सरिस्का में अब फिर से सुनाई देने लगी वनराज की दहाड़, बाघों की संख्या 28 पहुंची; विभाग के प्रयासों से बढ़ी आबादी

जयपुर: वर्ष 2005 में बाघ विहीन हो चुके सरिस्का में बुधवार को बाघ पुनर्वास को डेढ़ दशक पूरा हो गया है. वर्ष 2008 में 28 जून को रणथंभौर से यहां बाघ एसटी 1 को ट्रांसलोकेट किया गया था. उसके बाद से अभी तक यहां टाइगर का इंट्रोडक्शन सफल रहा है और आज सरिस्का में बाघों की संख्या 28 पहुंच गई है जो कि शिवकालीन सर्वोच्च है. पेश है सरिस्का में बाघों के पुनर्वास पर फर्स्ट इंडिया न्यूज़ की खास रिपोर्ट...

वर्ष 2005 बाघ विहीन हो चुके सरिस्का में अब फिर से वनराज की दहाड़ सुनाई देने लगी हैं. सरिस्का में बाघ पुनर्वास कार्यक्रम को सफल बनाने में दर्जनों अधिकारी, कर्मचारी और स्थानीय लोगों का अहम योगदान रहा है. बाघों का पुनर्वास बड़ी चुनौती था खासकर कोर छेत्र में बसे गांव इसके लिए सबसे बड़ी चुनौती रहे हैं. बाघों की शरण स्थली से गांवों के विस्थापन का ही नतीजा है कि सरिस्का में बाघों की आबादी भी बढ़ी है और इको सिस्टम भी तेजी से मजबूत हो रहा है. महज तीन वर्ष में 3 गांवों का विस्थापन किया जा चुका है. अब देवरी गांव विस्थापित किया जा रहा है जाएगा और 2 गांवों ने विस्थापन की सहमति दे दी है. जबकि पिछले 3 दशक में महज 3 गांव ही सरिस्का से विस्थापित हो सके थे. 

सरिस्का के कोर क्षेत्र में बसे गांव वन और वन्य जीवो के लिए सबसे बड़ा खतरा रहे हैं. करीब 18 वर्ष पहले जब सरिस्का बाघ विहीन हुआ तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यहां बसे गांव ही थे. वन विभाग ने गांवों के विस्थापन के प्रयास तो किए लेकिन इनके पीछे दृढ़ इच्छा शक्ति नजर नहीं आई यही कारण रहा कि पिछले डेढ़ दशक में या यूं कहें कि वर्ष 2020 तक सरिस्का से महज तीन गांवों को ही विस्थापित किया जा सका था. इसके बाद यहां फील्ड डायरेक्टर के तौर पर रूप नारायण मीणा का पदस्थापन हुआ. रूप नारायण मीणा ने गांव विस्थापन को चुनौती के तौर पर लिया और पूरी टीम को साथ लेकर महज ढाई वर्ष में 3 गांव डाबली, पानीढाल और लॉज को विस्थापित कराने में सफलता अर्जित की. इसके बाद नाथूसर और बेरा गांव भी विस्थापन के लिए सहमति दे चुके हैं. हरिपुरा और सुकोला गांव से भी आधे परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है. इसका फायदा यह हुआ कि जिन गांव को यहां से विस्थापित गया उस क्षेत्र में ग्रास लैंड विकसित की गई जंगल और सघन हुए और कुछ बाघों ने वहां अपनी टेरिटरी भी बना ली है. 

सरिस्का में फिलहाल बाघों की संख्य 28:
सरिस्का के फील्ड डायरेक्टर रूप नारायण मीणा का कहना है कि सरिस्का के लिए यह अंतिम अवसर था इसलिए पूरी शिद्दत से काम करने की ठानी, टीम ने एकजुटता से काम किया. गांव विस्थापन की प्रक्रिया पिछले 3 साल में तेजी से आगे बढ़ी है. उम्मीद है कि इससे इको सिस्टम मजबूत होगा. दरअसल रूपनारायण मीणा ने अच्छे लीडर की भूमिका निभाते हुए डीएफओ देवेंद्र जगावत देवेंद्र जगावत को साथ लेकर जिस तरह से सरिस्का में एकजुट होकर काम किया है उसी का नतीजा है कि यहां तेजी से गांव विस्थापन की प्रक्रिया पर काम हुआ और शानदार सफलता भी मिली. सरिस्का में फिलहाल बाघों की संख्य 28 है जल्दी ही यहां रणथंभौर से एक बाघिन और लाई जा सकती है. जिस बेरा गांव ने विस्थापन की सहमति दी है उसके आसपास ही बाघ रूप कुमार भी अपनी टेरिटरी तलाश रहा है. पिछले दिनों यहां 8 वर्ष बाद चौसिंघा का देखा गया. यहां भालुओं को भी दोबारा बसाया गया है. 

सरिस्का में राज्य के सभी जंगलों से बेहतर प्रे बेस:
सरिस्का में राज्य के सभी जंगलों से बेहतर प्रे बेस है, यह का इको सिस्टम और जंगलों से बेहतर है. यहां तेजी से ग्रास लैंड विकसित की जा रही है. ऐसे में कोशिश की जा रही है कि आने वाले समय में सरिस्का सभी टाइगर रिजर्व में एक मिसाल बन कर उभरे. यहां  एलिवेटेड रूट परियोजना, गांव विस्थापन, वन नाकों के विकास एवं जीर्णोद्धार, कर्मचारियों की सुझाव एवं शिकायत, ट्रैकिंग, सर्विलांस सिस्टम सहित तमाम व्यवस्थाओं पर जिस तरह एकजुटता से काम किया है उसने सरिस्का की दशा और दिशा दोनों बदल दी हैं. दरअसल, बाघ विहीन हो चुके सरिस्का में बाघों का पुनर्वास बड़ी चुनौती था लेकिन इस खौफनाक कहानी को दोबारा नया दोहराया जाए इसके लिए गांवों का विस्थापन और भी बड़ी चुनौती रहा. इस चुनौती से पार पाने में पिछले 3 वर्ष में फील्ड डायरेक्टर रूप नारायण मीणा के नेतृत्व में जोरदार काम हुआ है. उम्मीद की जा रही है कि सरिस्का आने वाले दिनों में राज्य का ही नहीं वरन उत्तर भारत का श्रेष्ठ टाइगर रिजर्व बनकर उभरेगा.