जयपुरः दिव्यांग खिलाड़ियों की दुनिया एक अद्वितीय प्रेरणा का स्रोत है. यह लोग न केवल अपनी शारीरिक क्षमताओं की सीमाओं को पार करते हैं, बल्कि समाज में असंभव को संभव बनाते हैं. ये खिलाड़ी समाज के सामने एक महत्वपूर्ण संदेश पेश करते हैं - सीमाओं के बावजूद, सच्ची मेहनत और समर्पण से हर सपने को साकार किया जा सकता है. उनकी कहानियाँ हमें यह सिखाती हैं कि मानव भावना की शक्ति अनंत होती है और हर व्यक्ति के भीतर एक अद्वितीय क्षमता छिपी होती है. आज आपको दिखाते हैं हौसलों से उड़ान भरने वाले देश के ऐसे ही दिव्यांग योद्धाओ की यह अदभुत कहानी.
महज 17 साल की थी वह
आतंकियों से बचने के लिए बालकनी से कूद गई वह
रीढ की हड्डी टूटने से जिंदगी के सपने बिखर गए उसके
क्योंकि जीवनभर के लिए विकलांग हो गई थी वह
लेकिन आज देश का तिरंगा लहराने की तमन्ना है कश्मीर की इस बेटी में
महाराष्ट्र का यह नौजवान भी किसी सितारे से कम नहीं था
दुनिया इसके डांस की दीवानी थी
लेकिन एक रोड एक्सीडेंट ने बदल दी जिंदगी
अब पैर से नहीं हाथ से हौसलों की उड़ान भर रहा यह नौजवान
कहानियां तो आपने कई सुनी होंगी, लेकिन आज हम आपको कहानी दिखाते हैं, कुछ अलग. ऐसे नौजवानों को जिनको लोग दिव्यांग कहते हैं, लेकिन इनकी हिम्मत पहाड़ों को चीर देने जैसी है. पैर इनके जमीं पर नहीं पड़ सकते, लेकिन हाथ इनके आसमां छूने को बेताब से है. अब भले ही व्हीलचेयर के साथ इनकी जिंदगी गुजरती है, लेकिन आज ये प्रेरणास्त्रो है उन लोगों के लिए जो जीने की उम्मीद छोड़ देते हैं.
व्हीलचेयर पर जाबांजी के करतब करते ये खिलाड़ी हैं भारतीय हीलचेयर हैंडबॉल की टीम के. इन खिलाड़ियों की कहानी मानव साहस और समर्पण की एक अविस्मरणीय मिसाल है. यह खेल उन खिलाड़ियों की जीवंतता और जज्बे को दर्शाता है, जिन्होंने शारीरिक सीमाओं को पार करके अपने सपनों को साकार किया है. इनमें से हर खिलाड़ी पहले सामान्य जिंदगी जी रहा था, लेकिन होनी को कौन टाल सकता है, किसी ने सैनिक के रूप में दुश्मनों से लोहा लेते हुए गोलीबारी में पैर गंवाए हैं, तो किसी ने रोड एक्सीडेंट में. एक खिलाड़ी तो ऐसी है, जो आतंकवादियों के कारण अपने घर की बालकनी से कूद गई थी. भले ही इनका खेल देखने क्रिकेट की तरह टिकटों की कालाबाजारी नहीं होती होगी, भले ही किसी प्राइवेट लीग की तरह इनको खरीदने के लिए बोली नहीं लगती होगी, भले ही किसी कंपनी को मालिक किसी सेलेब्रेटी की तरह इनको अपने विज्ञापन में शामिल नहीं करता होगा, लेकिन ये वो जाबांज है, जिनका सपना हर भारतीय खिलाड़ी की तरह तिरंगे को फहराना है. राजस्थान की राजधानी गुलाबीनगरी भाग्यशाली है, जिसके सवाई मानसिंह स्टेडियम में ये खिलाड़ी विश्व चैंपियनशिप के लिए खून-पसीना बहा रहे हैं. इनकी कहानी सुनेंगे, तो आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे. इनकी जिंदगी का संघर्ष सुनकर आपके भी आंखों में आंसू बह निकलेंगे.
