जयपुर: राजधानी जयपुर में पैंथर की मौजूदगी तेजी से बढ़ रही है, जिससे मानव-वन्यजीव सह-अस्तित्व का अनोखा उदाहरण देखने को मिल रहा है. हालांकि, कमजोर प्रे बेस और सशक्त प्रबंधन के अभाव में यह सह-अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है. गोगुंदा की घटना और प्रदेश में कई जगह लेपर्ड्स का इंसानी बस्ती में आना इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि जल्द ही लेपर्ड कंजर्वेशन और प्रोटेक्शन के लिए ठोस उपाय नहीं किए गए तो भविष्य में मानव वन्य जीव संघर्ष और बढ़ सकता है.
जयपुर में लेपर्ड प्रोटेक्शन और कंजर्वेशन के लिए बने पायलट प्रोजेक्ट का कार्यान्वयन आवश्यक है, क्योंकि यहाँ पैंथरों की आबादी का घनत्व सबसे अधिक है. झालाना, आमागढ़, नाहरगढ़, जयपुर उत्तर, डीसीएफ जयपुर और जमवारामगढ़ में कुल 145 लेपर्ड पाए जाते हैं. इसके अलावा, यहाँ 347 हायना, 145 जैकाल, 27 भेड़िए, और एक भालू सहित कुल 10,741 वन्यजीवों की मौजूदगी है. जयपुर में झालाना और आमागढ़ में दो लेपर्ड रिजर्व स्थापित हैं, जबकि नाहरगढ़ में तीसरे की तैयारी चल रही है. हालांकि, इन क्षेत्रों में प्रे बेस कमजोर हैं, जो कि चिंताजनक है.
हालही में कुलिश वन, एमएनआईटी और कैम्बे गोल्फ रिसॉर्ट में बघेरों का लगभग स्थाई बसेरा भी देखा गया है. पिछले पांच वर्षों में, लेपर्ड की आबादी में आने की दर्जनभर से अधिक घटनाएँ हुई हैं. वन्यजीव प्रेमियों का मानना है कि विभाजन स्तर पर एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन आवश्यक है. उनकी मांग है कि राज्यस्तरीय योजना को जल्दी से लागू किया जाए, ताकि मानव-वन्यजीव के बीच शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को बनाए रखा जा सके. योजना में देरी होने पर यह सह-अस्तित्व दरार में बदल सकता है, जिससे दोनों पक्षों के लिए समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं. यदि जयपुर को अपनी वन्यजीवों की समृद्धि और जैव विविधता को बनाए रखना है, तो इसके लिए एक ठोस और प्रभावी प्रबंधन योजना की आवश्यकता है. अन्यथा, यह अनोखा सह-अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है.
प्रदेश में पैंथर्स की बढ़ती आबादी: खतरे की घंटी:
राजस्थान में पैंथर की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हो रही है, जो कि सुरक्षा और संरक्षण के लिए एक गंभीर चुनौती बन गई है. वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश के 24 संरक्षित क्षेत्रों में 578 और संरक्षित क्षेत्र के बाहर 41 अन्य क्षेत्रों में 347 पैंथर देखे गए हैं. जयपुर सहित 30 से अधिक जिलों में इनकी मौजूदगी चिंताजनक है. वर्ष 2024 की वाइल्डलाइफ ऐस्टीमेशन के अनुसार, प्रदेश में कुल 925 लेपर्ड हैं, जिनमें से 578 संरक्षित क्षेत्रों में और 347 बाहरी वन क्षेत्रों में पाए जाते हैं. इसके अलावा, इंडियन वुल्फ की संख्या 771 है, जिसमें 299 संरक्षित वन क्षेत्रों में और 472 बाहरी वन क्षेत्रों में हैं. उदयपुर में भी पैंथर की संख्या बढ़ रही है, जहां उदयपुर उत्तर में 37 और डीसीएफ उदयपुर क्षेत्र में 25 लेपर्ड देखे गए हैं.
गोगुंदा के आसपास 15 से 20 लेपर्ड का विचरण चिंता का विषय है. ऐसे में ह्यूमन किलर लेपर्ड की पहचान करना आसान नहीं है. वन विभाग ने ह्यूमन किलिंग मामलों में शामिल लेपर्ड को गोली मारने के आदेश जारी किए हैं, और आर्मी, हिंदुस्तान जिंक तथा पंचायत के ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि, चार लेपर्ड पकड़े जाने के बावजूद, ह्यूमन किलिंग घटनाएँ जारी हैं. इसलिए, यह आवश्यक है कि दीर्घकालिक योजना बनाई जाए, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम किया जा सके. विशेषज्ञों की मदद से ह्यूमन किलर एनिमल की पहचान में कई दिन लग सकते हैं. स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, सुरक्षा और संरक्षण योजना की तत्काल दरकार है, ताकि इस बढ़ती समस्या का प्रभावी समाधान किया जा सके.