VIDEO: उपचुनाव की जंग में परिवारवाद और पॉलिटिक्स, 5 सीटों पर परिवारवाद रहा हावी, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: राजस्थान की सात सीटों पर हो रही उपचुनाव की जंग में इस बार परिवारवाद का जमकर बोलबाला हुआ.कांग्रेस औऱ भाजपा दोनों सियासी दलों ने इस बार नेताओं के रिश्तेदारों को कई जगह टिकट दिए.कांग्रेस में तीन जगह तो भाजपा में दो जगह परिवारवाद हावी रहा.वहीं आरएलपी ने भी इस बार टिकट वितरण में परिवारवाद पर भरोसा जताया है.

राजस्थान में 7 विधानसभा सीटों पर नामांकन का दौर समाप्त हो चुका है और अब 11 नवम्बर तक प्रचार समाप्त होने तक जमकर घमासान देखने को मिलेगा.लेकिन इस बार बाप पार्टी को छोड़कर किसी भी दल ने टिकट वितरण में परिवारवाद से बिल्कुल परहेज नहीं किया.भाजपा हो कांग्रेस या फिर हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी तीनों ने परिवारवाद पर भरोसा जताया है.कांग्रेस ने तीन सीटों पर नेताओं के रिश्तेदारों पर भरोसा जताया तो भाजपा ने भी दो जगह परिवार पॉलिटिक्स का फार्मूला अपनाया.वहीं आरएलपी ने भी इस बार टिकट अपने ही घर में रखा.

पार्टी              सीट           उम्मीदवार                           रिश्ता
कांग्रेस           झुंझुनूं          अमित ओला                   सांसद बृजेन्द्र ओला के बेटे
कांग्रेस            रामगढ़      आर्यन खान                    दिवंगत विधायक जुबेर खान के बेटे
कांग्रेस            खींवसर      रतन चौधरी                    सवाई सिंह चौधरी की पत्नी
बीजेपी            दौसा         जगमोहन मीणा               किरोड़ी मीणा के भाई
बीजेपी            सलूंबर        शांता देवी                    दिवंगत विधायक अमृतलाल मीणा की पत्नी
आरएलपी        खींवसर      कनिका बेनीवाल          सांसद हनुमान बेनीवाल की पत्नी

तो आपने देखा 7 विधानसभा उपचुनाव सीटों की जंग में 5 जगह टिकट वितरण में परिवारवाद हावी रहा.झुंझुनूं में तो कांग्रेस ने ओला परिवार की तीसरी पीढ़ी को टिकट दिया है.इससे पहले शीशराम ओला,बृजेन्द्र ओला और राजबाला ओला राजनीति में सक्रिय रहे है.वहीं आर्यन खान के माता औऱ पिता दोनों विधायक रहे है.रतन चौधरी के पति सवाई सिंह चौधरी भी कांग्रेस से खींवसर से चुनाव लड़ चुके है.सलूंबर भाजपा प्रत्याशी के पति अमृतलाल मीणा कईं दफा विधायक रहे थे.जगमोहन मीणा के भाई किरोड़ी मीणा और भाभी गोलमा देवी भी राजनीति में सक्रिय है.तो कनिका बेनीवाल के पति,देवर औऱ ससुर राजनीति में सक्रिय रहे है.

दरअसल मौजूदा जनप्रतिनिधि के निधन होने पर पार्टी सहानुभूति का कार्ड खेलते हुए रिश्तेदारों को तो उपचुनाव में पहले भी खूब टिकट देती आई है.सलूंबर और रामगढ़ में भाजपा और कांग्रेस ने यह कार्ड खेला वहां तक तो बात समझ में आती है.लेकिन खींवसर,झुंझुनूं और दौसा में तीनों दल अगर चाहते तो परिवारवाद की पॉलिटिक्स से परहेज कर सकते थे.खैर, टिकट देना पार्टियों के हाथ में है लेकिन इनकी किस्मत का फैसला अब जनता के हाथ में है.