JNU भारत की सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करता है- Droupadi Murmu

नई दिल्ली: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शुक्रवार को कहा कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) भारत की सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करता हैं. विश्वविद्यालय के छठे दीक्षांत समारोह में मुर्मू ने कहा कि महिला शोधार्थियों की संख्या इस समय संस्थान में पुरुषों से अधिक है. उन्होंने इसे सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण संकेतक बताया.

उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय को मैं एक सार्थक और ऐतिहासिक महत्व के रूप में देखती हूं कि जेएनयू ने 1969 में महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष में कार्य करना शुरू किया था.
राष्ट्रपति ने कहा कि पूरे भारत के छात्र विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं और परिसर में एक साथ रहते हैं जो भारत और दुनिया के बारे में उनके दृष्टिकोण को व्यापक बनाने में मदद करता है. विश्वविद्यालय विविधता के बीच भारत की सांस्कृतिक एकता को प्रदर्शित करता है. दीक्षांत समारोह में केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार ए. के. सूद और जेएनयू के कुलाधिपति विजय कुमार सारस्वत भी मौजूद थे.

देश में बहस और चर्चा महत्वपूर्ण हैं:
प्रधान ने जेएनयू को सर्वाधिक बहु-विविधता वाला संस्थान करार दिया, जहां देश के सभी हिस्सों से छात्र आते हैं. उन्होंने विश्वविद्यालय में बहस और चर्चा के महत्व पर भी जोर दिया. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह एक शोध विश्वविद्यालय है. जेएनयू जैसा बहुविविध संस्थान देश में नहीं है. भारत सबसे पुरानी सभ्यता है और जेएनयू इस सभ्यता को आगे बढ़ा रहा है. देश में बहस और चर्चा महत्वपूर्ण हैं.

एसटी और ओबीसी जैसे आरक्षित वर्गों से: 
इस मौके पर जेएनयू की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने इस तथ्य पर जोर दिया कि विश्वविद्यालय में 52 प्रतिशत छात्र आरक्षित श्रेणियों- अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से हैं. उन्होंने कहा कि यह हमारा छठा दीक्षांत समारोह है. इस बार कुल 948 शोधार्थियों को डिग्रियां प्रदान की गई हैं. महिला शोधार्थियों की संख्या पुरुषों से अधिक है और 52 प्रतिशत छात्र एससी, एसटी और ओबीसी जैसे आरक्षित वर्गों से हैं. सोर्स-भाषा