मैंने हमेशा आसन का मान रखा, शांति धारीवाल बोले- मेरे द्वारा कही बातों का बुरा माना गया तो मैं खेद प्रकट करता हूं

मैंने हमेशा आसन का मान रखा, शांति धारीवाल बोले- मेरे द्वारा कही बातों का बुरा माना गया तो मैं खेद प्रकट करता हूं

जयपुरः राजस्थान विधानसभा की कार्यवाही जारी है. इस दौरान सदन में विधायक शांति धारीवाल ने सदन में कहा कि मैं हमेशा आसन को सर्वोच्च मानकर ही सदन में चला हूं. मैं सबसे ज्यादा तब खुश हुआ था जब सदन में आसन पर संदीप शर्मा बैठे थे. मैंने हमेशा आसन का मान रखा है. संदीप शर्मा तो मेरे बेटे के दोस्तों के दोस्त है. संदीप शर्मा से मेरी हमेशा हंसी मजाक चलती रहती है. ना उन्होंने कभी मेरी बात का बुरा मान ना मैंने कभी उनकी बात का बुरा माना है. उस दिन भी मुझे ऐसा लगा संदीप शर्मा आसन पर नहीं मेरे सामने बैठे हैं. मजाक में बात हो गई, वो मेरी गलती थी. उन्होंने आगे कहा कि अगर मेरे द्वारा कही गई बातों का बुरा माना गया तो मैं खेद प्रकट करता हूं.  

शांति धारीवाल प्रकरण में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने कहा कि सभी साथियों ने अपनी बात रखी. उन्होंने भी जो बोला उनके संज्ञान में नहीं आया. इससे साबित होता है कि सदस्य की मंशा कतई इस प्रकार की नहीं थी. सारा सदन मौजूद था किसी भी सदस्य के द्वारा नहीं टोका गया. ऐसे सदस्य जिनकी उम्र 83 साल है उस दिन स्वास्थ्य ठीक नहीं था. दोनों ही सदस्य कोटा से आते है उनके संबंध बहुत अच्छे है. इस सदन में इससे पूर्व भी इस प्रकार की गई घटनाएं हुई है. पूर्व में उस बात को गंभीरता से लेते हुए सदस्य के खेद प्रकट करने पर माफ किया गया है. मैं समझता हूं क्षमा से बढ़कर कोई दंड नहीं है, मैं खेद प्रकट करता हूं कि सदन में इस प्रकार के शब्दों की कोई जगह नहीं है. 

विधायक जोगेश्वर गर्ग ने सदन में कहा कि मां बहन बेटी के सामने भी अपशब्द बोलने से पहले सोचना पड़ता है. फिर यह तो पवित्र सदन है. अनुभवी और योग्य व्यक्ति बोलने में चूक कर जाए तो यह अच्छी बात नहीं है. कई बार तो आदतन भी ऐसा होता है. मर्दों का प्रदेश से बोला था तब वह शब्द अज्ञानता से नहीं बोले गए थे. 

विधायक बालमुकुंदाचार्य ने सदन में कहा कि यातायात पुलिस कर्मियों की पीड़ाओं को उठाया है. कोरोनाकाल में भी यातायात पुलिसकर्मियों ने अपना काम किया. कठिन ड्यूटी होने के बावजूद भी उन्हें सुविधाएं उतनी नहीं मिलती . इनका कैडर रिव्यू किया जाए अतिरिक्त वेतन मिले. नियम 295 के तहत बालमुकुंदाचार्य बोले.