Aditya L-1 Update: क्या चंद्रयान-3 की तरह आदित्य एल-1 में से भी ऑर्बिट होगा अलग? जानें लॉन्चिंग से लेकर स्पेसक्राफ्ट के बारें में

नई दिल्लीः आज पूरे विश्न की निगाहें भारत पर टिकी हुई है. चांद के बाद देश अब सूरज पर अध्य़यन की तैयारी कर रहा है. इसरो द्वारा आदित्य एल-1 को शनिवार सुबह 11ः50 बजे लॉन्च किया जायेगा. इसे श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर सतीश धवन से लॉन्च किया जायेगा. जो कुल 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय कर करीब 40 दिनों में अपने लक्ष्य बिंदु पर पहुंचेगा. लेकिन इसी बीच सभी के मन में एक सवाल बना हुआ है कि क्या इसमें भी चंद्रयान-3 के तरह कोई भाग अलग होकर अपनी खोज को आगे बढायेगा या फिर कैसे. तो आइये जानते है इस मामले को. 

आदित्य एल-1 भारतीय स्पेस एजेंसी का पहला सोलर मिशन है. इससे पहले भारत सूरज पर अपनी निगाहे नहीं टिका पाय़ा है. मिशन आदित्य एल-1 को आज श्रीहरिकोटा के स्पेस सेंटर सतीश धवन से लॉन्च किया जायेगा. जो कुल 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय कर करीब 40 दिनों में अपने लक्ष्य बिंदु पर पहुंचेगा. जिसे एल-1 बिदु के नाम से जाना जाता है. य़े एक ऐसा बिंदु है जहां सूरज और पृथ्वी का गुरूत्वाकर्षण शून्य होता है. जहां आदित्य एल-1 स्थापित होकर अपनी खोज को आगे बढ़ायेगा. 

एल-1 बिंदु पर स्थापित होगा आदित्य एल-1:
एल-1 बिंदु पर ये मिशन अपने हिस्से मे से कुछ भी भाग को अलग नहीं करेगा. तो बता दें कि ऐसा कुछ नहीं है इस चंद्रयान-3 की तरह कोई रोवर और लैंडर शामिल नहीं है. क्योंकि वो जब शामिल किये जाते है जब मिशन को किसी ग्रह और उपग्रह में भेजा जाता है जबकि आदित्य एल-1 सूरज के करीब जा रहा हैं ना कि सूरज पर. तो ऐसे में इस मिशन को एल-1 प्वाइंट पर स्थापित किया जायेगा. जहां से ये मिशन उसकी कक्षा में चक्कर लगाते हुए अपने अभियान को आगे बढायेगा. 

आदित्य एल-1 को 7 पेलोड के साथ किया जायेगा लॉन्चः
विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ: यह सूर्य के कोरोना और उत्सर्जन में बदलावों का अध्ययन करेगा.
सोलर अल्ट्रा-वॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप: यह सूर्य के फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर की तस्वीरें लेगा. यह निकट-पराबैंगनी श्रेणी की तस्वीरें होंगी. यह रोशनी लगभग अदृश्य होती है.
सोलेक्स और हेल1ओएस: सोलर लो-एनर्जी एक्स रे स्पेक्ट्रोमीटर (सोलेक्स) और हाई-एनर्जी एल1 ऑर्बिटिंग एक्स रे स्पेक्ट्रोमीटर (हेल1ओएस) बंगलूरू स्थित यूआर राव सैटेलाइट सेंटर ने बनाए. इनका काम सूर्य एक्सरे का अध्ययन है.
एसपेक्स और पापा: इनका काम सौर पवन का अध्ययन और ऊर्जा के वितरण को समझना है.
मैग्नेटोमीटर: यह एल1 कक्षा के आसपास अंतर-ग्रहीय चुंबकीय क्षेत्र को मापेगा.

इस मिशन को दो ऑर्बिट में डाला जायेगा. जिसमें पहली पहली कठिन ऑर्बिट है धरती के SOI से बाहर जाना. जो कि एक लंबा सफर भी है. इसके बाद हैलो ऑर्बिट में L1 पोजिशन को कैप्चर करना. जहां मिशन को निश्चित स्थिति में स्थापित होना है. अगर यहां उसकी गति को नियंत्रित नहीं किया गया तो वह सीधे सूरज की तरफ चलता चला जाएगा. और जलकर खत्म हो जायेगा.