सत्ता के द्वार के किले में पंजे की कमजोर होती पकड़, मेवाड़-वागड़ अंचल में कांग्रेस की खिसकी जमीन

रिपोर्टर- दिनेश डांगी

जयपुरः राजस्थान में सत्ता का द्वार मेवाड़-वागड़ अंचल में कांग्रेस के हाथ की पकड़ अब सियासी तौर पर लगातार ढीली होती जा रही है. आलम यह है कि भीलवाड़ा,राजसमंद और चितौड़गढ़ जैसे जिलों में तो विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला. दरअसल लगातार कमजोर होती लीडरशिप के चलते इस अंचल में कांग्रेस की जमीन दरकती गई. 

मरुभूमि की सियासत के अतीत में एक ऐसा दौर था जब मेवाड़ और वागड़ अंचल कांग्रेस का मजबूत गढ़ हुआ करता था. आधुनिक राजस्थान के निर्माता औऱ राजस्थान के सबसे लंबे वक्त तक सीएम रहे मोहनलाल सुखाड़िया यहीं से आते थे. इसके अलावा भीखा भाई,हीरालाल देवपुरा,हरिदेव जोशी और गुलाब सिंह शक्तावत जैसे दिग्गज नेताओं की फौज भी हुआ करती थी. फिर गिरिजा व्यास,सीपी जोशी औऱ महेंद्रजीत सिंह मालवीय ने पार्टी को आगे बढ़ाया. वक्त बदला और मेवाड़ और वागड़ अंचल की सियासी फिजां बदल गई. 

संघ,गुलाबचंद कटारिया,हिंदुत्व,मोदी करिश्मा औऱ गुजरात के पड़ोस में होने जैसे कईं कारणों के चलते कांग्रेस पिछड़ती गई. 
मौजूदा लीडरशिप में गिरिजा व्यास उम्रदराज हो गई
सीपी जोशी चुनाव हारने से कमजोर हो गए. 
महेन्द्रजीत सिंह मालवीय भाजपा में चले गए
बाप पार्टी ने आदिवासी वोट बैंक में सेंध लगा दी..
वनवासी कल्याण परिषद ने भी बीजेपी के लिए अच्छा काम किया

राजस्थान की सियासत में यह बात जगजाहिर है कि जिसने मेवाड़ के किले के साथ वागड़ जीता है, उसी ने सत्ता की दहलीज का सियासी सफर तय किया है. क्योंकि मेवाड़ और वागड़ अचंल में टोटल 32 निर्णायक सीटें आती है. सात  जिलें प्रतापगढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़, उदयपुर, चितौड़, राजसमंद और भीलवाड़ा जिले इनमें आते हैं. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बहुत कमजोर परफोर्मेंस रही थी. चितौड़,भीलवाड़ा और राजसमंद में तो कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया था. दरअसल कांग्रेस ने यहां मौजूदा दौर में मजबूत लीडरशिप को प्रतिनिधित्व नहीं दिया. जिसके चलते नेताओं का यहां अकाल पड़ता गया. रघुवीर मीणा और ताराचंद भगोरा को जरुर मौके दिए लेकिन जनता ने उनको लगातार हार का मुंह दिखा दिया. 

इन्ही परिस्थितियों के बीच बाप पार्टी औऱ राजकुमार रोत के उदभव ने कांग्रेस को और कमजोर कर दिया. जबकि आदिवासी मतदाता कभी वागड़ में कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक हुआ करता था. लेकिन नो डाउट बाप पार्टी ने जबरदस्त उसमें सेंध लगाई है. वागड़ में कांग्रेस ने सारी पावर मालवीय को दे रखी थी. लेकिन मालवीय के चले जाने से बड़ा डेंट लगा. अब गौर करने वाली बात है कि कांग्रेस इस क्षेत्र में फिर से खड़ा होने के लिए क्या जतन करती है औऱ किस तरह नई मजबूत लीडरशिप को डेवलप करती है.