तो शुरुआत धरती के स्वर्ग कश्मीर से कर लेते हैं. इस धरती की बेटी है इशरत अख्तर. जब माता-पिता इशरत की आंखों में कुछ बड़े सपने देख रहे थे, तभी अगस्त 2016 में इशरत अख्तर के जीवन में एक असामान्य और अप्रत्याशित घटना घटी जब वह बालकनी से गिर गई. दो मजिंला घर से नीचे गिरने से इशरत की रीढ की हड्डी टूट गई और वे जीवन भर के लिए विकलांग हो गई. उस समय इशरत की उम्र सिर्फ़ 17 साल थी. इस दुर्घटना ने उनके जीवन की दिशा को पूरी तरह बदल दिया. इस दुर्घटना ने उन्हें व्हीलचेयर पर निर्भर बना दिया. इसके बावजूद, इशरत ने अपने सपनों को छोड़ने के बजाय, नए लक्ष्य निर्धारित किए और एक नई शुरुआत की. इशरत ने अपनी नई परिस्थितियों को स्वीकारते हुए व्हीलचेयर खेलों में कदम रखा. उन्होंने व्हीलचेयर बैडमिंटन और व्हीलचेयर बास्केटबॉल जैसे खेलों में भाग लिया और अपनी मेहनत और समर्पण से खेल की दुनिया में एक पहचान बनाई. इशरत अख्तर ने विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया और उल्लेखनीय प्रदर्शन किया. उनकी खेल क्षमता और रणनीतिक सोच ने उन्हें कई पुरस्कार और मान्यता दिलाई. इशरत की यात्रा ने समाज में दिव्यांग व्यक्तियों के प्रति एक नई समझ और सम्मान पैदा किया. उन्होंने अपनी उपलब्धियों से यह साबित किया कि शारीरिक चुनौतियों के बावजूद भी किसी भी क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त की जा सकती है. उनकी मेहनत और दृढ़ संकल्प ने उन्हें एक आदर्श उदाहरण बना दिया कि किस प्रकार से असीम संभावनाएँ सामने आती हैं जब किसी के पास मजबूत इरादा और आत्म-विश्वास हो.
कहानी सिर्फ इशरत तक सीमित नहीं है. इन टीम में मौजूद हर खिलाड़ी की एक संघर्ष की कहानी है. इस चेहरे को देखिए. ये है महाराष्ट्र के जावेद चौधरी . आज व्हीलचेयर पर दिख रहे हैं, लेकिन पहले ऐसे नहीं थे. इनकी डांस पर दुनिया झूमती थी. जिम में जब एक्सरसाइज करते थे, तो किसी बॉडीबिल्डर या फिल्मे सितारें से कम नहीं दिखते थे, लेकिन एक बाइक एक्सीडेंट ने इनकी जिंदगी ही बदल दी. एक्सीडेंट के बाद जब इनको अस्पताल ले जाया गया और इलाज के बाद होश आया तो देखा कि बैड के चारों तरफ परिजन व मित्र खड़े-खड़े रो रहे थे. कारण - एक्सीडेंट के चलते जावेद का पैर काटना पड़ गया. बस यही सब कह रहे थे - कैसे चल पाएगा, कैसे जी पाएगा, कैसे डांस कर पाएगा और अब जिम तो बंद ही समझो. लेकिन जावेद इनसे कहां हार मानने वाला था. जोश और जूनुन तो सातवें आसमां पर था. डांस दीवाने जैसे टीवी शो भी किए और जिम में भी औरों के लिए ट्रेनर बन गए. मोटिवेशनल स्पीच सुनो तो आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे. किस्मत ऐसी बदली कि जावेद महाराष्ट्र छोड़कर अमेरिका चले गए पढने, वहां पर ही खेलने भी लग गए, लेकिन जब सात समंदर पार देश से बुलावा आया, देश के लिए विश्व चैंपियनशिप में खेलने का मौका आया, तो जावेद अमेरिका से सीधे जयपुर आ गए. अब बस एक ही लक्ष्य विश्च चैंपियनशिप में देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना.
