Swachhta Survekshan-2024: स्वच्छता सर्वेक्षण को लेकर केंद्र सरकार ने जारी की गाइडलाइन, सर्वेक्षण में बारीकियों को भी परखा जाएगा

जयपुर: केंद्र सरकार ने स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 के लिए जो गाइडलाइन जारी किया है. इसके अनुसार राजधानी जयपुर के दोनो नगर निगमों को जिस तरह से कार्य करना चाहिए. वह नहीं हो पा रहा है. सर्वेक्षण में जिन बारीकियों को परखा जाएगा उनको निगमों के अधिकारियों द्वारा शायद नजर अंदाज कर दिया जा रहा हैं.  इससे  इससे सर्वेक्षण के दौरान मिलने वाले अंक में कटौती हो सकती हैं. 

केन्द्र सरकार द्वारा सालाना कराए जाने वाला स्वच्छ सर्वेक्षण अब अपने अंतिम दौर में हैं. पिछले सर्वेक्षण यानि साल 2023 के परिणाम में जयपुर के दोनो नगर निगम फीसड्डी साबित हुए थे. हैरिटेज निगम की 171 वीं और ग्रेटर निगम की 173 वीं रैंक रही थी. जो साल 2022 में 26 और  33 हुआ करती थी. वह साल 2024 में कैसी रहेगी. मौजूदा समय में नगर निगमों का पूरा फोकस इसी बात पर टिका हुआ हैं. निगमों के प्रशासन ने दिखावे के लिए पूरी ताकत झोंक दी हैं. 

लोगों को जागरूक करने से लेकर सफाई के इंतजाम करने में निगमों के अधिकारी अब बड़ी मुस्तैदी से जुटे हुए दिखाई दे रहे हैं.  लेकिन जितना अधिकारियों का फोटो खिंचवाने में ध्यान हैं. धरातल पर उतना काम होते दिखाई नहीं दे रहा हैं.  पहले आप वो मानक देखिए जिन पर कि देश का सबसे बड़ा स्वच्छ सर्वेक्षण होने जा रहा हैं.  

-इस बार स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 में स्वच्छता की प्रतिस्पर्धा 9500 अंकों की
-इसमें 14 प्रतिशत जन आंदोलन, 26 प्रतिशत प्रमाणीकरण और 60  प्रतिशत सेवा स्तर के अंक होंगे
-5705 अंक सिर्फ सेवा स्तर में प्रगति को अंकि करेंगे    
-बाकी 5705 में से 2853 अंकों का है  
-जिनमें विरासती अपशिष्ट प्रबंधन और डंपसाइट उपचार – 4 %
-पृथकीकृत संग्रहण एवं परिवहन –13  %
-संकेत सूचक – 14%
-दर्शनीय स्वच्छता –17%
-स्वच्छता उपयोगिता जल प्रबंधन एवं सफाई मित्र सुरक्षा 22 %
-ठोस अपशिष्ट प्रबंधन –30 %
-सेवा स्तर प्रगति के अंकों के लिए यहां देना होगा ध्यान 26 %

अब इन नंबरों के मुताबिक यदि बात करें तो शहर के नगर निगमों की परीक्षा में अंकों का कटना इस बात से तय है कि क्योंकि आज  राजधानी के दोनो नगर निगम क्षेत्रों में खुले में कचरा फैला हुआ दिखाई देता हैं. करीब तीन हजार से अधिक ओपन डिपो दोनो नगर निगमों के लिए खत्म करना केवल चुनौती बनकर ही रह गया हैं. सड़कों के किनारे होने वाली सफाई का स्तर संतोष जनक नहीं हैं. हैरिटेज नगर निगम में गंदी गलियों के लिए करोड़ों रुपए बहाए गए है. लेकिन उस पर कोई काम ही शुरू नहीं हो सका हैं. सरकारी दफ्तरों से लेकर सड़कों पर जगह-जगह रेड स्पॉट दिखाई देना आम बात हैं. 

