राजस्थान में बनेगा तीसरा मोर्चा, कोशिशों में जुटे हनुमान बेनीवाल और AAP, गैर बीजेपी-गैर कांग्रेस दलों के साथ गठबंधन के संकेत ! जानिए क्या है साझा ताकत

जयपुर: मंत्री पद से विदाई और लाल डायरी प्रकरण के साथ ही राजेंद्र सिंह गुढ़ा को विभिन्न दलों के ऑफर मिलने लग गए है. हालांकि खुद ने अभी तय नहीं किया कि किस दल में जाएंगे. वैसे राजस्थान की चुनावी राजनीति में मुख्य मुकाबले वाले राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा है, तीसरे मोर्चे का यहां कोई खास वजूद कभी नहीं रहा...फिर भी कोशिशें जारी है. पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी से छह विधायक जीते थे जो आगे चलकर कांग्रेस में शामिल हो गए आरएलपी के तीन विधायक जीते हैं आर एल डी का एक विधायक जीता है भारतीय ट्राइबल पार्टी के दो विधायक जीते थे कम्युनिस्ट पार्टी के 2 विधायकों ने जीत दर्ज की थी. त्रिशंकु विधानसभा की नौबत आने पर सत्ता में भागीदारी के अच्छे अवसर मिल सकते हैं.

राजेंद्र सिंह गुढा प्रकरण में अब लाल डायरी को सदन में लहराने के बाद इन राजनीतिक कयासों को बल मिला है कि वो अब किस पार्टी में आयेंगे ..या फिर अकेले ही उदयपुरवाटी से ताल ठोकेंगे. गुढ़ा को आम आदमी पार्टी ओवैसी की ए आई एम आई एम और शिवसेना एकनाथ शिंदे का ग्रुप का ऑफर पाइप लाइन में ..बीजेपी में जाने से वो खुद इनकार कर चुके है. सीधे मुकाबले उनके लिए कभी सुखद नहीं रहे इसलिए गुढ़ा चाहेंगे कि फिर उदयपुरवाटी में त्रिकोणीय या चौकोनीय मुकाबला हो...जरूर है की गुढ़ा के कारण शेखावाटी की राजपूत राजनीति में उबाल जरूर आएगा..और जाट पॉलिटिक्स में भी ...लेकिन थर्ड फ्रंट के लिए ये अहम है.
उल्लेखनीय है कि राजस्थान में दो दलीय राजनीति है. इसके बावजूद हर विधानसभा चुनाव से पहले राजस्थान में थर्ड फ्रंट की आहट शुरू हो जाती है. सीपीएम, RLP, आम आदमी पार्टी, ट्राइबल पार्टी, एआईएमआईएम और बीएसपी सरीखे दल थर्ड फ्रंट कहे जा सकते हैं. 

 ---तीसरे मोर्चे की राजस्थान में साझा ताकत---
- 1980 में 17 सीटें मिली थी 
- 1985 में 38 सीटों पर जीत दर्ज की
- 1990 में 56 सीटें मिली
- 1993 में 7 सीटें
- 1998 में 6 सीटें मिली 
- पिछले चुनाव में सीपीएम को 2 सीटें मिली
- RLP के तीन विधायक
- BTP के दो विधायक है
- वहीं बीएसपी से जीते छह विधायक बाद में कांग्रेस में चले गए थे
- आरएलडी के एक विधायक वो अभी सरकार में मंत्री
- उधर भाकपा का खाता तकरीबन बंद सा हो गया

पिछले विधानसभा चुनाव में अगर थर्ड फ्रंट की बात करें तो तकरीबन 14 सीटें अलग-अलग दलों को गई जिन्हे थर्ड फ्रंट नहीं कहा जा सकता. यह जरूर है कि लगातार गिरावट दर्ज की गई. आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिल गया है. AAP चाह रही है कि अन्य क्षेत्रीय दलों को एक जगह लेकर गठबंधन बनाया जाए. पहले बात बहुजन समाज पार्टी ने बीते चुनाव में छह सीटें जीत ली ये अलग बात है कि सभी छह विधायक आगे चलकर कांग्रेस में शामिल हो गए लेकिन हाथी ने अपनी ताकत दिखाई थी. बीएसपी ने झुंझुनूं, अलवर, करौली और भरतपुर बेल्ट में कमाल का प्रदर्शन किया था. तिजारा, किशनगढ़ बास, नगर, उदयपुरवाटी, करौली में हाथी के सिंबल पर विधायक जीत गए. वैसे पूरे राजस्थान में बीएसपी को साढ़े चार प्रतिशत मत मिला. कांग्रेस में गए 6 विधायकों को मायावती की पार्टी के बीएसपी राज्य प्रमुख लेने से इंकार कर दिया राजेंद्र सिंह गुढ़ा के लिए नो एंट्री..

हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी आरएल, RLP की. विधानसभा चुनावों के समर में उम्मीदवार 57, तीन पर जीत और कांग्रेस - बीजेपी-बीएसपी के बाद राजस्थान में सर्वाधिक वोट लेने वाली पार्टी बनी RLP. हनुमान बेनीवाल खुद पहले विधायक और फिर नागौर से सांसद बन गए. RLP के चुनाव चिन्ह बोतल का एक वर्ग विशेष के बीच खास असर देखने को मिला. नतीजे यह निकले कि अपनी पहली पारी में ही RLP की परफोरमेंस प्रभावित करने वाली रही है. RLP ने 2.34 प्रतिशत मत यूं कहे आठ लाख से अधिक मत प्राप्त किये. 

अब RLP गठबंधन सियासत की सिरमौर बनना चाहती:
तीन सीटें खींवसर से नारायण बेनीवाल, भोपालगढ़ से पुखराज गर्ग, मेड़ता से इंदिरा देवी बावरी विधायक है. अब RLP गठबंधन सियासत की सिरमौर बनना चाहती है. शेखावाटी, नहरी और बीकाणा के इलाके में साम्यवादियों की सियासी जमीन बरसों से है. यहां से समय समय पर कॉमरेड़ ताल ठोक रहे हैं. 1989 में श्योपत सिंह मक्कासर सांसद रह चुके है. बीते विधानसभा चुनाव में श्रीडूंगरगढ से गिरधारी लाल मईया और भादरा से बलवान पूनिया ने चुनाव जीता और विधानसभा में पहुंचे. कॉमरेड अमराराम कई बार विधायक रह चुके. सीपीएम किसानों की आवाज बुलंद करने के लिये चर्चित है. 1962 के चुनाव राज्य में वामपंथी ताकतों के लिए सबसे अच्छे साबित हुए थे तब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बैनर तले पांच विधायक चुनकर आए थे.  

आदिवासियों की मांगो को लेकर रहे आंदोलनों से भारतीय ट्राइबल पार्टी चमकी:
टीएसपी के क्षेत्र में आदिवासियों की मांगो को लेकर रहे आंदोलनों से भारतीय ट्राइबल पार्टी चमकी. फिर क्या था विधानसभा चुनावों के रण में उतर गई. दो सीटें जीतकर सबको चौंका दिया. सागवाड़ा से रामप्रसाद और चौरासी से राजकुमार रोत ने चुनाव जीता. भारतीय ट्राइबल पार्टी का गठन को मात्र दो साल ही बीते है और इसने मेवाड़-वागड़ की सियासत में धमक पैदा कर दी. गुजरात के आदिवासी नेता छोटू भाई असावा इसके जनक है. बीटीपी का गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, एमपी के वनवासी बेल्ट में प्रभाव है. लेकिन अब वागड़ के दोनों बीटीपी विधायक अपनी मूल पार्टी से दूर होने का ऐलान कर चुके. भारतीय आदिवासी पार्टी जिसे BAP कहा जा रहा की नई धमक के साथ आदिवासियों के बीच उतरने को तैयार है दोनों विधायक इसी के साथ है. 

केजरीवाल और भगवंत मान की रैलियां शुरू हो चुकी:
आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल होने के बाद राजस्थान पर पूरा फोकस कर दिया है. किसी बड़े नेता को आम आदमी पार्टी का फेस बनाने की कोशिश में भी अरविंद केजरीवाल जुटे है. हालांकि एक कार्यकर्ता को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर संदेश दिया गया फिर भी चमकने के लिए बड़े फेस की तलाश है. पंजाब में सरकार होने के कारण आम आदमी पार्टी का फोकस नहरी क्षेत्र पर है. केजरीवाल और भगवंत मान की रैलियां शुरू हो चुकी है. फिलहाल संगठन को विस्तृत आकर देने में aap अभी जुटी हुई है, राष्टीय पार्टी का दर्जा मिलने के बाद आप की उत्सव यात्रा प्रदेश भर में शुरू हो गई है.  AIMIM प्रमुख ओवैसी ने पहले ही राज्य में मुस्लिमों के बीच पैठ बनाना शुरू कर दिया है.

