VIDEO: फिर बही अम्बिकेश्वर महादेव की जटा से गंगा, मंदिर का अद्भूत रहस्यलोक, यहीं हुआ भगवान श्री कृष्ण का मुंडन

VIDEO: फिर बही अम्बिकेश्वर महादेव की जटा से गंगा, मंदिर का अद्भूत रहस्यलोक, यहीं हुआ भगवान श्री कृष्ण का मुंडन

जयपुर: भगवान श्री कृष्ण का जयपुर से अटूट नाता रहा है. अंबिका वन की पहाड़ियों पर भगवान श्री कृष्णा के दो बार आगमन के शास्त्र सम्मत सबूत मिलते हैं. आमेर किले के पीछे अंबिकेश्वर मंदिर में भगवान श्री कृष्ण का मुंडन हुआ और नाहरगढ़ के चरण मंदिर में भगवान श्री कृष्ण के दाएं पैर की छाप आज भी मौजूद है. आइए सूर्यवंशी राजा अंबरीश द्वारा स्थापित अंबिकेश्वर महादेव मंदिर और भगवान श्री कृष्ण से जुड़ी किंवदंतियों पर आपको एक अद्भूत आध्यात्मिक यात्रा पर ले चलते हैं.

11 वर्ष बाद अंबिकेश्वर महादेव ने फिर ली जल समाधि:
- 11 वर्ष बाद फिर अम्बिकेश्वर महादेव की जटा से बही गंगा
- मंदिर में मौजूद शिला रूपी शिव विग्रह से बह चली अखंड धारा
- 10 फीट गहरे पानी में जल समाधि से प्रदेश में बेहतर मानसून के मिले संकेत
- 5000 वर्ष से भी पुराना माना जाता है आमेर का अंबिकेश्वर महादेव मंदिर
- पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर की भूमि पर हुआ था भगवान श्री कृष्ण का मुंडन संस्कार
- इक्षवाकु वंश की 32 में पीढ़ी के राजा अंबरीष ने की थी इस मंदिर की स्थापना
- इसलिए ही आमेर, नाहरगढ़ और ढंड क्षेत्र के वन को कहा जाता है अंबिका वन
- द्वापर में भगवान श्री कृष्णा पांडवों के अज्ञातवास के दौर में भी आए थे अंबिका वन
- अपने दाएं पैर के आघात से अष्टावक्र का किया था उद्धार
- चरण मंदिर में चट्टान पर भगवान श्री कृष्ण के पैर की लगी है छाप

राजा अंबरीष का शास्त्रों में उल्लेख:

इक्षवाकु वंश की 28 में पीढ़ी के प्रतिनिधि के तौर पर राजा अंबरीष का शास्त्रों में उल्लेख मिलता है. ऋषि दुर्वासा और राजा अंबरीश को लेकर भी शास्त्रों में एक रोचक कथा भी सुनाई जाती रही है. बहरहाल आज हम बात करेंगे आमेर के पीछे स्थित अंबिकेश्वर मंदिर की. इस मंदिर के शीर्ष पर अटूट यंत्र स्थापित है द्वार पर भगवान श्री गणेश अपने पूरे परिवार के साथ विराज रहे हैं और अंबिकेश्वर महादेव स्वयं लिंग रूप में न होकर शिला के विग्रह में जल समाधि लिए हुए हैं. खास बात यह है कि यह मंदिर सात से 22 फीट नीचे बना हुआ है और मानसून की सटीक भविष्यवाणी इस मंदिर की अद्भुत लीला से जोड़कर देखी जाती रही है. कहा जाता है कि राजा अंबरीष ने यहां भगवान शिव के अंबिकेश्वर रूप के स्थापना की थी. 

मौसम का नहीं पड़ता कोई विपरीत असर :

इस मंदिर को इस तरह से अभिमंत्रित किया गया था कि इस पर किसी भी मौसम का कोई विपरीत असर नहीं पड़ता. 14 स्तंभ और छह गुंबदों वाले इस मंदिर के प्रत्येक गुंबद पर भगवान विष्णु के दशावतार की प्रतिमाएं दिखाई देती हैं और वास्तु सम्मत बनाने के लिए प्रत्येक गुंबद पर एक सिंह विराजित किया गया है. भगवान शिव की कोई जलहरी यहां दिखाई नहीं देती. बताया जाता है कि पास में जो पन्ना मीना का कुंड है वही वास्तव में इस मंदिर में शिला रूप में विराजे भगवान शिव की जलहरी है. बेहतर मानसून होने पर भगवान अंबिकेश्वर महादेव स्वयं जल समाधि ले लेते हैं. और शिव के विग्रह वाली शिला और उसके आसपास की जमीन से स्वत: ही पानी निकलने लगता है. 

