08-01-19 03:29:00
बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जानते हैं। यहां भी उड़द की दाल, चावल, तिल, खटाई और ऊनी वस्त्र दान करने की परंपरा है। वहीं तमिलनाडू में तो इस पर्व को चार दिनों तक मनाते हैं। यहा पहला दिन ' भोगी - पोंगल, दूसरा दिन सूर्य- पोंगल, तीसरा दिन 'मट्टू- पोंगल' और चौथा दिन ' कन्या- पोंगल' के रूप में मनाते हैं। यहां दिनों के मुताबिक पूजा और अर्चना की जाती है।
बंगाल में इस दिन गंगासागर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है। मकर संक्रांति के दिन यहां स्नान करने के बाद तिल दान करने की प्रथा है। कहा जाता है कि इसी दिन यशोदा जी ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए व्रत रखा था। साथ ही इसी दिन मां गंगा भगीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए गंगा सागर में जा मिली थीं। यही वजह है कि हर साल मकर संक्रांति के दिन गंगा सागर में भारी भीड़ होती है।
हरियाणा और पंजाब में इसे 14जनवरी से एक दिन पूर्व यानि 13 जनवरी को मनाते हैं। वहां इस पर्व को 'लोहिड़ी' के रूप में सेलिब्रेट करते हैं। इस दिन अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने मक्के की उसमें आहुति दी जाती है। यह पर्व नई-नवेली दुल्हनों और नवजात बच्चे के लिए बेहद खास होता है।
उत्तर प्रदेश में इस पर्व को 'दान का पर्व' कहा जाता है। इसे 14 जनवरी को मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन से यानी कि 14 जनवरी मकर संक्रांति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है और शुभकार्य किए जा सकते हैं। प्रदेश में इस दिन हर जगह आसमान पर रंग-बिरंगी पतंगें लहराती हुई नजर आती हैं।
नई दिल्ली। देशभर में हर त्यौहार का अपना अलग महत्त्व है, लेकिन मकर संक्रांति का पर्व हर धर्म और देश के हर हिस्से में मनाया जाता है। मकर संक्रांति न सिर्फ अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है बल्कि नेपाल में भी इसे बड़ी धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है। अलग-अलग जगहों पर इसके अलग-अलग नाम मशहूर हैं। दरअसल पंजाब में इसे 'माघी', राजस्थान में 'संक्रात', असम में 'माघ बिहू', कुमांऊ में 'घुघुतिया', उड़ीसा, बिहार और झारखंड में 'मकर संक्रांति' के नाम से ही जाना जाता है।