Kailash Manasarovar Yatra रद्द रहने से मायूस न हों भक्त! कैलाश मानसरोवर यात्रा के विकल्प खोज रही उत्तराखंड सरकार

पिथौरागढ़ (उत्तराखंड): पिछले कई सालों से स्थगित चल रही कैलाश-मानसरोवर यात्रा के मद्देनजर उत्तराखंड पर्यटन विभाग के अधिकारी इस संबंध में वैकल्पिक तरीके खोज रहे हैं जिससे श्रद्धालुओं को भगवान शिव के निवास स्थान माने जाने वाले कैलाश पर्वत की झलक भारतीय भूभाग से ही मिल सके. अधिकारियों ने यहां बताया कि इसके लिए राज्य पर्यटन विभाग ने पिथौरागढ़ जिले में तिब्बत के प्रवेशद्वार लिपुलेख दर्रे के पश्चिमी ओर स्थित पुरानी लिपुलेख चोटी से 'कैलाश दर्शन' की संभावनाओं का परीक्षण शुरू कर दिया है.

धारचूला के उपजिलाधिकारी देवेश शास्नी ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया कि हाल में पर्यटन अधिकारियों, जिला प्रशासन के अधिकारियों, साहसिक पर्यटन विशेषज्ञों और सीमा सड़क संगठन के अधिकारियों ने पुरानी लिपुलेख चोटी का दौरा किया था जहां से कैलाश पर्वत के स्पष्ट और मनोहारी दर्शन होते हैं. उन्होंने कहा कि टीम ने इस बात पर चर्चा की कि कैसे पुरानी लिपुलेख चोटी को धार्मिक पर्यटन गंतव्य के रूप में विकसित किया जा सकता है . शास्नी स्वयं इस दल के सदस्य थे.

चीन के अधिकारियों द्वारा वर्ष 2020 में कोविड महामारी फैलने के बाद से कैलाश-मानसरोवर यात्रा की अनुमति नहीं दिए जाने के कारण पुरानी लिपुलेख चोटी से कैलाश दर्शन को कैलाश मानसरोवर यात्रा के विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है. पिथौरागढ़ के जिला पर्यटन अधिकारी कीर्ति चांद के अनुसार, पुरानी लिपुलेख दर्रा चोटी 19,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. चांद ने कहा कि हमें व्यास घाटी में धार्मिक पर्यटन की संभावनाओं पर रिपोर्ट सौंपने का कार्य दिया गया था जिसके लिए हमने पुराने लिपुलेख दर्रा चोटी, नाभीढ़ांग और आदि कैलाश क्षेत्र का दौरा किया. 

सीमा सड़क संगठन द्वारा चोटी के आधार शिविर तक सड़क का निर्माण कर दिये जाने के कारण भारतीय भूभाग में पुरानी लिपुलेख चोटी से कैलाश दर्शन की संभावनाएं बहुत ज्यादा है. पर्यटन अधिकारी ने कहा कि लिपुलेख दर्रे से केवल 1800 मीटर की ऊंचाई पर स्थित चोटी तक श्रद्धालु स्नो स्कूटर के जरिए पहुंच सकते हैं. व्यास घाटी के ग्रामीणों ने बताया कि पुराने समय में भी कैलाश पर्वत के दर्शन के लिए ऐसे श्रद्धालु पुराने लिपुलेख दर्रा चोटी का प्रयोग करते थे जो वृद्धावस्था या किसी रोग के कारण मानसरोवर तक नहीं जा पाते थे. सोर्स भाषा