रायबरेली व अमेठी में कांग्रेस की साख दांव पर, सोनिया, राहुल व प्रियंका ने लगा रखा पूरा जोर

रायबरेली व अमेठी में कांग्रेस की साख दांव पर, सोनिया, राहुल व प्रियंका ने लगा रखा पूरा जोर

जयपुर: लोकसभा चुनाव के लिए पांचवें चरण की वोटिंग 20 मई को होनी है. इस चरण में 49 संसदीय सीटों पर मतदान होगा, लेकिन इंडिया गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के पास इस चरण में महज एक ही रायबरेली की सीट है. इस सीट से कांग्रेस की साख दांव पर लगी है. इस बार यहां से राहुल गांधी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. रायबरेली के साथ ही गांधी परिवार से जुड़ी एक और सीट अमेठी पर भी सभी की निगाहें है. भले ही अमेठी से गांधी परिवार को कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा, लेकिन यहां की जीत-हार भी सीधे गांधी परिवार के खाते में जाएगी. 

लोकसभा की चुनावी जंग अब पांचवें चरण पर पहुंच गई है. पांचवें चरण की वोटिंग से पहले देश के सबसे बड़ी राजनीतिक राज्य उत्तरप्रदेश में चुनावी गर्मी चरम पर है. दरअसल 20 मई को होने वाले 49 सीटों के चुनाव में रायबरेली व अमेठी भी शामिल है. दोनों ही सीट गांधी परिवार की मानी जाती है. रायबरेली में सोनिया गांधी लगातार चुनाव जीत रही हैं, लेकिन बगल वाली अमेठी सीट का सियासी रंग बदल गया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी को बीजेपी की स्मृति ईरानी ने शिकस्त देकर गांधी परिवार के अभेद्य दुर्ग माने जाने वाले अमेठी में भगवा फहरा दिया. इस बार राहुल गांधी अमेठी के बजाय रायबरेली सीट से चुनावी मैदान में है, जिनका मुकाबला बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह से है. अमेठी सीट पर बीजेपी प्रत्याशी स्मृति ईरानी के खिलाफ कांग्रेस से गांधी परिवार के करीबी माने जाने वाले किशोरी लाल शर्मा चुनाव लड़ रहे हैं . इन दिनों सीट का परिणाम कांग्रेस के राजनीतिक भविष्य के लिए कितना अहम है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गांधी परिवार के तीनों स्तंभ सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी ने यहां पर पूरी ताकत झोंक रखी है. सोनिया गांधी करीब पांच साल बाद रायबरेली में किसी चुनावी मंच पर पहुंची और कहा कि मैं अपना बेटा रायबरेली की जनता को सौपंती हूं.

आपको बता दें कि रायबरेली वो सीट है, जो 2014 की मोदी लहर में भी कांग्रेस नहीं हारी. इतना ही नहीं, 2019 के चुनाव में भी जनता ने कांग्रेस पर भरोसा जताया और यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस सिर्फ इसी सीट पर चुनाव जीती थी. रायबरेली वो सीट है. जहां 72 साल के इतिहास में 66 साल कांग्रेस के सांसद रहे हैं. अब तक हुए 20 चुनाव में 17 बार कांग्रेस को जीत मिली है. 72 साल में गांधी परिवार से 7 लोग सांसद का चुनाव लड़े, इसमें 5 सदस्य सांसद बने. 20 साल से रायबरेली ने सोनिया गांधी को सांसद चुना है. लेकिन एक फैक्टर है, जो कांग्रेस की चिंता बढ़ा रहा है. वह है रायबरेली में कांग्रेस का घटता वोट बैंक और भाजपा का बढ़ता ग्राफ. 2009 में सोनिया गांधी को 72.23% वोट मिले थे. जबकि बीजेपी को सिर्फ 3.82% वोट मिला. बीजेपी और कांग्रेस के बीच तब वोटों का अंतर 68.41% का था. इसके बाद 2014 के चुनाव में सोनिया गांधी को 63.80% वोट मिले और बीजेपी को 21.05% वोट मिले .यानी कांग्रेस को (-8.43%) वोट का नुकसान हुआ और बीजेपी को (+17.23%) वोट का फायदा मिला. दोनों पार्टियों के वोट का अंतर घटकर 42.75% फीसदी हो गया. 2019 के चुनाव में सोनिया गांधी को 55.78% वोट मिले और बीजेपी को 38.35% वोट मिले. यानी कांग्रेस को (-8.02%) का नुकसान हुआ और बीजेपी को (+17.3%) का फायदा हुआ. जीत हार का अंतर घटकर 17.43% फीसदी रह गया है. अब चौथी अहम बात ये है कि रायबरेली में पिछली बार बीजेपी 17.43 फीसदी वोट के अंतर से हारी है और लगातार दो चुनाव में 17% से ज्यादा वोट बढ़ाती आ रही है.

