माउंट आबू। राजस्थान का सबसे ऊंचा वन्य जीव अभ्यारण माउंट आबू वैसे तो यहां लगने वाली आग के लिए जाना जाता है। क्योकि माउंट आबू का यह वन्य जीव अभ्यारण, जिसमें पिछली बार लगी आग ने इस स्थान को पूरे देश में चर्चित बना दिया था, लेकिन विभाग ने पिछली बार की आग से इस बार सबक लिया है और विभाग नित नये प्रयोग कर रहा है।
पिछली घटनाओं से सबक लेकर माउंट आबू वन विभाग द्वारा इस बार पूरे जगंल क्षेत्र में ट्रैप कैमरे लगाने की योजना को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। इसी कड़ी में माउंट आबू वन्य जीव अभ्यारण मे विभिन्न स्थानों पर ट्रैप कैमरे लगाए जा रहा है, जिससे वन क्षेत्र में होने वाली सभी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी।
इसके साथ ही इस कवायद के चलते विभाग को एक और बड़ी सफलता हाथ लगी है, जिसमें माउंट आबू के जंगलों में रस्टी स्पोटेट केट की प्रजाति को पहचानने में मदद मिली है। इस केट की प्रजाति पहली बार माउंट आबू के इन जंगलों में मिली है, जिसकी तस्वीरें कैमरों में कैद हो गई है, जो माउंट आबू के वन्य जीव अभ्यारण के अच्छे संकेत हैं।
क्या है रस्टी स्पोटेट केट :
आमतौर पर यह जंगली-चित्तीदार बिल्ली एशिया की सबसे छोटी जंगली बिल्ली है और दुनिया की सबसे छोटी जंगली बिल्ली के रूप में काले-धूंट वाली बिल्ली की प्रतिद्वंद्वी है। यह 35 से 48 सेमी की लंबाई में, 15 से 30 सेंटीमीटर की पूंछ के साथ है और इसका वजन केवल 0.9 से 1.6 किलो ग्राम होता है। इसके फर शरीर के अधिकांश हिस्सों में भूरे रंग के साथ भूरे रंग के धब्बे हैं, जबकि पीठ और चोटी पर जंगली धब्बे होते हैं। जबकि अंडे-बेली बड़े काले धब्बे के साथ सफेद होते हैं। गहरे रंग की पूंछ मोटी होती है और शरीर की लगभग आधा लंबाई होती है तथा स्पॉट कम अलग होते हैं।
इसके सिर के प्रत्येक तरफ छह छिपे हुए छाले हैं, जो गाल और माथे पर विस्तार करते हैं। यह भारत में लंबे समय तक सिर्फ दक्षिण तक ही सीमित माना जाता था, लेकिन यह देश के अधिकांश हिस्सों में पाया जाता है। यह पूर्वी वन्यजीव अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान में पूर्वी गुजरात में, ताडोबा-अंधारी बाघ अभयारण्य में और भारत के पूर्वी घाटों पर देखा गया था। भारतीय टेराई में पीलीभीत टाइगर रिजर्व और महाराष्ट्र में नागजीरा वन्यजीव अभ्यारण्य में इसकी उपस्थिति का खुलासा किया। अब से प्रदेश के माउंट आबू इसकी पहली बार उपस्थिति दर्ज की गई है।
क्या होगा ट्रैप कैमरे से लाभ :
उपवन संरक्षक हेमन्त सिंह ने बताया कि कैमरे के जाल का बड़ा लाभ यह है कि जानवरों को परेशान किए बिना बहुत सटीक डेटा रिकॉर्ड कर सकते हैं। ये आंकड़े मानव टिप्पणियों से बेहतर हैं, क्योंकि उन्हें अन्य शोधकर्ताओं द्वारा समीक्षित किया जा सकता है। न्यूनतम वन्यजीव को परेशान करते हैं और अधिक आक्रामक सर्वेक्षण और निगरानी तकनीकों जैसे कि लाइव ट्रैप और रिलीज के उपयोग की जगह ले सकते हैं। वे लगातार और चुपचाप काम करते हैं।
सिंह ने बताया कि एक क्षेत्र में प्रजातियों की उपस्थिति का प्रमाण प्रदान करते हैं। यह पता चलता है कि कौनसी प्रजातियां हैं, जो प्रबंधन और नीतिगत निर्णय लेने के लिए सबूत प्रदान करते हैं और एक लागत प्रभावी निगरानी उपकरण हैं। इन्फ्रारेड फ्लैश कैमरों में कम परेशानी और दृश्यता होती है यह नई या दुर्लभ प्रजातियों की पहचान करने में भी उपयोगी होती है और जंगलो के बीच में होनी वाली सभी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है।
ग्रीष्मकालीन वन्यजीव गणना वर्ष 2017 :
बीट ट्रैकिंग पद्धति एवं वाॅटर होल गणना (11 मई 2017 से 12 मई 2017) संयुक्त आधार पर गणना रिपोर्ट
बाघ : 0
बघेरा : 48
सियार/गीदड़ : 402
जरख : 201
जंगली बिल्ली : 340
मरू बिल्ली : 0
मछुआरा बिल्ली : 0
लोमड़ी : 100
मरू लोमड़ी : 0
भेड़िया : 0
भालू : 373
बिज्जू : 268
कवर बिज्जू : 75
सियागोश : 0
चीतल : 0
सांभर : 110
काला हिरण : 0
रोजड़/नीलगाय : 589
चिंकारा : 0
चैसिंगा : 0
जंगली सूअर : 970
सैही : 335
लंगूर : 3979
गोडावण : 0
सारस : 0
गिद्ध (किंग वल्चर) : 0
जंगली मुर्गा : 2231
बर्डस आॅफ प्रे (बाज) : 85
मोर : 1888
घड़ियाल : 0
मगर : 7