जयपुरः प्रदेश में लगातार बढ़ रहे सड़क हादसों से परिवहन एवं सड़क सुरक्षा विभाग की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. भारी भरकम बजट उपलब्ध होने के बाद भी विभाग प्रदेश में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या कम नहीं कर पा रहा है.
भारत में हार वर्ष सड़क हादसों में बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गँवा देते हैं. सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के आँकड़ों के अनुसार साल 2022 में देश में 4 लाख 61 हज़ार 312 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं जिनमें 1 लाख 68 हज़ार से अधिक लोगों की मौत हो गई. सड़क हादसे और इन हादसों में जान गवाने वाले लोगों की सूची में राजस्थान भी प्रमुख राज्यों में शामिल हैं. प्रदेश में भी हर रोज़ सड़क हादसों में लोग अपनी जान गँवा रहे हैं. पिछली सरकार में सड़क हादसों को कम करने की पहल करते हुए परिवहन विभाग का नाँव बदल कर परिवहन एवं सड़क सुरक्षा विभाग किया था लेकिन पुरानी सरकार और अब नई सरकार में सड़क हादसों को कम करने की पहल विभाग का नाम बदलने तक ही सीमित रह गई है. क्योंकि परिवहन एवं सड़क सुरक्षा विभाग का फ़ोकस सिर्फ़ और सिर्फ़ राजस्व जुटाने पर है. प्रदेश में सड़क हादसों को कम करने के लिए विभाग के स्तर पार कोई गंभीरता नहीं दिख रही है. परिवहन विभाग के बड़े बड़े अधिकारियों की रोज़ होने वाली बैठकों में सड़क सुरक्षा का एजेंडा तक शामिल नहीं किया जाता. बीते कुछ महीनों से विभाग का और विभाग के अधिकारियों का सिर्फ़ एक हाय प्रमुख काम पर पूरा ध्यान है और वह काम है राजस्व लक्ष्य तक पहुँचना. सड़क सुरक्षा के नाम पर परिवहन विभाग कभी कभार कुछ अभियान चला कर ख़ानापूर्ति कर लेता है. इन अभियानों में अवैध वाहनों पर कितनी कार्रवाई हुई इसकी मॉनिटरिंग तक विभाग नहीं करता है.
प्रदेश में बीते 2 दिनों में झालावाड और दौसा में ह्यू सड़क हादसों में सभी को झकझोर दिया है लेकिन परिवहन विभाग की रोड सेफ़्टी टीम के अधिकारियों की नींद अभी तक नहीं टूटी है. दोनों हादसों में एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत के बाद भी मुख्यालय से इन हादसों की जाँच के लिए कोई टीम मौक़े पर नहीं गई है. विभाग की लापरवाही का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि विभाग के ही आँकड़ों के अनुसार 80 फ़ीसदी हादसे ड्राइवर की लापरवाही से होते हैं इसके बाद भी प्रदेश में ड्राइवरों को ट्रेनिंग नहीं दी जाँ रही है.परिवहन विभाग की सड़क सुरक्षा शाखा में भारी भरकम फ़ीस खर्च करने के बाद कंसलटेंट रखे हुए हैं लेकिन इनका काम सिर्फ़ टाइम पास करना रह गया हैं. इन कंसलटेंटों के चयन में भी पारदर्शिता नहीं हैं. प्रदेश में सड़क हादसों में कमी नहीं आने का एक बड़ा कारण है अधिकारियों की इच्छा शक्ति में कमी होना. रोड सेफ़्टी सेल इस बारे में मिशन मोड़ पर प्रयास ही नहीं कर रही है.
1- विभाग का अधिक फ़ोकस राजस्व जुटाने पर है सड़क हादसों को कम करने के लिए अधिक गंभीरता नहीं है
2- सड़क सुरक्षा शाखा में वर्षों से पुराने अधिकारी कर्मचारी काबिज है.. इन्हें बदलने के लिए विभाग तैयार नहीं है
3- सड़क सुरक्षा निधि जो कि 100 करोड़ है उसका सही प्रयोग नहीं किया जा रहा
4- अवैध और डग्गेमार वाहनों पर विभाग दिखावी कार्रवाई करता है.. जयपुर जैसे शहर में ही अवैध वाहनों कि भरमार हैं
5- नियमों के बाद भी हैवी ड्राइविंग लाइसेंस
के नवीनीकरण के लिए रिफ़्रेशर कोर्स आयोजित नहीं हो रहे
6- बिना फ़िटनेस सेंटरों पर जाये खटारा वाहनों की फ़िटनेस जारी हो रही है