लास्टिक वेस्ट देश के कई शहरों के लिए कमाई का साधन बन गया है. ग्रेटर नगर निगम ने भी प्लास्टिक से कमाई शुरू कर दी है. ग्रेटर निगम के 9 में से 7 कचरा ट्रांसफर स्टेशनों पर कचरे से प्लास्टिक निकालने का काम दिया गया है. इससे ग्रेटर निगम को हर महीने दस लाख रुपए की कमाई हो रही है. लेकिन ग्रेटर नगर निगम में प्लास्टिक चोरी कर निगम को चूना लगाने का काम भी लगातार जारी है अगर ग्रेटर निगम ठीक तरीके से प्लास्टिक डिस्पोजल का काम करता है तो रेवन्यू के साथ साथ शहर की सफाई व्वयस्था भी दूरूस्त होगी वहीं हैरिटेज नगर निगम में अब भी प्लास्टिक कचरे का निस्तारण सही तरीके से नहीं हो पा रहा है. 

राज्य सरकार ने पूरे प्रदेशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन कर रखा:
40 माइक्रोमीटर या उससे कम स्तर के प्लास्टिक को सिंगल यूज प्लास्टिक में शामिल किया गया है. इनमें सब्जी के पॉलीथिन कैरीबैग, चाय के प्लास्टिक कप, चाट गोलगप्पे वाली प्लास्टिक प्लेट, बाजार से खरीदी पानी की बोतल, स्ट्रॉ सिंगल यूज प्लास्टिक से बने उत्पाद हैं. राज्य सरकार ने पूरे प्रदेशभर में सिंगल यूज प्लास्टिक को बैन कर रखा है. इसके बावजूद दोनों नगर निगम में कचरे में रोजाना 200 से 300 टन प्लास्टिक कचरा निकल रहा है. यह प्लास्टिक कचरा धरती को बांझ कर रहा है और आमजन के साथ—साथ जलीय जीव, जानवर सभी को नुकसान पहुंचा रहा है. जयपुर शहर के घरों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों, होटल्स और थड़ी—ठेला से रोजाना 1,340 टन मीट्रिक टन कचरा निकल रहा है. इसमें से 60 फीसदी कचरा गीला  और 40 प्रतिशत कचरा सूखा होता है. शहर में जो सूखा कचरा उत्पादित होता है उसका करीबन आधा हिस्सा प्लास्टिक कचरे के रूप में होता है. विशेषज्ञों की माने तो कचरे के निस्तारण पर निगमों को खास ध्यान देने की जरूरत हैं.

देश-दुनिया में सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा:
देश-दुनिया में सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग तेजी से बढ़ रहा हैं. लेकिन इसका निस्तारण नहीं होने से यह पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गई हैं.  शहर से लगातार बड़ी मात्रा में निकल रहे कचरे के ढेर में प्लास्टिक की मात्रा ज्यादा होने से शहर की सड़कों के किनारे प्लास्टिक बिखरा रहता है. कचरा परिवहन वाहनों से भी प्लास्टिक कचरा उड़ता रहता है. लेकिन प्लास्टिक इतनी जल्दी नष्ट नहीं होता है. इसलिए लोग प्लास्टिक कम काम में ले तो पर्यावरण के लिए बेहतर होगा.