जयपुर: सत्ता से बाहर होने के बावजूद कांग्रेस में गुटबाजी समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है.गुटबाजी के चलते पार्टी के धरने और प्रदर्शन जैसी कईं गतिविधियां प्रभावित हो रही है.जिलों में कई जिलाध्यक्षों और विधायकों की आपस में पटरी नहीं बैठ रही तो कहीं दिग्गज नेताओं से अनबन बरकरार है. गुटबाजी के चलते कांग्रेस राजस्थान विधानसभा चुनाव हार गई, लेकिन उसके बावजूद अभी भी कांग्रेस कईं खेमों में बंटी नजर आ रही है.शीर्ष लेवल पर तो गुटबाजी जगजाहिर है,लेकिन अब जिलों में भी कांग्रेस नेता कईं धड़ों में बंट गए है.कईं जिलों में संगठन पदाधिकारियों और विधायकों में तालमेल नहीं है तो कईं जिलों में जिलाध्यक्ष और दिग्गज नेताओं में ही नहीं बन रही.
जयपुर शहर कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर:
-जिलाध्यक्ष आर आर तिवाड़ी और दिग्गज नेताओं में अनबन
-विधायकों ने पार्टी के धरने,प्रदर्शन औऱ बैठकों से बना रखी है दूरी
-बीकानेर शहर में कल्ला और अध्यक्ष गहलोत में दूरियां
-बीकानेर देहात कांग्रेस में अध्यक्ष सिहाग औऱ गोविंदराम मेघवाल में खटपट
-झुंझुनूं में जिलाध्यक्ष और ओला गुट में तकरार
-जैसलमेर में जिलाध्यक्ष और सालेह मोहम्मद में नहीं तालमेल
-चूरु में जिलाध्यक्ष और विधायक पूसाराम गोदारा में अनबन
-अजमेर देहात कांग्रेस के विधायक विकास चौधरी बनना चाहते है जिलाध्यक्ष
दरअसल यह तो गुटबाजी की एक बानगी है.अन्य जिलों में भी गुटबाजी के भी यही हाल है.गुटबाजी के चलते पार्टी के सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन जैसी गतिविधियां सीधे प्रभावित हो रही है.क्योंकि प्रदर्शन में भीड़ जुटने से बिल्कुल माहौल नहीं बन पाता.हालांकि प्रदेश नेतृत्व को कईं नेताओं ने तथ्यों सहित इसकी शिकायतें भी कर रखी है,लेकिन एक्शन कुछ नहीं हो पा रहा जिसके चलते गुटबाजी पर ब्रेक नहीं लग पा रहे हैं.
फाइनल वीओ-दरअसल कांग्रेस में गुटबाजी का रंग ऊपर तक चढा हुआ है.ऐसे में जाहिर सी बात है कि उसके साइड इफेक्ट नीचले स्तर तक जिला और ब्लॉक लेवल तक भी जाएंगे.कह सकते है कि कांग्रेस और गुटबाजी में एक चोली-दामन जैसा नाता हो गया है.ताज्जुब की बात है कि तीन लोकसभा चुनाव लगातार हारने,कईं राज्यों में सत्ता गंवाने और सरकार गिरने के बावजूद कांग्रेस गुटबाजी जैसी बीमारी से मुक्त नहीं हो पा रही.