जयपुरः राजस्थान में जल्द ही सात सीटों पर विधानसभा उपचुनाव होने जा रहे हैं. इन सीटों के परिणामों से सरकार और उसके संख्या बल पर तो कोई खास सियासी असर नहीं पड़ेगा. लेकिन कांग्रेस पार्टी के लिए परिणाम काफी अहम रहेंगे. क्योंकि कांग्रेस के सामने अपनी चारों सीटों को फिर से जीतना बड़ा चैलेंज है. यानि कांग्रेस के सामने पाने से ज्यादा खोने के लिए बहुत कुछ होगा.
इस हफ्ते चुनाव आयोग कभी भी राजस्थान की सात सीटों के विधानसभा उपचुनाव की तारीखों का एलान कर सकता है. लिहाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों ने उपचुनाव की जंग जीतने की तैयारियां तेज कर दी है. कांग्रेस फिलहाल उम्मीदवारों के चयन के रायशुमारी में जुटी हुई है. सात सीटों में से 4 सीटों को जीतने के लिए कांग्रेस पूरा जोर लगाएगी.
झुंझुनूं
देवली-उनियारा
रामगढ़
और दौसा
क्योंकि पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में इन चारों सीटें पर कांग्रेस ने अच्छे वोटों से जीत दर्ज की थी. फिर तीन सीटों के विधायकों के सांसद निर्वाचित होने के चलते ये सीट खाली हो गई. वहीं एक सीट जुबेर खान के निधन के चलते खाली हो गई. लिहाजा भाजपा प्रदेश प्रभारी ने पिछले दिनों एक बयान दिया था कि हमारे पास उपचुनाव में खोने के लिए कुछ नहीं है. उनका यह बयान इस लिहाज से सही भी था क्योंकि भाजपा की इनमें से एक सीट सिर्फ सलूंबर थी. अब कांग्रेस अगर एक भी सीट यह खो देती है तो नुकसान उसके खाते में ही गिना जाएगा. वहीं तीन सीट चौरासी,सलूंबर और खींवसर के समीकरण भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं है.
3 सीटों पर गठबंधन को लेकर कांग्रेस अभी कोई नतीजे पर नहीं पहुंची
बाप और आरएलपी का इन सीटों पर मजबूत जनाधार
तीनों सीटों पर कांग्रेस के पास मजबूत उम्मीदवार नहीं होने की चुनौती
खुद के उम्मीदवार उतारने पर फिर तीसरे नंबर पर रहने का संकट
जानकारों का कहना है कि ऐसे में कांग्रेस अपनी पूरी ताकत चारों सीटों को जीतने में लगाएगी. लेकिन उम्मीदवार चयन यहां भी एक बड़ी चुनौती दिख रही है. क्योंकि ओला,हरीश मीणा,मुरारी मीणा और जुबेर खां के परिवार से टिकट की मजबूत डिमांड हो रही है. ऐसे में देखना होगा कि कांग्रेस वंशवाद से किनारा करती है या फिर इन्हीं के सदस्यों को टिकट दी जाती है.