तस्वीरों में देखें, कुछ इस तरह से मनाया गया था देश में पहला गणतंत्र दिवस

25-01-19 05:49:00

नई दिल्‍ली। देश में कल 26 जनवरी के मौके पर 70 साल बाद एक बार फिर से गणतंत्र दिवस मनाया जाएगा। यह समारोह हर साल 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र बनने के उपलक्ष्‍य में मनाया जाता है, जो भारत की विविधता में एकता की अनूठी विरासत को प्रदर्शित करता है। भारत ने 70 साल पहले 26 जनवरी, 1950 को अपना पहला गणतंत्र दिवस मनाया था, जब इंडोनेशिया के राष्‍ट्रपति सुकर्णो इस समारोह के अतिथि बने थे और तब दक्षिण-पूर्वी एशिया में उनकी खास पहचान थी। इस बार आसियान देशों के नेताओं को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है।

वर्ष 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद से ही यह समारोह देश की विविधता में एकता की अनूठी विरासत और आधुनिकता के सामंजस्‍य को प्रदर्शित करता आया है। साल-दर-साल भारत की उपलब्धियों का प्रदर्शन भी इस समारोह में होता है। देश की सुरक्षा और इसकी आन-बान-शान के लिए बलिदान को हमेशा तत्‍पर फौज की क्षमता का भव्‍य प्रदर्शन भी इसमें होता रहा है। राजपथ पर होने वाले परेड जहां भारत की सैन्‍य क्षमता को प्रदर्शित करते हैं, वहीं झांकियां एकता में पिरोई विविधताओं की झलक पेश करती हैं। इस समारोह के लिए भारत हर बार मुख्‍य अतिथि के तौर पर किसी न किसी देश की सरकार के प्रमुख को आमंत्रित करता रहा है।

अब तक भारत ने दो से अधिक देशों के नेताओं को कभी अतिथि के तौर पर आमंत्रित नहीं किया, लेकिन इस बार भारत ने परंपराओं से हटते हुए 10 देशों के नेताओं को गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्‍य अतिथियों के तौर पर आमंत्रित किया है, जो ASEAN देशों के नेता हैं। निश्चित रूप से यह गणतंत्र दिवस कई मायनों में खास है, लेकिन क्‍या पहले गणतंत्र दिवस समारोह को कभी भूला जा सकता है?

देश जब अपना पहला गणतंत्र दिवस मना रहा था तो उसे ब्रिटिश उपनिवेश से आजाद हुए चंद साल ही हुए थे। उस वक्‍त की जनभावनाएं बिल्‍कुल अलग थीं। कई मायनों में यह अलग था। यह जानना दिलचस्‍प होगा कि भारत के पहले गणतंत्र दिवस की परेड कैसी रही थी? पुराने किले के बैकग्राउंड में एम्‍फीथियरेटर में तब सैनिकों ने रोंगटे खड़े कर देने वाला मार्च किया था। बिना किसी सुरक्षा कवर के विजय चौक पर सवारी करते हुए भारत के पहले राष्‍ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद इस ऐतिहासिक दिन का गवाह बने थे।

रिकॉर्ड्स के मुताबिक, परेड में तीनों सेनाओं के 3000 अधिकारियों और पुलिसकर्मियों हिस्‍सा लिया था। उस ऐतिहासिक पल का साक्षी बनने के लिए लगभग 15, 000 लोग इकट्ठा हुए थे। दिल्‍ली की सड़कों से होकर राष्‍ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का काफिला निकला तो 'भारत माता की जय' के नारे लगते रहे। यह काफिला जब तक इरविन एम्‍फीथियेटर तक पहुंचा, हर गली से जयकारे लगते रहे। यह जगह अब मेजर ध्‍यानचंद नेशनल स्‍टेडियम के नाम से जाना जाता है