VIDEO: जैसलमेर में शीतला सप्तमी की धूम, शीतला माता को लगाया बसौड़ा का भोग, मंदिर में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब

जैसलमेर: राजस्थान के जैसलमेर जिले में आज शीतला सप्तमी का पर्व हर्षोल्लास से मनाया जा रहा है. मान्यताओं के मुताबिक संक्रामक रोगों से मुक्ति दिलाने वाली और चेचक रोग से बचाने वाली शीतला माता को ठंडे का भोजन और पकवानों का भोग लगाया गया जाता है.  जैसलमेर के मूल निवासी शीतला सप्तमी को ही शीतला की पूजा करते हैं, जबकि जैसलमेर को छोड़ कर मारवाड़ और देशभर के अन्य भागों से आए गृहस्थ अष्टमी को भी इस पर्व को पारंपरिक रूप से मनाते हैं. किले के ऊपर शीतला माता मेले में शहरी एवं ग्रामीण से मेलार्थियों के पहुंचने से रौनक नजर आने लगी है. शीतला माता मंदिर पर दर्शनार्थियों का तांता लगा हुआ है. 

आज सुबह जल्दी उठकर लोग सज-धजकर शहर में स्थित शीतला माता मंदिरों में पूजा-अर्चना की और शीतला माता को ठंडे पकवानों का भोग लगाया. शीतला सप्तमी पर बासी भोजन का महत्त्व है. शीतला सप्तमी के दिन अधिकांश घरों में चूल्हे नहीं जले. भगवती को बासी भोजन का ही भोग लगाया जाता गया. एक दिन पूर्व गृहिणियों ने खाना बनाकर रख दिया था. भोजन में दही, छाछ और घी के भांति-भांति के पकवान बनाए गए. गर्दभ पर आरूढ़ तथा दिगंबरावस्था में अपने एक हाथ में झाड़ू और दूसरे हाथ में कलश धारण किए मां शीतला की प्रतिमा की भक्तों ने मनोयोग से आराधना की. शीतला सप्तमी के दिन माता को भोग चढ़ाकर प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण किया गया. ग्रामीण क्षेत्र में शीतला माता की पूजा अर्चना की और शीतला माता के कथा एवं पाठ किए गए.

सुबह महिलाओं ने जल्दी उठकर शुभ मुर्हूत में शीतला माता की पूजा अर्चना की. इस अवसर पर महिलाओं ने गुलाबी, केसरिया, लाल रंग वस्त्र पहनकर माता के कथा सुनी. सप्तमी के अवसर पर दिनभर महिलाओं ने तालाब एवं नाडिय़ों पर श्रमदान किया और हरे वृक्षों को पानी पिलाया गया. शीतला सप्तमी पर बासी भोजन का महत्व है. जैसलमेर में शीतला सप्तमी के दिन अधिकांश घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता है. भगवती को बसौड़ा  का ही भोग लगाया जाता है. एक दिन पूर्व गृहिणियों ने खाना बनाकर रख दिया था. भोजन में दही, छाछ और घी के भांति-भांति के पकवान बनाए गए. नमकीन पूड़ी, मीठी पूड़ी, दाल की पूड़ी, दही, रायता, करबा, हलुवा, लापसी, पुलाव, दही बड़े और कई प्रकार की मिठाइयां छठ के दिन ही बना ली गई थी. शीतला सप्तमी के दिन माता को भोग चढ़ाकर प्रसाद स्वरूप भोजन ग्रहण किया गया.