VIDEO: चार साल में 51 अंडे और नन्हें गोडावण आए नजर, 15 साल में पहली बार गोडावण की संख्या 200 पार पहुंचने की संभावना, देखिए ये खास रिपोर्ट

जैसलमेर : देश के पश्चिमी छोर पर बसे सीमावर्ती जिले जैसलमेर से 'द ग्रेट इंडियन बस्टर्ड' (गोडावण) को लेकर अच्छी खबर सामने आई है. अब धीरे धीरे गोडावण का कुनबा अब बढ़ने लगा है.जैसलमेर में इस बार मानसून के सीजन में भी अच्छी बारिश के चलते डेजर्ट नेशनल पार्क में 7 मादा गोडावण ने नए अंडे दिए है. वहीं ब्रिडिंग सेंटर में भी गोडावण ने मेटिंग कर दो नन्हें गोडावण को जन्म दिया है. फील्ड में भी सर्वे के दौरान 2 मादा गोडावण अपने नन्हें गोडावणों के साथ नजर आई थी. जिससे गोडावण प्रेमियों में ख़ुशी देखी जा रही है.

पिछले करीब चार दशक से गोडावण संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं. अब तक करोड़ों रुपए खर्च करने के साथ-साथ विदेशी विशेषज्ञों ने भी यहां के ब्रिडिंग सेंटर में प्रयास किए. अब तक सम व रामदेवरा के ब्रीडिंग सेंटर में कुल 29 गोडावणों की फौज तैयार की गई है. वहीं ब्रीडिंग सेंटर में हेचिंग से लेकर गोडावण के बड़े होने तक उनका पालन पोषण किया जा रहा है. ब्रीडिंग सेंटर में ही जन्मे गोडावण अब नई पीढ़ी को भी जन्म दे रहे हैं. यह इस सेंटर की बड़ी सफलता के रूप में देखी जा रही है.  इस साल से पहले कभी भी डीएनपी क्षेत्र में एक साथ इतनी मादा गोडावण ने प्रजनन कर अंडे नही दिए है. इस बार क्लोजर व ब्रीडिंग सेंटर में मादा गोडावण का प्रजनन बढ़ गया है. 2018 में डब्ल्यूआईआई देहरादून ने गोडावण की गणना की थी, उस समय गणना में 128  का आंकड़ा अधिकृत रूप से जारी किया गया था.

मानव दखल से बचाने के लिए डीएनपी द्वारा जिले में 75 क्लोजर और 2 ब्रीडिंग सेंटर बनाएं गए है. यहां गोडावण पूरी तरह से सुरक्षित है. जिले में डीएनपी द्वारा अब तक 75 क्लोजर बना दिए गए है. इसके साथ ही पिछले साल सरकार द्वारा 109 वर्ग किलोमीटर जमीन को राजस्व से हटाकर वन विभाग को सुपुर्द कर दी गई है. जिसके बाद अब डीएनपी द्वारा 800 हैक्टेयर में कुल 3 क्लोजर का निर्माण करवाया जा रहा है.

गोडावण में पिछले कुछ सालों में प्रजनन बढ़ने का सबसे बड़ा कारण यही है कि इन क्लोजरों और ब्रीडिंग सेंटर में गोडावण खुद को सुरक्षित महसूस करते हैं. वहीं अब 3 नए क्लोजर भी डीएनपी में बन रहे हैं. क्लोजर को जहां पूरी तरह से तारों से बंद कर रखा है. वहीं इसकी नींव में सीमेंट से छोटी दीवार बनाई गई है ताकि सूअर व कुत्ते इन क्लोजरों में घुसकर गोडावण का शिकार न कर सकें. पिछले सालों में हुए प्रयासों और इस साल के सुखद परिणामों के बाद माना जा रहा है कि अब गणना की जाए तो गोडावण की संख्या 200 के पार होने की संभावना जताई जा रही है.