जयपुर: राजस्थान में भजन लाल सरकार का निर्माण हो गया है,बीजेपी की सरकार का मंत्रिपरिषद सामने आ चुका है अब 19जनवरी से विधान सभा का सत्र है. उधर पूर्व विधायक संघ ने विधान परिषद की मांग को बुलंद कर दिया है. पूर्व विधायक संघ के अध्यक्ष और वरिष्ठ विधायक हरिमोहन शर्मा का कहना है कि राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य है यहां विधान परिषद होनी चाहिए. गहलोत सरकार के समय इस बारे में प्रस्ताव बनाकर केंद्र सरकार को भेजा गया था लेकिन तकरीबन 12 सालों से केंद्र सरकार के पास प्रस्ताव अटका पड़ा है, राज्य की विधानसभा सर्व सम्मत प्रस्ताव पारित कर चुकी है.
अब एक बार फिर विधान परिषद का जिन्न बंद बोतल से बाहर आया है. राज्य में बीजेपी सरकार के गठन के साथ ही फिर विधान परिषद की मांग उठी है. उसके पीछे कारण भी है केंद्र और राज्य दोनों जगह एक ही दल की सरकार है. पिछली गहलोत सरकार के समय विधान सभा ने विधान परिषद के गठन की प्रतिबद्धता दिखाई गई थी लेकिन गठन नहीं हो पाया था , जबकि राज्य की विधानसभा की इमारत में विधान परिषद भवन बनकर तैयार है. तकरीबन 12 सालों से केंद्र के पास प्रस्ताव अटका पड़ा है. राज्य की विधानसभा ने विधान परिषद को लेकर सर्व सम्मत प्रस्ताव पारित किया था. पूर्व विधायक संघ बरसों से ये मांग कर रहा है , संघ के अध्यक्ष और वरिष्ठ विधायक हरिमोहन शर्मा ने कहा कि विधान परिषद बनने से राजस्थान को विकसित राज्य बनाने में मदद मिलेगी , राजस्थान विधानपरिषद के मापदंडों को पूरा करता है,पक्ष और विपक्ष दोनों चाहते है.
बीजेपी की वसुंधरा राजे के पहले कार्यकाल में भी केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया था,उस समय मनमोहन सरकार थी. विधान परिषद के गठन को लेकर 18 अप्रैल 2012 को गहलोत सरकार के समय विधानसभा में सर्वससम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भिजवाया था,उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी, यूपीए सरकार ने भी काम आगे नहीं बढ़ाया और यह मुद्दा केवल चर्चा तक सीमित रह गया. बाद में केंद्र सरकार ने चिट्ठी लिखकर विधान परिषद का लेकर राज्य की मंशा पूछी, उस चिट्ठी का जवाब भी दे दिया गया. केंद्रीय विधि और न्याय मंत्रालय ने 18 अप्रैल 2012 को राजस्थान विधानसभा में पारित हुए विधान परिषद के गठन के प्रस्ताव पर संसद की स्टैंडिंग कमेटी के सुझावों के लेकर राज्य सरकार की राय मांगी थी. विधान परिषद के निर्माण के लिए बिल को संसद के समक्ष पेश करना जरूरी होता है. साथ ही इसके लिए राष्ट्रपति की सहमति की भी आवश्यकता होती है. फिलहाल देश के 6 राज्यों में है विधान परिषद का प्रावधान है जिनमें आंध्र प्रदेश ,उत्तर प्रदेश, तेलंगाना ,कर्नाटक, महाराष्ट्र और बिहार में शामिल है. राजस्थान के अलावा पश्चिम बंगाल सहित कई राज्य कई सालों से केंद्र सरकार से विधान परिषद के गठन की मांग कर रहे हैं. वर्तमान में देश के छह राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में विधान परिषद है.