   

2 दर्जन से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की ओवैसी की रणनीति:
मुस्लिमों के बीच के प्रमुख चेहरों ने पार्टी गतिविधियों का आगे बढ़ाने का काम शुरू कर दिया है. BTP से गठजोड़ की चर्चाएं पहले से है. राजस्थान में करीब 9.50 प्रतिशत मुसलमान जनसंख्य बताई जाती है. कांग्रेस के 9 विधायक है, इनमे सालेह मोहम्मद कैबिनेट मंत्री और जाहिदा राज्य मंत्री के ओहदे पर.. राजस्थान में 2 दर्जन से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की ओवैसी की रणनीति है. ओवैसी का फोकस -- जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर, धौलपुर, अलवर, सीकर, झुंझुनूं, नागौर, अजमेर चूरू, बीकानेर, जोधपुर, जैसलमेर बाड़मेर करौली जैसे प्रमुख जिले हैं जहां पर मुस्लिम आबादी 40 से 50 हजार से ज्यादा है.

सिंघवी ने 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया:
उधर खुद को राजस्थान की राजनीति का चाणक्य के कहने वाले चंद्रराज सिंघवी ने शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट का दामन थाम लिया है. कभी कांग्रेस कभी भारतीय जनता पार्टी कभी बहुजन समाज पार्टी कभी उमा भारती की पार्टी और अब शिवसेना एकनाथ शिंदे गुट वाली पार्टी की कमान राजस्थान में सिंघवी के हाथों में है. क्या कमाल कर पाएंगे ये उनकी पार्टी के उम्मीदवार सामने आने के बाद पता चलेगा. सिंघवी ने 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. राजस्थान में चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल का भरतपुर इलाके पर प्रभाव है. भरतपुर से विधायक सुभाष गर्ग आरएलडी से ही है और गहलोत सरकार में मंत्री भी. आरएलडी के मौजूदा प्रमुख जयंत चौधरी चाहते हैं कि इस बार ब्रज क्षेत्र में आरएलडी और मजबूत नजर आएगी. 

हरियाणा में चौटाला परिवार की कलह भविष्य में राजस्थान में नजर आ सकती:
हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने अपनी पार्टी जे जे एम का रुख राजस्थान की ओर कर दिया है. एक जमाने में इंडियन नेशनल लोकदल ने कांग्रेस से नाराज जाट जाति के मतदाताओं के भरोसे राजस्थान में अपनी चढ़ी जमाई थी चौधरी देवी लाल राजस्थान से प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. अजय चौटाला भी राजस्थान से विधायक रह चुके दिलचस्प बात यह है कि कई जगह पर राजस्थान में JJM का मुकाबला इनेलो से हो सकता है. हरियाणा में चौटाला परिवार की कलह भविष्य में राजस्थान में नजर आ सकती है. केसीआर की पार्टी बीआरएस दक्षिण भारत से आकर राजस्थान में भी अपना धमक पैदा करना चाह रही है. कोशिश है ट्राइबल पार्टी से समझौते की..चंद्रशेखर आजाद की भीम आर्मी पार्टी.. शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी.. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस यह सभी दल राजस्थान के चुनाव में उतरने की सोच रहे हैं. इंडिया बैनर से राजस्थान में लाभ लेने की सोचेंगे. लेकिन कांग्रेस शायद ही अपने कुनबे से कोई सीट समान विचार धारा वाले दल को देने को तैयार हो.

कई बड़े चेहरों ने थर्ड फ्रंट बनाने का किया प्रयास:
बहरहाल राजस्थान में कई बड़े चेहरों ने थर्ड फ्रंट बनाने का उद्देश्य के साथ पार्टियों के गठन किए था. एक जमाने में देवी सिंह भाटी ने सामाजिक न्याय मंच का गठन किया था. डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा ने एनपीपी के बैनर के तले 70 से अधिक सीटों पर राजस्थान में उम्मीदवार उतारे थे. उनकी पार्टी से विधायक बने और सरकार में मंत्री भी लेकिन आगे चलकर भाटी और किरोड़ी दोनों को समझ आ गया कि राजस्थान में थर्ड फ्रंट का भविष्य उज्जवल नहीं है. यह जरूर है कि हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी. हमेशा की तरह मायावती की बहुजन समाज पार्टी, लाल सलाम का नारा बुलंद करने वाले कॉमरेड अपने अपने प्रभाव क्षेत्र में कमोबेश साख बचाने में कामयाब हो सकते हैं. लेकिन मुख्य मुकाबला क कांग्रेस के हाथ और बीजेपी के कमल के बीच ही होगा. ये अलग बात है कि चुनाव में हाथी की चाल भी नजर आएगी, साइकिल की सवारी भी, बोतल का जोर भी, झाड़ू का असर भी.