VIDEO: मां का तो अहसास भी बच्चों की सुरक्षा का अभेद्य किला, मां की प्रतिकृति के साथ बड़े होते नन्हें बाघ शावक, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: मां के अहसास की शक्ति का अहसास करना है तो नाहरगढ बायोलॉजिकल पार्क से बेहतर उदाहरण दूसरा नहीं हो सकता. मां के होते हुए अनाथ हुए दो अबोध बाघ शावक पिछले 50 दिन से मां के खिलौने को मां समझ बड़े हो रहे हैं. दोनों भाई-बहन कपास से भरी कपड़े की बनी एक जगह स्थिर रहने वाली 'डमी' के आंचल से दुलार खींच कर खुदको सींच तो रहे हैं. शिकायत भी है 'मां' दूध नहीं पिलाती. डांटती नहीं. 

- 10 मई को दिया था बाघिन रानी ने 4 शावकों को जन्म
- एक मरा हुआ पैदा हुआ, एक की 2 जून को हुई मौत
- मां का आक्रामक स्वभाव देख बचे 2 शावकों को किया अलग
- नेयो नेटेल केयर में दोनों शावकों को हुए 50 दिन
- बाघिन की सॉफ्ट डमी को मां समझ बड़े हो रहे दोनों शावक
- दूसरी और मां बाघिन मान चुकी कि नहीं रही उसकी चारों संतान
- लेकिन अब ज्यादा दिन दोनों को नहीं रखा जा सकता नियो नेटल सेंटर में
- जल्द तैयार करनी होगी दोनों के भविष्य की योजना

नाहरगढ बायोलॉजिकल पार्क में 100 फीट के फासले में 2 अहसास पल रहे है. दोनों में फर्क इतना है कि बाघिन मां यह समझ खुदको अब संभाल चुकी है कि 4 बच्चे जने और शायद चारों ही चल बसे. इसलिए गमगीन रहती है और इस पहाड़ जैसे दुख को सहन कर रही है. कुछ दूरी पर 4 में से जीवित बचे 2 शावक भाई-बहन अलग ही अहसास के साथ 50 दिन मां के बिना गुजार चुके हैं. दरअसल ये दोनों 22 दिन के थे तब इन्हें मां का आक्रामक स्वभाव देख मां से अलग कर दिया गया. अब ये डॉ अरविंद माथुर की देखरेख में पिछले 50 दिन से मां जैसी दिखने वाली और एक जगह स्थिर रहने वाली 'बाघिन की डमी' के साथ पल बढ़ रहे हैं. 

ढाई महीने के हो चले उन दो अबोध भाई बहन को पता ही नहीं कि जिसे वो मां मान रहे हैं वो महज मां जैसी दिखने वाली रुई से भरी मां की प्रतिकृति मात्र है. दोनों इस डमी के ऊपर आसपास उछल कूद करते हैं. थक जाते हैं और सो जाते हैं. शिकायत करते तो नहीं लेकिन समझने की कोशिश करते हैं कि मां दूध क्यों नहीं पिलाती शैतानी पर डांटती नहीं. गिरने पर उठाने नहीं आती. शिकार नहीं करती और खुले जंगल में जीवन की सच्चाई से वाकिफ नहीं करती. भूख लगे तो दूध बोतल से पिलाते हैं.. सूप प्याले में और दुलार के लिए डॉक्टर व केयर टेकर की गोद.. आह.. विडंबना.. कड़वी सच्चाई.  

हालांकि वन विभाग दोनों के लालन-पालन में कोई कसर नहीं छोड़ रहा. दिन रात कोई ना कोई उनकी देखभाल के लिए नियो नेटल केयर सेंटर में मौजूद रहता है. विदेश से आयातित मेडिकेटेड दूध इन्हें दिया जा रहा है बढ़िया दवाइयां दी जा रही है और राउंड द क्लॉक निगरानी भी सीसीटीवी के माध्यम से रखी जा रही है. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि यह दुनिया के अपेक्स प्रेडेटर की संतान है और इन्हें नियो नेटल केयर से निकलने के बाद कहां रखा जाएगा ? क्या ये जीवन बायोलॉजिकल पार्क में ही गुजार देंगे ? या फिर इनकी रिवाइल्डिंग होगी ? इनमें से जो मादा शावक है वह दुर्लभ सफेद प्रजाति की है. उसको लेकर वन विभाग ने क्या योजना तैयार की है ? 

ऐसे बहुत से सवाल हैं जिनका जल्द जवाब देना होगा क्योंकि इनकी 6 महीने की अवस्था होने के बाद न तो उन्हें गोद में खिलाया जा सकता है और न ही उनके आसपास खुले में जाया जा सकता है. बहरहाल इस पूरे घटनाक्रम में जो सबसे मजबूत पक्ष उभर कर सामने आया है वह यह है कि 'मां का तो एहसास भी मां की मौजूदगी से कम नहीं होता, दुनिया में जिसके पास मां होती है उसके पास कोई गम नहीं होता.'