जयपुरः आरएसएस के विराट वटवृक्ष बनने का सफर आसान नहीं था. कई अवरोध आए लेकिन संघ को आगे बढ़ने से कोई नही रोक नहीं सका. संघ कैसे बना और कैसे आगे बढ़ा ये सफर शानदार रहा. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक संगठन है. देश की आजादी से पहले 1925को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की औपचारिक स्थापना बमुश्किल एक दर्जन स्वयंसेवकों ने मिलकर की थी और गवाह बना था नागपुर का मोहिते बाडा और वो दिन था विजयादशमी. आर एस एस के निर्माण और स्थापना से जुड़ी कई ऐसी अनसुनी बातें और स्मृतियाँ है जिनके बारे में लोग कम ही जानते है.
"नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे"
त्वया हिंदुभूमे सुखं वर्धितोहम.
"महामंगले पुणयेभूमे त्वदर्थे"
पतत्वेष काया नमस्ते नमस्ते.
आज हम लोग संघ प्रारंभ कर रहे है" साल 1925 में इन्हीं शब्दों के साथ डॉक्टर केशवराम बलिराम हेडगेवार ने अपने तकरीबन 15मित्रों के सामने नागपुर के मोहिते बाड़े में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की थी. हेडगेवार की सोच दूरगामी थी और अर्जुन की तरह लक्ष्य अड़िग था.
---जहां कभी भूतों का वास वहां संघ स्थापना !
1907के आसपास नागपुर का मोहिते बाड़े अच्छे हालात में था, कभी सालूबाई मोहिते यहां सरदारी ठाठ बाठ से रहती थी. सालूबाई के बाद यहां मोहिते बाड़े का हाल खस्ता हो गया, डॉ खानखोजे,भाऊजी कावरे जैसे सशस्त्र क्रांतिकारियों की बैठकें यहां होती थी. जब संघ स्थापना के लिये उपयुक्त स्थान की खोज करते डॉ हेडगेवार की नजर इस पर पड़ी तो कावरे ने कहा नागपुर के लोगों के मन में यह भाव आ गया है कि सालूबाई के निधन के बाद मोहिते बाड़े भूतों के हवाले हो गया, अब यह विरासत मेरे पास है, निड़र हेडगेवार ने तुरंत हा कर दी और जुट गये स्वयंसेवकों के साथ मोहिते बाड़े को ठीक करने में. भूतों का बाड़ा बन गया संघ स्थान. यहीं पर 1925 में विजयादशमी के दिन संघ स्थापित हुआ. इस स्थान को लेकर न्यायिक विवाद भी था, जब गुरु गोलवलकर संघ प्रमुख बने थे तब साल 1941में 12हजार रुपये देकर मोहिते बाड़े का परिसर संघ ने खरीद लिया, क्योंकि संघ का इस स्थान से भावनात्मक लगाव था.
--राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही नाम क्यों ?
संघ का क्या नाम रखा जाये इसके लिये डॉ हेडगेवार ने कोर टीम की एक बैठक बुलाई. कई नाम आये उनमें से तीन नामों पर वोटिंग हुई यह तीन नाम थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ,जरीपाटका मंडल और भारतोद्धारक मंडल, 26वोटर्स में से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम को सर्वाधिक मत मिले, फिर क्या तय हो गया आर एस एस.
---कांग्रेस से प्रभावित आर एस एस!
इंडियन नेशनल कांग्रेस का नेशनल शब्द का मराठी में पर्यायवाची है राष्ट्रीय .डॉ हेडगेवार ने स्वयंसेवको से कहा कांग्रेस ने आजादी आंदोलन का राष्ट्रीय कार्य हाथ में लिया है ,हम भी राष्ट्रीय कार्य करेंगे, आर एस एस के प्रथम अक्षरों की नींव यूं पड़ी. कांग्रेस के अधिवेशनों में स्वयंसेवकों के जिम्मे व्यवस्थाएं होती थी, खुड हेडगेवार ने कांग्रेस में रहते हुये यह कार्य किया था लिहाजा यहीं से दूसरा शब्द आविष्कर हुआ स्वयंसेवक.जानबूझकर हिंदू स्वयंसेवक संघ नाम नहीं रखा गया.
---संघ का गणवेश
1920में नागपुर कांग्रेस अधिवेशन के समय हेडगेवार और परांजपे ने भारत सेवक समाज नामक दल बनाया और इससे जुड़े स्वयंसेवकों अधिवेशन की व्यवस्थाओं को संभाला ,इन स्वयंसेवकों का गणवेश था खाकी निक्कर,खाकी शर्ट और दो बटन लगी हुई खाकी टोपी. आगे चलकर इसमें गणवेश में बदलाव हुये कमर में डेढ़ इंच चौड़ा चमडे का पट्टा,पैर में ऊंचे काले चमडे के जूते,एड़ी से घुटने तक लपेटे जाने वाली खाकी रंग की पतली पट्टी,खाकी शर्ट को दोनों कंधो पर गर्दन तक पहुंचने वाली गणवेश में होती थी, वैसे ही कपड़े की पट्टी हुआ करती थी इस पर पीतल के अंग्रेजी शब्दों में RSS लिखा अंकित था. यह गणवेश 1941तक बना रहा है. आगे चलकर राजस्थान के नागौर से हाफ पेंट के स्थान पर फुल पैंट आ गई और चमड़े के पट्टे में बदलाव हुआ.