जावेद चौधरी की कहानी एक सच्ची प्रेरणा है, जो संघर्ष, समर्पण और साहस की अद्वितीय मिसाल पेश करती है. जावेद का जीवन और उनकी खेल यात्रा व्हीलचेयर हैंडबॉल की दुनिया में एक चमकदार उदाहरण है. इशरत व जावेद के अलावा इस टीम में महाराष्ट्र की मीनाक्षी भी है, तो सेना के रिहेबलिटेशन सेंटर में रहने वाले अनिल, अभिजीत, अजित शुक्ला व लतीफ भी है. पहले सेना में थे, लेकिन दुश्मनों से लोहा लेते हुए पैर गंवा बैठे. पहले देश के लिए जंग के मैदान में जाते थे, अब देश के लिए खेल के मैदान में जाते हैं. हैदराबाद के कोटेश्वर और कर्नाटक के सिधप्पा व बासेप्पा के हौंसले भी कम नहीं है. भारतीय हैंडबॉल टीम के कोच जयपुर के प्रियदीप सिंह बताते हैं कि जयपुर में पहली बार इन खिलाड़ियों की मेजबानी का हमें मौका मिला है और यहां से ही ये खिलाड़ी विश्व चैंपियनशिप में खेलने मिश्र जाएंगे. इन मुकाबला ब्राजील, चिली, फ्रांस, जापान, पुर्तगाल व यूएसए की टीम से होगा.
जितनी मुश्किलें इन खिलाड़ियों के लिए मैदान में है, उससे ज्यादा मैदान के बाहर. बड़ी व्हीलचेयर के कारण ट्रेन में सफर नहीं कर सकते. सामान्य होटल में रुक नहीं पाते, क्योंकि चाहें कमरे हो या टॉयलेट उनके गेट का साइज कम से कम 26 इंच चौड़ा होना चाहिए. कई बार तो होटल वालों से या फिर टूर्नामेंट के आयोजकों से विशेष रिक्वेस्ट करके ऐसे गेट लगवाए जाते हैं. व्हीलचेयर हैंडबॉल टीम के चीफ कोच आनंद माने ने बताया कि एक बार तो होटल के रूप में टॉयलेट के गेट ही हटवाने पड़े और पर्दे लगवाने पड़े. खिलाड़ियों की चार कैटेगरी होती है जिनको एक से लेकर चार तक प्वाइंटर दिए जाते हैं. यह निर्भर करता है कि उनकी शारीरिक क्षमता कैसी है. कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं, जिनके कमर के नीचे नर्व सिस्टम काम ही नहीं करता. हवाई सफर भी आसान नहीं होता. सफर से एक दिन पहले खाना बंद कर देते हैं और कुछ दवाईयां साथ रखते हैं. कमर के नीचे नर्व सिस्टम काम नहीं करने से इनका वहां पर कोई कंट्रोल नहीं रह जाता.
दिव्यांग खिलाड़ियों के सामने कई महत्वपूर्ण चुनौतियाँ होती हैं, जो उनके खेल जीवन और व्यक्तिगत जीवन को प्रभावित करती हैं. कई खेल स्थलों और सुविधाओं में दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए विशेष व्यवस्थाओं का अभाव होता है. इससे उन्हें प्रशिक्षण और प्रतियोगिताओं में भाग लेने में कठिनाइयाँ आती हैं. जैसे कि व्हीलचेयर उपयोगकर्ताओं के लिए उपयुक्त खेल उपकरण और पटरियाँ उपलब्ध नहीं होतीं. खेल के लिए आवश्यक विशेष उपकरण और प्रशिक्षण की लागत बहुत अधिक हो सकती है. कई दिव्यांग खिलाड़ी आर्थिक कठिनाइयों के कारण इन संसाधनों को प्राप्त करने में असमर्थ होते हैं. कई स्थानों पर दिव्यांग खिलाड़ियों के लिए विशेष प्रशिक्षकों की कमी होती है. इससे उन्हें उच्च गुणवत्ता का प्रशिक्षण प्राप्त करने में कठिनाई होती है, जो उनकी खेल क्षमताओं को सीमित कर सकता है. इन चुनौतियों के बावजूद, दिव्यांग खिलाड़ियों की लगन और संघर्ष उनकी सफलता की कहानी को और भी प्रेरणादायक बनाते हैं. इन परेशानियों के बावजूद, व्हीलचेयर हैंडबॉल के खिलाड़ी अपनी मेहनत, लगन और दृढ़ता से इन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और खेल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को बनाए रखे हुए हैं. उनकी कहानियाँ प्रेरणा और साहस की मिसाल हैं. दुनिया में कोई भी काम मुश्किल नहीं होता और अगर दिल में लगन हो तो इंसान दुनिया में कुछ भी हासिल कर सकता है.