रायबरेली व अमेठी सीट पर कांग्रेस की साख दांव पर है, इसलिए कांग्रेस आलाकमान ने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को यहां चुनाव लड़ाने का जिम्मा दिया है. रायबरेली सीट पर छत्तीसगढ़ के पूर्व सीएम भूपेश बघेल को सीनियर ऑब्जर्वर बनाया है, तो अमेठी जैसी मुश्किल सीट पर राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भेजा गया है. अब बात अमेठी की कर लेते है. अमेठी में पिछली बार राहुल गांधी भाजपा की स्मृति ईरानी से हार गए थे. इस बार कांग्रेस ने थोड़ी रणनीति बदली है. राहुल अमेठी छोड़कर रायबरेली से लड़ रहे है. दरअसल अमेठी का रण छोड़कर राहुल गांधी ने एक साथ कई निशाने साधे हैं. इसके पीछे कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति नजर आती है. एक तो कमजोर संगठन, दूसरा हार के बाद क्षेत्र से दूरी सहित कई ऐसे कारण हैं, जिसका जवाब कांग्रेस नहीं खोज पा रही थी. ऐसे में एक बीच का रास्ता निकाला गया. इसी का परिणाम था कि करीब एक माह से अमेठी और रायबरेली में प्रत्याशी चयन को लेकर बने सस्पेंस पर अंतिम क्षणों में पर्दा उठा. राहुल गांधी खुद रायबरेली चले गए और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा को मैदान में उतार दिया. किशोरी लंबे समय से गांधी परिवार के करीबी है. अशोक गहलोत व प्रियंका गांधी ने यहां पर चुनाव प्रचार व प्रबंधन का पूरा जिम्मा संभाल रखा है. प्रियंका गांधी ने अमेठी और रायबरेली में चुनाव प्रचार के लिए 10 दिन से अधिक समय तक वहां रहने का निर्णय लिया है. करीब 300 कार्यकर्ताओं की टीम ने अमेठी, तो 350 के करीब कार्यकर्ताओं की रायबरेली में टोली बनाई. हर दिन 20-22 नुक्कड़ सभाएं, जनता तक कांग्रेस का प्रचार, जनसभा, रोड-शो सब करने की योजना पर काम हुआ. राजनीति के चाणक्य अशोक गहलोत ने भी राजस्थान से पूरी टीम बुलाकर अमेठी के चप्पे चप्पे पर तैनात कर दी.

इन दोनों ही सीटों के सबसे अहम फेक्टर की अब बात कर लेते हैं. यह फैक्टर है समाजवादी पार्टी. पीएम नरेंद्र मोदी तो अपनी सभाओं में राहुल गांधी को नई दिल्ली का व अखिलेश यादव को लखनऊ का शहजादा कहते हैं, लेकिन अब इन दोनों की सियासी कैमिस्ट्री सिर्फ चुनावी रैलियों के मंच पर ही नहीं बल्कि जमीनी स्तर भी दिख रही है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने चुनावी तपिश के साथ ही अपने कार्यकर्ताओं को हिदायत दी थी कि उत्तर प्रदेश में जिन लोकसभा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, वहां वो यह मानकर पूरी ताकत लगाएं कि सपा का उम्मीदवार ही चुनावी मैदान में हैं. उनकी यह हिदायत गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाले रायबरेली और अमेठी में जमीनी स्तर पर नजर आ रही है, जहां कांग्रेस को जिताने के लिए लाल टोपी पहने सपा समर्थक पूरे दमखम के साथ जुटे हुए हैं. वहीं, अखिलेश यादव ने खुद भी सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस के लिए सभाएं की.  यहां 34 फीसदी से अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग हैं और मुकाबला दिलचस्प होगा.  अमेठी में 20 फीसदी अल्पसंख्यक मतदाता हैं. 18 फीसदी ब्राह्मण, 12 फीसदी क्षत्रिय हैं. सबसे अधिक 34 फीसदी ओबीसी, 26 फीसदी दलित हैं. जातियों का यह खेल इस बार भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है, क्योंकि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रही हैं.

रायबरेली की पांच में से चार सीट समाजवाद पार्टी के पास है. ऐसे में समाजवादी अगर मन से कांग्रेस के लिए वोट देते हैं और 2022 के विधानसभा चुनाव का परिणाम दोहराते है, तो यह कांग्रेस के लिए संजीवनी जैसा होगा, क्योंकि खुद कांग्रेस तो उन चुनाव में चार सीटों पर तीसरे नंबर पर रही थी. वहीं अमेठी लोकसभा सीट के तहत 5 विधानसभा सीटें आती हैं. इसमें तिलोई, सैलून, जगदीशपुर, गौरीगंज और अमेठी शामिल हैं. साल 2022 विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 3 सीटों और समाजवादी पार्टी को दो सीट मिली थी. यानि यहां पर भी कांग्रेस पूरी तरह सपा के समर्थन पर निर्भर है.