राज्यसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन, बोले- कांग्रेस ने बाबा साहब को नहीं माना भारत रत्न योग्य, अपने ही परिवार को दिए सारे पुरस्कार

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लाए गए धन्यवाद प्रस्ताव पर राज्यसभा में जवाब दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि मैं आदरणीय राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा में भागीदार बनने के लिए उपस्थित हुआ हूं. मैं उन्हें आदरपूर्वक धन्यवाद देता हूं और अभिनंदन करता हूं. मैं उस दिन तो कुछ कह नहीं पाया, लेकिन खड़गे जी का विषेश रुप से आभार व्यक्त करता हूं. बहुत ध्यान से सुन रहा था खड़गे जी को मैं, और ऐसा आनंद आया, जो बहुत कम मिलता है, लोकसभा में तो कभी-कभी मिल जाता हैं. लेकिन आजकल वे दूसरी ड्यूटी पर हैं. तो मंनोजरंन कम मिलता है. लेकिन लोकसभा में जो मनोरंजन कि कमी खल रही हैं उस दिन आपने पूरी कर दी. और मुझे प्रसन्नता इस बात की थी की खड़गे जी बहुत लम्बा और शांती से बोल रहे थे,

मैं सोच रहा था कि उन्हें इतना बोलने की आजादी मिली कैसे. फिर मेरे ध्यान में आया  उनके साथ जो दो स्पेशल कमांडर रहते थे, वो नहीं थे. और इसलिए इसका खड़गे जी भरपूर फायदा उठाया. और मुझे लगता है कि उस दिन खड़गे जी ने सिनेमा का वो गाना जरूर सुना होगा- ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा. और खड़गे जी भी एंपायर नहीं है, तो चौके-छक्के मारने में मजा आ रहा था. लेकिन एक बात खुशी की रही उन्होंने जो 400 सीट NDA के लिए आशीर्वाद दिया. उसे मैं अपने सिर-आंखों पर है. उन्होंने कहा कि मुझे पिछले साल का प्रसंग याद है. हम सदन में बैठते थे. और प्रधानमंत्री की अवाज का गला घोंटने की प्रयास किया गया हम बडे धैर्य के साथ आपके एक-एक शब्द को सुनते रहे. आज भी आप न सुनने की तैयारी के साथ आए हैं, लेकिन मेरी आवाज को आप दबा नहीं सकते हैं. 

देश की जनता ने इस आवाज को ताकत दी हुई है. दश की जनता के आशिर्वाद से ये अवाज निकल रही है. इसलिए मैं भी पूरी तैयारी के साथ आया हूं. मैंने सोचा था की आप जैसे व्यक्ति सदन में आए हैं तो मर्यदाओं का पालन करेंगे लेकिन आपने डेढ़-दो घंटे जो क्या जुल्म किया था आप लोगों ने मुझ पर, लेकिन मैंने मर्यादा नहीं तोड़ी. मैंने भी एक प्रार्थना की. पश्चिम बंगाल से आपको जो चैंलेज आयी है कि कांग्रेस 40 पार नहीं कर पाएगी. मैं प्रार्थना करता हूं कि आप 40 बचा पाएं. हमको बहुत सुनाया गया है. और हमने सुना हैं लोकतंत्र में आपका कहने का अधिकार है और हमारी सुनने की जिम्मेदारी है और आज जो भी बाते हुई हैं उसको मुझे देश के सामने रखनी चाहिए. और इसलिए मैं प्रयास करूंगा.

आज बहुत बड़ी बातें होती हैं, सुनने की ताकत भी खो चुके हैं, लेकिन में देश के सामने बात रखने के लिए जरूर कहुंगा जिस कांग्रेस ने सत्ता के लालच में सरेआम लोकतंत्र का गला घोंट दिया था. जिस कांग्रेस ने दर्जनों बार लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर आयी सरकारों को रातों-रात भंग कर दिया था. जिस कांग्रेस ने देश की संविधान, लोकतंत्र की मर्यादा को जेल के सलाखों के पीछे बंद कर दिया था. जिस कांग्रेस ने अखबारों पर ताले लगाने की कोशिश की थी. जो कांग्रेस देश को तोड़ने के नैरेटिव गढ़ता गया, नया शौक पैदा हुआ. इतना तोड़ा कम नहीं है, अब उत्तर-दक्षिण को तोड़ने के लिए बयान दिए जा रहे हैं. ये कांग्रेस हमें लोकतंत्र पर प्रवचन दे रही है.

जिस कांग्रेस ने जात-पात और भाषा के नाम पर देश को बांटने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिस कांग्रेस ने आतंकवाद-अलगाववाद को अपने हित में पनपने दिया, कांग्रेस ने नॉर्थ ईस्ट को हिंसा और पिछड़ेपन में ढकेल दिया, जिस कांग्रेस ने नक्सलवाद को चुनौती बना दिया, जिस कांग्रेस ने देश की जमीन दुश्मनों के हवाले कर दी, जिस कांग्रेस ने देश की सेना का आधुनिकीकरण नहीं होने दिया. जिस जिस कांग्रेस ने आजादी के बाद से ही कंफ्यूज ही रही, उनको उद्योग जरूरी है कि खेती, इसी में उलझे रहे. नेशनलाइजेशन करना है या प्राइवटाइजेशन करना है, इसी में उलझी रही.

कांग्रेस 10 साल में देश की अर्थव्यवस्था को 12 से 11 नंबर पर लाई, हम 10 साल में 5 नंबर पर ले आए. ये हमें यहां आर्थिक नीतियों पर भाषण सुना रहे हैं. जिस कांग्रेस ने ओबीसी को पूरा आरक्षण नहीं दिया, सामान्य वर्ग के गरीबों को आरक्षण नहीं दिया, जिस कांग्रेस ने बाबा साहब अंबेडकर को भारत रत्न योग्य नहीं माना. अपने ही परिवार को भारत रत्न देते रहे. जिस कांग्रेस ने देश की गली, सड़को, चौक, चौराहों पर अपने ही परिवार के नाम के पार्ट जड़ दिए हैं वे हमें उपदेश दे रहे हैं. जिस कांग्रेस के अपने नेता की कोई गारंटी नहीं है, अपनी नीति की गारंटी नहीं है, वो मोदी की गारंटी पर सवाल उठा रहे हैं.

यहां एक शिकायत थी और उनको लगता है कि हम ऐसा क्यों कहते हैं, हम ऐसा क्यों देख रहे हैं. देश और दुनिया उनके 10 साल के कार्यकाल को ऐसे क्यों देखती थी. देश क्यों नाराज था. इतना गुस्सा देश को क्यों आया. हमारे कहने से सब नहीं हुआ है. खुद के कर्मों के फल इसी जन्म में भुगतने होते हैं. हम किसी को बुरा नहीं कहते हैं, हमें क्यों बुरा कहना चाहिए जब उन्हीं को लोगों ने बहुत कुछ कहा हो तो मुझे कहने की क्या जरूरत है.