जयपुरः लगता है प्रदेश का खेल विभाग व खेल परिषद पदक विजेता खिलाड़ियों व कोचों को भूल ही गया है. सरकार तो एक तरफ पदक जीतने पर खिलाड़ियों को सीधे नौकरी देती है, लेकिन प्रदेश में खेलों का संचालन करने वाली खेल परिषद पिछले छह साल से प्रदेश के प्रतिष्ठित खेल पुरस्कार नहीं दे पा रही. न खिलाड़ियों को महाराणा प्रताप अवार्ड मिल रहा है और न ही प्रशिक्षको को गुरु वरिष्ठ अवार्ड. बस अवार्ड के लिए रोज नई तारीख बता दी जाती है. आखिर कब खत्म होगा तारीख पर तारीख का यह सिलसिला ?
इन खिलाड़ियों और कोच का कौन होगा कद्रदान
बस जारी होता सिर्फ तारीखों का फरमान
सरकार के साथ गुजरते गए साल
लेकिन न मान मिला न सम्मान
प्रदेश में वैसे तो महाराणा प्रताप का नाम आते ही सियासी संग्राम शुरू हो जाता है, लेकिन एक जगह ऐसी भी जहां पर महाराणा प्रताप से सरोकार नहीं है. बात कर रहे हम राजस्थान राज्य खेल परिषद की. तीन दशक पहले दो प्रतिष्ठित पुरस्कार शुरू हुए थे - खिलाड़ियों के लिए महाराणा प्रताप अवार्ड तो प्रशिक्षकों के लिए गुरु वशिष्ठ अवार्ड. लेकिन अब ये पुरस्कार तारीखों के मायाजाल में फंस कर रह गए हैं. परंपरा तो थी कि हर साल महाराणा प्रताप की जयंती पर ये अवार्ड दिए जाते, लेकिन सरकार के साथ साल बदलते गए और परंपराए धराशायी हो गई. पहले राजभवन में पुरस्कार सम्मान होता था, लेकिन बाद में आयोजन राजभवन से बाहर होने लगा. स्थिति यह हो गई कि सरकार को जब समय मिला, तब पुरस्कार दिए गए, लेकिन पिछले छह साल से तो ये पुरस्कार बंद ही हो गए. 2018 में तत्कालीन भाजपा सरकार के समय 24 सितंबर 2018 को आखिरी बार पुरस्कार दिए गए. तब खेल मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर थे. उन्होंने भी तब बैकलॉग खत्म किया था और सात साल के अवार्ड एक साथ दिए थे. अब तो हद ही हो गई. छह साल से खिलाड़ियों से सिर्फ आवेदन लिए जा रहे हैं और तारीख दी जा रही है. विभाग में अब तेज तर्रार अफसर नीरज के पवन आए हैं और उन्होंने दावा किया है कि अवार्ड जल्द दिए जाएंगे.
पदक विजेताओं व कोचों को बिसराया खेल परिषद ने
6 साल से नहीं दिए जा रहे प्रदेश में खेल पुरस्कार
खिलाड़ी इंतजार कर रहे महाराणा प्रताप अवार्ड के लिए
तो प्रदेश के प्रशिक्षकों को गुरु वशिष्ठ अवार्ड का इंतजार
वसुंधरा सरकार के समय 24 सितंबर 2018 को दिए थे अवार्ड
गहलोत सरकार में एक बार भी नहीं दे सके खेल अवार्ड
वर्ष 2018-19, 2019-20 व 2020-21, 2021-22 के अवार्ड चल रहे बकाया
वर्ष 2022-23 और 2023-24 के अवार्ड भी नहीं दिए गए अब तक
खेल परिषद के रवैये से गिरती जा रही अवार्ड की गरिमा
भजनलाल सरकार में भी हो रहा इन अवार्ड का इंतजार
नीरज पवन को आए तो जुमे जुमे चार दिन हुए है और उन्होंने भरोसा भी दिलाया है कि खिलाड़ी व कोच निराश नहीं होंगे, लेकिन इस खेल परिषद का इतिहास खिलाड़ियों व कोचों के प्रति अवार्ड के मामले में दागदार ही रहा है. जब अवार्ड दिए जाते थे, तो चयन पर सवाल खड़े होते थे और अब तो लगता कि खेल परिषद ने शायद प्रदेश के पदक विजेता खिलाड़ियों व उनको तैयार करने वाले कोचों को बिसरा दिया है. भले ही पिछले छह साल में खेल परिषद ने खेल से जुड़े कई अहम फैसले किए हो, लेकिन वह प्रदेश के प्रतिष्ठित खेल पुरस्कार देने में विभाग पूरी तरह फेल साबित हुई है. परिषद द्वारा अवार्ड के लिए आवेदन मांग लिए जाते है, सरकार अवार्ड की राशि भी बढ़ा देती है, लेकिन अवार्ड नहीं दिए जाते. वर्ष 2018-19 के लिए 27 कोच ने गुरु वशिष्ठ अवार्ड के लिए आवेदन किया था, तो 66 खिलाड़ियों ने प्रताप अवार्ड की दावेदारी जताई थी. इसी तरह 2019-20 में वशिष्ठ अवार्ड के लिए 39 व प्रताप अवार्ड के लिए 113 आवेदन आए. खेल परिषद ने दो साल के अवार्ड दिए नहीं और तीसरे वर्ष यानि 2020-21 के लिए भी दो बार आवेदन मांग लिए. लेकिन विभाग के बेरुखी के कारण आवेदन भी कम ही आए. वशिष्ठ अवार्ड के लिए महज 13 व प्रताप अवार्ड के लिए सिर्फ 24 आवेदन आए.
2018-19 के लिए 27 कोच ने गुरु वशिष्ठ अवार्ड के लिए आवेदन किया था
66 खिलाड़ियों ने प्रताप अवार्ड की दावेदारी जताई थी
2019-20 में वशिष्ठ अवार्ड के लिए 39 व प्रताप अवार्ड के लिए 113 आवेदन आए
2020-21 के लिए वशिष्ठ अवार्ड के लिए महज 13 आवेदन आए
प्रताप अवार्ड के लिए सिर्फ 24 आवेदन आए
विभाग के बेरुखी के कारण आवेदन भी अब कम आने लगे हैं
अवार्ड के लिए औपचारिकता के तौर पर मांगे जाते है बार-बार आवेदन
जब खिलाड़ियों को खेल पुरस्कार नहीं मिलते, तो उनकी निराशा स्वाभाविक है. उनकी मेहनत, समर्पण और वर्षों की कठिन मेहनत के बावजूद, पुरस्कार की कमी उन्हें मायूस कर सकती है. ये पुरस्कार उनके प्रयासों की मान्यता का प्रतीक होते हैं, और जब यह नहीं मिलता, तो उनकी मेहनत की सराहना की कमी महसूस होती है. इसके अलावा, पुरस्कार मिलने से उन्हें प्रेरणा मिलती है और आत्मविश्वास भी बढ़ता है. यह पुरस्कार उनके प्रयासों का सम्मान होता है और इससे उन्हें आत्मविश्वास और प्रेरणा मिलती है. पुरस्कार की कमी से उन्हें लगता है कि उनकी मेहनत को सही मूल्य नहीं मिला. राजस्थान की खेल परिषद के लिए यह कलंक जैसा ही है कि वह छह साल में एक बार भी खेल अवार्ड नहीं दे सकी, जबकि आवेदनों पर अब मिट्टी सी जमने लगी है.