जयपुर में वाटर ड्रेनेज सिस्टम के फेल्योर की बात किसी से भी छुपी नहीं हैं. बारिश के दिनों में जलनिकासी नहीं होने से शहर को पानी पानी होना पड़ता हैं. डोर-टू-डोर कचरा कलेक्शन में लेट लतीफी, हूपर्स के नहीं पहुंचने के की शिकायतों के निगमों के कॉल सेंटर पर प्रतिदिन शिकायतों के ढेर लगे हुए हैं. सेग्रिकेशन केवल फोटो खिंचवाने तक सीमित दिखाई देता हैं.  क्योंकि -90 फीसदी से अधिक गीला-सूखा उठाने और हानिकारक कचरा अलग करने पर 300 अंक निर्धारित हैं, लेकिन दोनों में से एक भी निगम को यह अंक मिलते हुए नहीं दिखाई दे रहे हैं. -सिंगल यूज प्लास्टिक का भी उपयोग शहर में धड़ल्ले से हो रहा है. सब्जी मंडी से लेकर बाजारों में प्रतिबंधित प्लास्टिक का उपयोग नियमित रूप से हो रहा है. इसकी वजह से सर्वेक्षण के दौरान अंकों में कटौती तय है. सर्वेक्षण में 150 अंक निर्धारित किए गए हैं. खाली भूखंड़ों में कचरे के जगह-जगह ढेर लगे हैं.  इन पर कोई कार्यवाहीं नहीं दिखाई देती हैं. 

जयपुर में तीन बड़े कचरागाह हैं. इनको खत्म करने का काम निगम शुरू नहीं कर पाया है, जबकि इंदौर और सूरत कचरागाहों को सुंदर बना चुके हैं. वहां पार्क और खेल मैदान तक बन चुके हैं, लेकिन यहां के कचरागाह के पास से निकलना मुश्किल हो जाता है. विवाह स्थल, शिक्षण संस्थान, व्यावसायिक कार्यालय से लेकर होटल, रेस्टोरेंट और होटल को खुद कचरे से खाद बनाने की मशीन लगानी होगी. इसके 100 अंक तय किए हैं, लेकिन शहर में इस नियम की पालना 20 फीसदी ही हो रही है. दोनो नगर निगमों के लिए सोलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत सीएनडी, एमआरएफ और आरडीएफ, वेस्ट टू एनर्जी प्लांट केवल कागजों में ही बन रहे हैं. इसके तहत भी नंबर कटना तय हैं. इन सबके बीच निगम के नेताओं की माने तो जनता में जागरूकता का काम केवल दिखावे तक ही किया गया हैं.

सर्वेक्षण के अंकों पर नगर निगम परीक्षा के अंतिम दिनों तक भी तैयारियों में जुटा हैं. यह बात अलग है कि साल भर की मेहनत की होती तो शायद सर्वेक्षण के अंतिम दिनों में नहीं भागना पड़ता. नगर निगमों के जनप्रतिनिधियों की चुनावों में व्यस्तता रही. प्रशासन पर मॉनिटरिंग नहीं होने की भी एक वजह यह थी कि सर्वेक्षण के लिए पर्याप्त कोशिशें नहीं हो सकी और इनका धरातल पर रिजल्ट दिखाई नहीं दे रहा हैं.  जनता को जागरूक करने के साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों की  बैठकों के दौर चल रहे हैं. हैरिटेज निगम का तो दावा है कि 170 डिपो हटाने में कामयाब भी रहा है. जबकि ग्रेटर निगम के प्रशासन ने भी ओपन डिपो पर सख्ती बरतने के दावें किए हैं.

हालांकि निगमों द्वारा प्रतिदिन दावें किए जा रहे है जयपुर को जगमग करने से लेकर शहर की स्वच्छता में चार चांद लगाने की कोशिशें भी की जा रही हैं. लेकिन यह सबकुछ फौरी तौर पर केवल इम्तिहान को देखते हुए ही किया जा रहा हैं.  यदि शहर के नगर निगमों के प्रशासन द्वारा सालभर सक्रियता दिखाए और औपचारिकता के आगे धरातल पर भी मॉनिटरिंग को दुरूस्त करें तभी जाकर ओवर ऑल इस इम्तिहान के टॉप टेन शहरों में जयपुर को शामिल कराया जा सकता हैं. केवल दावें करने से तो नहीं.