जयपुर: पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है. एक पौष माह की शुक्ल पक्ष में और दूसरी सावन माह के शुक्ल पक्ष में. इस साल पौष माह की पुत्रदा एकादशी का व्रत रविवार 21 जनवरी को रखा जाएगा. इस व्रत में जगत के पालनहार श्रीहरि विष्णु की पूजा आराधना की जाती है. मान्यता है कि पौष पुत्रदा एकादशी व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के बराबर पुण्यफल की प्राप्ति होती है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा.अनीष व्यास ने बताया कि रविवार 21 जनवरी को पुत्रदा एकादशी व्रत है. इस बार पुत्रदा एकादशी पर पांच शुभ योगों को संयोग बन रहा है, जो समृद्धिदायक होगा. संतान सुख की कामना के लिए पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत खास माना जा रहा है. इस इस दिन बन रहा दुर्लभ संयोग पूजा-व्रत का दोगुना फल प्रदान करेगा, जो सभी राशियों के लिए शुभफलदायी होगा. कुछ विशेष राशियों के लिए यह संयोग अत्यंत लाभकारी होगा. धर्म शास्त्रों के अनुसार मुख्य रूप से पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत पुत्र प्राप्ति के लिए रखा जाता है. ऐसे में जो लोग नि:संतान हैं, उनको यह व्रत जरूर रखना चाहिए. इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती.
ज्योतिषाचार्य डा.अनीष व्यास ने बताया कि पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर संतान के सुखद भविष्य और स्वस्थ जीवन के लिए व्रत किया जाता है. इस बार ये एकादशी रविवार को होने से इस दिन विष्णु जी के साथ ही सूर्य देव की पूजा का भी शुभ योग बना है. पति-पत्नी एक साथ ये व्रत करते हैं तो उनकी संतान से जुड़ी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं. संतान के कार्यों में आ रही बाधाएं दूर हो सकती हैं. माता-पिता ये व्रत संतान की सुखी की कामना से करते हैं. भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के साथ ही पांडवों को भी एकदाशी व्रत के बारे में बताया है. स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में एकादशी महात्म्य अध्याय में एकादशियों की कथाएं बताई गई हैं. श्रीकृष्ण ने कहा था कि जो लोग एकादशी व्रत करते हैं, उन्हें सुख-शांति के साथ ही सफलता भी मिलती है. जाने-अनजाने में हुए पापों से मुक्ति मिलती है.
शुभ योग
सर्वार्थ सिद्धि योग 21 जनवरी प्रात: 03.09 से सुबह 07.14 बजे तक
ब्रह्म योग 21 जनवरी सुबह 10.02 से 22 जनवरी सुबह 08.47 तक
शुक्ल योग 20 जनवरी रात 07.26 से 21 जनवरी रात 07.26 तक
अमृत सिद्धि योग 21 जनवरी प्रात: 03.09 से सुबह 07.14 तक
21 जनवरी बुध, मंगल, शुक्र ग्रह के धनु राशि में होने से त्रिग्रही योग बनेगा.
पौष पुत्रदा एकादशी तिथि
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पौष शुक्ल एकादशी तिथि की शुरुआत 20 जनवरी 2024 को शाम 07:27 मिनट से हो रही है. इस तिथि का समापन 21 जनवरी 2023 सायं 07:28 मिनट पर होगा. एकादशी का व्रत हमेशा सूर्योदय से प्रारम्भ होता है, इसीलिए उदयातिथि के अनुसार 21 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी व्रत रखा जाएगा.
विष्णु पूजन का समय - प्रातः 08:34 मिनट से दोपहर 12:32 मिनट तक
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत पारण का समय- 22 जनवरी प्रातः 07:14 मिनट से प्रातः 09:21 मिनट पर
ऐसे कर सकते हैं एकादशी व्रत
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पुत्रदा एकादशी पर सुबह जल्दी उठना चाहिए. स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं. घर के मंदिर में भगवान विष्णु की पूजा करें और व्रत करने का संकल्प लें. इसके बाद भगवान गणेश और फिर भगवान विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करें. दक्षिणावर्ती शंख में दूध भरकर श्रीकृष्ण का भी अभिषेक करें. विधिवत पूजा करें. जो लोग एकादशी व्रत करते हैं, उन्हें पूरे दिन अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए. फलाहार करें और दूध पी सकते हैं.
विष्णु-लक्ष्मी की पूजा
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पुत्रदा एकादशी की सुबह घर के मंदिर में भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. इसके बाद शंख में जल और दूध लेकर प्रतिमा का अभिषेक करें. भगवान को चंदन का तिलक लगाएं. चावल, फूल, अबीर, गुलाल, इत्र आदि से पूजा करें. इसके बाद धूप-दीपक जलाएं. लाल-पीले चमकीले वस्त्र अर्पित करें. मौसमी फलों के साथ सुपारी भी रखें. गाय के दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं. भगवान की आरती करें. ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करें. इस पूजा करने के बाद भगवान से जानी-अनजानी गलतियों के लिए भगवान से क्षमा याचना करें. पूजा के बाद प्रसाद बांटें और खुद भी लें.
रविवार को करें सूर्य की पूजा
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि रविवार को सुबह जल्दी उठें और स्नान के बाद सूर्य देव को जल चढ़ाएं. इसके लिए तांबे के लोटे में जल भरें. कुमकुम, चावल, लाल फूल लोटे में डालें और अर्घ्य अर्पित करें. सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: का जप करें.
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस व्रत को करने से श्रीहरि विष्णु के अलावा मां लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है. धार्मिक मान्यता है कि यदि कोई जातक इस व्रत को विधि पूर्वक करता है, तो जल्द ही उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है. इसके अलावा लंबे समय से रुके हुए कार्य भी पूरे हो सकते हैं.