--- कैसे होता है विधान परिषद का गठन---
- संविधान के अनुच्छेद 169, 171(1) एवं 171(2) में विधान परिषद के गठन का प्रावधान
-विधानसभा में उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित करना होता है प्रस्ताव
-विधानसभा में पारित होने के बाद संसद के पास भेजा जाता है प्रस्ताव
-अनुच्छेद 171(2) के अनुसार लोकसभा एवं राज्यसभा साधारण बहुमत से प्रस्ताव करती है पारित
-राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होते ही विधान परिषद के गठन की मिल जाती है अनुमति
-6 वर्ष होता है सदस्यों का कार्यकाल
-प्रत्येक दो साल में एक तिहाई सदस्यों की सदस्यता हो जाती है समाप्त
-राष्ट्रपति के चुनाव में मत का अधिकार नहीं
-परिषद के लगभग एक तिहाई सदस्यों का विधान सभा के सदस्यों की ओर से चयन
-एक तिहाई निर्वाचिका द्वारा, जिसमें नगरपालिकाओं के सदस्य, जिला बोर्डों और राज्य में अन्य प्राधिकरणों के सदस्यों द्वारा.
-शैक्षणिक क्षेत्र से जुड़े सदस्यों सहित
-राज्यपाल द्वारा साहित्य, विज्ञान, कला, सहयोग आन्दोलन और सामाजिक सेवा में उत्कृष्ट कार्य करने वाले व्यक्तियों में से नियुक्ति
- राजस्थान में 200 MLA के साथ होंगे 67विधान परिषद सदस्य
----एमएलसी बनने के लिए योग्यताएं --
भारत का नागरिक होना चाहिए.
न्यूनतम 30 वर्ष की आयु होनी चाहिए.
मानसिक रूप से असमर्थ, व दिवालिया नहीं होना चाहिए.
उस क्षेत्र की मतदाता सूची में उसका नाम होना आवश्यक.
समान समय में वह संसद का सदस्य नहीं होना चाहिए
विधान परिषद की मंजूरी में दिक्कत ये भी है की सालाना 355 करोड़ रुपए भार पड़ेगा.विधायकों के भत्तों के आधार पर सालाना 20 करोड़ के वेतन-भत्ते, 335 करोड़ सालाना जनपयोगी कार्यो के लिए अभिशंषा और शुरूआत में इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए खर्च हो सकती है करोड़ों की राशि. पहले भी विधान परिषद का प्रस्ताव केंद्र में भेजा हुआ है और पहले से ही 10-11 राज्यों के विधानपरिषद के गठन के प्रस्ताव केंद्र सरकार में लंबित चल रहे हैं.
---राजस्थान में आखिर क्यों जरूरी है विधान परिषद--
-क्षेत्र फल के आधार पर राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य
- राजस्थान के कुछ जिले तो देश के कुछ छोटे राज्यों के बराबर है
-जाति और क्षेत्रीय अनुपात को बैलेंस करने सियासी कारणों के मद्देनजर विधान परिषद की आवश्यकता
- विधान परिषद बनने से राज्य के प्रतिभा संपन्न और गुणी लोग कानून बनाने में अपनी प्रत्यक्ष भूमिका निभा सकेंगे जो चुनाव लड़कर आने की स्थिति में नहीं है
- प्रमुख सियासी चेहरों के लिए दरवाजे खुलेंगे
सत्ता में आने के बावजूद बीजेपी के कई दिग्गज चुनाव हार गए,ऐसा कांग्रेस के साथ भी हुआ है. बीजेपी के दिग्गज राजेंद्र राठौड़, सतीश पूनिया, प्रभु लाल सैनी, चंद्रकांता मेघवाल, विट्ठल शंकर अवस्थी, रामकिशोर मीना सरीखे नेता आज विधायक नही है. वहीं कांग्रेस के भी कई दिग्गज चुनाव हार गए चाहे वो रामलाल जाट,ममता भूपेश, प्रमोद जैन भाया, रघुवीर मीणा सरीखे नेता क्यों ना हो साथ ही राजस्थान में ऐसी गुणी और प्रबुद्ध प्रतिभाएं है जो प्रदेश के सर्वांगीण विकास में भागीदार बन सकती है.