--संघ निर्माण में किसकी भूमिका
भाऊ जी कावरे ,अण्णाजी खोत,डॉ परांजपे,डॉ मुंजे,सावलापुरकर,अण्णा सोहनी,बालाजी हुद्दार,रघुनाथ राव बांडे,मार्तंडराव जोग,उपासनी,कृष्णराव लांबे,बापूराव आंबर्डेकर,आप्पा जी जोशी,विश्वनाथ केलकर,कृष्णराव मोहरिल,तात्याजी कालीकर,बापूराव मुठाल,बाबा साहेब कोलते,चांदा के देवईकर जैसे राष्ट्रभक्तों का डॉ हेडगेवार को साथ और योगदान मिला.
--सरसंघचालक प्रणाम एक दो तीन
सरसंघचालक शब्द की नवंबर 1929में एक बैठक में हुई, आप्पा जी जोशी के मन में विचार आया, सूचना शब्दों में खनखनाती आवाज में कहा "सरसंघचालक प्रणाम एक, दो और तीन. इसके बाद हेडगेवार को सरसंघचालक कहा गया ,वो उस वक्त चालीस वर्ष के थे.
--गुरुपूर्णिमा और भगवा ध्वज
यह बात खास है कि डॉ हेडगेवार के पास संघ को चलाने के लिये पैसे नहीं थे ,ना ही वो स्वयंसेवकों से पैसे लेते थे.गुरुपूर्णिमा के सबसे एक दिन पहले हेडगेवार ने कहा "कल गुरु पूजन का उत्सव है आप पुष्प और यथोचित दक्षिणा लेकर आये. गुरुपूर्णिमा को शाखा लगी और भगवा ध्वज फहराया गया,ध्वज को ही गुरु मानकर दक्षिणा अर्पित की गई. आज भी संघ स्थान पर प्रतिदिन ध्वज फहराया जाता है और गुरु पूर्णिमा के दिन दक्षिणा अर्पित की जाती है. संघ सालभर में छह उत्सव मनाता है.विजयादशमी,रक्षाबंधन,गुरुपूर्णिमा,नववर्ष प्रतिपदा , शिवराज्याभिषेक और मकर संक्रांति.
--ईसाई ने सिखाया संघ को घोष वादन
1928को विजयादशमी के दिन हेडगेवार ने तय किया कि 500स्वयंसेवकों का पथ संचलन निकले लेकिन इसकी शोभा बढती घोष वादन से लिहाजा घोष विभाग की रचना हुई सेना में काम कर चुके इसाई भारतीय मार्तंडराव जोग के मार्गदर्शन में स्वयंसेवकों ने घोष विद्या सीखी.
--विट्ठल भाई पटेल और पंडित मालवीय
आर एस एस की शाखा देखने वाले पहले बडे़ कांग्रेस के नेता विट्ठल भाई पटेल थे. मदन मोहन मालवीय भी मोहिते बाड़े आये थे. ऐसा कहते है दोनों तब संघ निर्माण के लिये अपनी ओर से भेंट दी थी.
--गांधी जी और संघ
महात्मा गांधी और आर एस एस को लेकर कई तरह की बातें है.सच यह है कि वर्धा में गांधी जी के सत्याग्रह शिविर के सामने संघ ने अपना शीतकालीन शिविर लगाया, संयोग से गांधी जी शिविर में आये. 1500स्वयंसेवकों ने उन्हें मान वंदना दी थी. कहा जाता है कि गांधी जी और संघ के संस्थापक हेडगेवार के बीच यह पहली और अंतिम मुलाकात थी.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आज विराट वट वृक्ष है, आजादी से और अब तक कई उतार चढ़ाव देखे गणतंत्र दिवस की परेड़ में भाग लिया तो कई दफा प्रतिबंधों को झेला. आज हालात बदले है संघ के कार्यक्रमों में भाग लेते वक्त विदेशी राष्ट्रों के प्रतिनिधि गौरव अनुभव कर रहे है. नागपुर में विजयादशमी के पर्व पर बोलते हुए आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिन्दू भूमि का कण कण हो अब, शक्ति का अवतार उठे, जल थल से अम्बर से फिर, हिन्दू की जय जयकार उठे, जग जननी का जयकार उठे ...भारत माता की जय.