Jaisalmer: भारत-पाक सीमा पर विजयदशमी पर्व पर BSF ने किया शस्त्र पूजन, जानिए क्या है महत्व

जैसलमेर: देश की सीमाओं की सुरक्षा के लिए वर्ष पर्यन्त मुस्तैदी के साथ डटे रहने वाले सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियों और जवानों ने आज विजयादशमी के मौके पर विधि विधान के साथ शस्त्र पूजन किया. इस दिन भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के अनुसार रावण रूपी अहंकार का अंत हुआ था ये दिन भारतीय सेना के लिए भी खास है क्यों की इसी दिन जवान अस्त्र शस्त्र की पूजा अर्चना करते है इस हेतु तीनों सेनाओं, पैरामिलेट्री फोर्स के बटालियन परिसर में कार्यक्रम आयोजित कर अस्त्र शस्त्रों की पूजा अर्चना की जाती है. ऐसा ही कार्यक्रम आज जैसलमेर की सम रोड़ स्थित सीमा सुरक्षा बल की 1022 तोपखाना रेजिमेंट के परिसर में आयोजित हुआ. 

बल के सेक्टर मुख्यालयों और बटालियन परिसरों में हुए पूजन कार्यक्रम में शामिल अधिकारियों के साथ जवानों के चेहरों पर गौरव दमक रहा था. सभी की यही प्रार्थना थी कि सीमापार बैठे भारत के दुश्मन हमारी सीमाओं की तरफ आंख उठाकर देखने की भी जरूरत नहीं करे. सीमा सुरक्षा बल के सेक्टर और बटालियनों में अवस्थित मंदिरों में पारम्परिक रूप से काम आने वाले शस्त्रों का मंत्रोच्चारण के बीच पूजन करवाया गया, जिसमें बल के आला अधिकारियों के अलावा बड़ी संख्या में जवान शरीक हुए. बल के पुजारियों ने शस्त्रों पर पुष्पवृष्टि की और शक्ति मंत्रों का उच्चारण किया. 

रामायण और महाभारत काल से चली आ रही परंपरा: 
1022 बीएसएफ तोफखाना रेजिमेंट कमांडेंट एस एस पावर ने बताया ने बताया कि इनकी पूजा में अस्त्र-शस्त्रों को सामने रखकर पूजा करने की परंपरा रामायण और महाभारत काल से चली आ रही है. हमारी BSF आज भी इस परंपरा को निभाती है और विजयादशमी के दिन अस्त्र-शस्त्र की पूजा करती है. हर साल दशहरे के दिन शस्त्र पूजा करती है. इस पूजा में सबसे पहले मां दुर्गा की दोनो योगनियां जया और विजया की पूजा होती है फिर अस्त्र-शस्त्रों को पूजा जाता है. 

इस पूजा का उद्देश्य सीमा की सुरक्षा में देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना:
इस पूजा का उद्देश्य सीमा की सुरक्षा में देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना है. मान्यताओं के अनुसार रामायण काल से ही शस्त्र पूजा की परंपरा चली आ रही है. भगवान राम ने भी रावण से युद्ध करने से पहले शस्त्र पूजा की थी. शस्त्र पूजा के शस्त्रों को इकट्ठा किया जाता है फिर उनपर गंगाजल छिड़का जाता है. इसके बाद सभी शस्त्रों को हल्दी व कुमकुम का तिलक लगाकर फूल अर्पित किए जाते हैं.