कैम्ब्रिज: हाल ही में 82 वर्षीय एक महिला को न्यूयॉर्क के एक नर्सिंग होम में मृत घोषित कर दिया गया, लेकिन बाद में अंतिम संस्कार गृह के कर्मचारियों ने उसे जीवित पाया.
आयोवा में भी इसी तरह की एक घटना में 66 बरस की डिमेंशिया से पीड़ित एक महिला को एक नर्स ने मृत घोषित कर दिया, लेकिन जब अंतिम संस्कार के लिए वहां के कर्मचारियों ने महिला के मृत शरीर वाले थैले को खोला तो उसे जीवित और सांस लेने के लिए हांफते हुए पाया.
अपनाए जाने वाले तरीके उतने क्रूर नहीं हैं:
हालांकि इस तरह की घटनाएं बहुत दुर्लभ होती हैं. लेकिन इनका होना अपने आप में विस्मयकारी है, जिसे एक पुराने नौसैनिक रिवाज से जोड़कर देखा जा सकता है. दरअसल कभी यह रिवाज हुआ करता था कि किसी मृत नाविक के लिए कफन की सिलाई करते समय उसके कफन का आखरी टांका लगाते समय सुई को मृत सैनिक की नाक में घुसाया जाता था. नाक में सुई घुसाने का कारण यही होता था कि अगर नाविक में प्राण बाकी होंगे तो वह सुई चुभने पर प्रतिक्रिया करेगा. यह राहत की बात है कि इन दिनों मौत की पुष्टि के लिए अपनाए जाने वाले तरीके उतने क्रूर नहीं हैं.
सभी अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होते है:
एक निर्धारित समय तक दिल और सांस की आवाज़ न होना, ठहरी, फैली हुई पुतलियां और किसी भी उत्तेजना का जवाब देने में विफलता का मतलब यह लगाया जाता है कि व्यक्ति मर चुका है. सभी डॉक्टरों को यह करना सिखाया जाता है और सभी अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक होते हैं. दुर्भाग्य से, ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां इस प्रक्रिया से मृत्यु की पुष्टि हुई है, फिर भी रोगी में बाद में जीवन के लक्षण दिखाई दिए. इतने सालों में मैंने ऐसा होते देखा है. एक दिन एक अस्पताल में, एक सहकर्मी ने एक बुजुर्ग महिला को मृत घोषित कर दिया, लेकिन थोड़ी देर बाद, वह फिर से सांस लेने लगी और उसकी नाड़ी थोड़ी देर के लिए ठीक हो गई.
वे भी इस कार्य को कठिन बना सकती हैं:
एक और अविस्मरणीय घटना में, मेडिकल इमरजेंसी टीम को एक महिला की दिल का दौरा पड़ने से हुई मौत के बाद तत्काल मुर्दाघर में बुलाया गया. दरअसल महिला ने अपनी मिर्गी की बीमारी के लिए दी जाने वाली दवा निर्धारित मात्रा से अधिक मात्रा में ले ली थी. उसे एक चिकित्सक ने देखा और प्रमाणित किया कि वह मर चुकी थी. लेकिन मुर्दाघर पहुंचने पर उसका एक पैर हिलता नजर आया. और अगर मुझे ठीक से याद है, तो बाद में वह ठीक हो गई.
मौत की पुष्टि की प्रक्रिया का ठीक से पालन नहीं करने के कारण किसी जीवित व्यक्ति को मृत घोषित किए जाने के कुछ उदाहरणों का पता चला है. कई बार बेध्यानी में एक सरसरी जांच के दौरान दिल की धड़कन सुनाई नहीं देती और रूक-रूक कर चलने वाली मद्धम साँसें भी समझ में नहीं आतीं. हालांकि, कुछ दवाएं जो हम रोगियों को देते हैं वे भी इस कार्य को कठिन बना सकती हैं.
ड्रग्स, टॉक्सिन्स और ठंडा पानी:
मस्तिष्क को नुकसान से बचाने के लिए कई बार रोगी को बेहोश करने वाली दवाएं दी जाती हैं और प्रमुख सर्जिकल प्रक्रियाओं के लिए एनेस्थीसिया में भी इसका उपयोग किया जाता है, खासकर अगर कुछ समय के लिए संचलन को रोकने के लिए ऐसा करना आवश्यक हो.
जीवित रहना कई बार साबित हुआ है:
बेहोश करने वाली यह दवाएं अगर अधिक मात्रा में दी जाएं तो रोगी की प्रतिक्रिया देने की क्षमता समाप्त हो जाती है और उसकी श्वास धीमी होने के साथ ही रक्त परिसंचरण कम हो जाता है, जिससे रोगी की मृत्यु होने का भ्रम होता है, लेकिन बाद में, जैसे ही दवा शरीर से निकल जाती है, व्यक्ति जाग सकता है. डायजेपाम (ब्रांड नाम वैलियम), अल्प्राजोलम (ब्रांड नाम ज़ैनक्स) दोनों की वजह से लोगों को गलती से मृत घोषित किया गया है. इसी तरह कुछ विषाक्त पदार्थों का भी ऐसा ही प्रभाव हो सकता है. ठंडे पानी में डूबने से भी मृत्यु का भ्रम हो सकता है. पानी में काफी समय तक रहने के बाद जीवित रहना कई बार साबित हुआ है.
रक्तचाप को कम करने के दौरान होती है:
आपातकालीन चिकित्सा में, यह हमेशा से सिखाया जाता है कि एक डूबे हुए रोगी को तब तक मृत नहीं माना जाता जब तक उसका शरीर गर्म नहीं हो जाता. 70 मिनट तक ठंडे पानी में डूबे रहने के बाद भी व्यक्ति के जीवित रहने की घटनाएं हुई हैं. व्यक्ति के बेहोशी की हालत में होने पर भी मृत्यु प्रमाणित करने वाले डॉक्टर धोखा खा सकते हैं. वेगस तंत्रिका (शरीर में सबसे लंबी कपाल तंत्रिका) की सक्रियता बेहोशी, हृदय की गति को धीमा करने और रक्तचाप को कम करने के दौरान होती है.
काफी देर तक बेहोश रहने के बाद जाग गई हो:
होंडुरास से सामने आए एक बहुत ही दुखद मामले में जीवित को मृत ठहराने के पीछे यह वजह हो सकती है. मामला कुछ यूं था कि एक गर्भवती किशोरी की गोलियां चलने की आवाज सुनकर सदमे से मौत हो गई. उसके अंतिम संस्कार के एक दिन बाद उसकी कब्र के भीतर से उसके चीखने की आवाजें सुनी गईं. बहुत मुमकिन है कि वह काफी देर तक बेहोश रहने के बाद जाग गई हो. इस तरह के कई मामले यूरोप से बाहर सामने आए. मृत्यु प्रक्रिया की चिकित्सा पुष्टि में भौगोलिक भिन्नता इसकी वजह हो सकती है. शायद इस संबंध में गलती तब होती हैं जब लोगों के पास डॉक्टर का खर्च वहन करने की संभावना कम होती है. कारण जो भी हो, इस तरह के मामले सनसनीखेज होने के कारण मीडिया में दिखाई देते हैं, लेकिन राहत की बात यह है कि यह बहुत दुर्लभ हैं. सोर्स-भाषा