Mahashivratri 2023: तसई के पातालेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ में छिपे हैं कई रहस्य, जाने विशेषता

कठूमर(अलवर): जिले के अतिप्राचीन धरोहर कठूमर के तसई गांव का पतालेश्वर महादेव मंदिर की कई गौरव गाथा गर्भ में छिपी है. तसई  गांव में भगवान शिव पतालेश्वर महादेव के रूप में आज भी विराजमान हैं. महाशिवरात्रि को इनके दर्शन और पूजा के लिये को दर्जनो गांवो के भक्त आज भी पहुंचते हैं.

पतालेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ में छिपे हैं कई रहस्य:
गांव के टीले पर बने मुख्य धरातल से जमीन के अंदर  करीब 50 फुट की गहराई में पतालेश्वर महादेव मंदिर के गर्भ में आज तक कई रहस्य छीपे है. मंदिर में अंदर जाने  मुख की दीवार पर एक शिला पट्टिका लगी है. बताया जाता है जिसे अंग्रेजों और अन्य विद्वानों ने पढ़ने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली. 

अर्पित जल चला जाता है पाताल में:
पतालेश्वर महादेव के बारे में  गांव के ही रहने वाले बुजुर्गो का कहना है यहां पहले सिधियां परिवार का उसके बाद भरतपुर राजघराने और फिर उसके बाद अलवर  महाराज का राज रहा मंदिर का अनेक बार जीर्णोद्धार हुआ. प्रत्येक काल में राजा और रानी जब भी यहां के दौरे पर होते पतालेश्वर महादेव की पूजा करने थे. मंदिर के दूंदी पत्थर से बने शिवलिंग पर जलाभिषेक करते थे तो जल गड़गड़ की आवाज से पाताल में चला जाता है. जल कहा जाता है इसका पता आज तक कोई नहीं लगा पाया. इसलिए लोग इन्हें पतालेश्वर महादेव कहते हैं. 

इस रहस्य को जानने की अंग्रेजों ने कई बार कोशिश की:
बताया जाता है इस रहस्य को जानने की अंग्रेजों ने कई बार कोशिश की पर वे इसका पता नहीं लगा सके. इर्द गिर्द और गांव के टीले की जमीन खुदाई में कई पत्थर और दो फुट लंबाई ईंट और खंडित मूर्ति निकलती है. जो गांब में सुरक्षित रखे हैं. किंवदंतियों के अनुसार मंदिर का निर्माण ढ़ाई हजार साल पहिले मध्य प्रदेश के सिंधिया राज घराने कराया. हर वर्ष सावन के महीने और महाशिवरात्रि में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ होती है. 

ग्रामीणों ने पुरातत्व विभाग को लिखित और मौखिक जानकारी दी:
सरपंच मुकेश सिंह चौहान ने बताया इस प्राचीन मंदिर और यहां की धरोहर की ओर सरकार और पर्यटन विभाग ने कभी ध्यान नहीं दिया ना ही कभी कोई पहल भी नहीं की गई. दशकों पूर्व ग्रामीणों ने पुरातत्व विभाग को लिखित और मौखिक जानकारी दी. लेकिन फिर भी सरकार और संबंधित पुरातत्व या फिर पर्यटन विभाग का ध्यान इस ओर नहीं गया. वर्तमान में इस प्राचीन धरोहर के रखरखाव ग्रामीण समिति के माध्यम से करते हैं.