भगवान शिव हो गए  करीब 10 फीट गहरे पानी में समाधिस्त:

पिछली बार वर्ष 2013 में मंदिर में 8 से 10 फीट पानी आया था और अब 11 साल बाद एक बार फिर मंदिर में भगवान शिव करीब 10 फीट गहरे पानी में समाधिस्त हो गए हैं. ऐसी मान्यता है कि जब-जब शिव रूपी शिला से पानी निकलना शुरू होता है तब तब प्रदेश में बेहतर मानसून रहता है और चारों तरफ खुशहाली का माहौल बनता है, खेतों में अच्छी फसल होती है, जल स्रोतों में पानी आता है और अरावली हरियाली की चादर ओढ़ लेती है. मंदिर के महंत संतोष व्यास का कहना है कि यहां श्रद्धालु भगवान अंबिकेश्वर के दर्शन करने आते हैं और अपने मनोकामनाएं पूरी करने के लिए भगवान शिव की प्रार्थना करते हैं. महंत संतोष व्यास का कहना है कि अंबिका वन में स्थित इस अंबिकेश्वर मंदिर के स्थान पर ही भगवान श्री कृष्ण के मुंडन संस्कार की कथाएं भी शास्त्रों में उल्लेखित हैं.

इतिहास और शौर्य को संजोए यहां की प्राचीन चारदीवारी:

वैसे तो आमेर और उसके आसपास बहुत ही धार्मिक आस्थाओं से जुड़े मंदिर, पुरातात्विक महत्व के स्मारक, इतिहास और शौर्य को संजोए यहां की प्राचीन चारदीवारी भी है. कहा जाता है कि आज भी आमेर महल में मीराबाई की आवाज सुनाई देती है. इस जगह का स्थापत्य इतना अदभुत है कि आमेर के चारों तरफ पहाड़ की सुरक्षा दीवार पर सातों दिशाओं के सूचक 7 टावर भी हैं. यहां प्रख्यात मीराबाई का मंदिर है, महाकवि बिहारी जी का मंदिर है. सूर्य मंदिर है और पन्ना मीना का कुंड तथा छोटा सागर और बड़ा सागर. पानी को खींचने की प्राचीन चड़स पद्दति भी है तो जयगढ़ में दुनिया की सबसे बड़ी तोप जयबाण भी. लेकिन आज हम जिस अलौकिक, अद्भुत, परम आस्थाओं से जुड़े 64 कलाओं में निपुण भगवान श्री कृष्ण और अंबिकेश्वर मंदिर से जुड़ी किंवदंतियों और कथाओं की चर्चा कर रहे हैं.

राजा अंबरीष ने अंबिकेश्वर मंदिर की स्थापना की:

 इसलिए भगवान श्री कृष्ण के दो बार जयपुर आगमन के दूसरे शास्त्र सम्मत अध्याय को समझना भी जरूरी है. राजा अंबरीष ने अंबिकेश्वर मंदिर की स्थापना की और इसी कारण यह पूरा क्षेत्र आमेर, नाहरगढ़ और ढंड की पहाड़ियां अंबिका वन कहलाया. एक कथा के अनुसार अंबिका वन में भगवान श्री कृष्ण के पिता नंद बाबा पांडवों के अज्ञातवास के दौरान यहां आए. इस अंबिका वन में ही श्राप के चलते अष्टावक्र अजगर की योनि में था और उसने नंद बाबा को आधा निकाल लिया. इस पर नंद बाबा ने कान्हा का आह्वान किया भगवान श्री कृष्ण वहां पहुंचे और उन्होंने अपने दाएं पैर के आघात से नंद बाबा को अष्टावक्र से मुक्त कराया. उनके दाएं पैर के आघात से अष्टावक्र तो श्राप मुक्त होकर अपनी मूल योनि में लौट गया और उनके पैर की छाप एक चट्टान पर छप गई जो आज भी अपने स्थापत्य के लिए मशहूर चरण मंदिर में दिखाई देती है जो की नाहरगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित है. ऐसी मान्यता है कि जयपुर राज परिवार के तत्कालीन राजा चरण मंदिर की गुम्बद पर लगी ध्वजा के दर्शन के उपरांत है भोजन ग्रहण किया करते थे.

अरावली का वो अबूझ धार्मिक खजाना:

गुलाबी नगर को लघु काशी कहा जाता है तो उसके पीछे यहां की शास्त्र सम्मत पौराणिक कथाएं, धार्मिक मान्यता के प्रतीक प्राचीन मंदिर और अरावली का वो अबूझ धार्मिक खजाना है जिसे गुलाबी नगर पर धर्म और संस्कृति की अमृत वर्षा की है. ऋषि गालव की तपोभूमि गलता से लेकर चरण मंदिर और अंबिकेश्वर महादेव मंदिर सहित कई ऐसे स्थान है जहां भगवान ने अपनी लीलाओं से इस जगह को पावन किया है. खासकर आमेर और उसके चारों तरफ अरावली की सुरम्य में पहाड़ियों पर बना परकोटा भगवान श्री कृष्ण के जीवन से तो जुड़ा हुआ है ही लेकिन अंबिकेश्वर मंदिर की अनुपम लीला मौसम चक्र को धर्म और आस्था की वैज्ञानिक मान्यता प्रदान करती है.

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