VIDEO: भ्रष्टाचार की "अमरबेल" के सफाए के लिए फाइलों के क्वालिटी डिस्पोजल पर फोकस जरूरी, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: पिछले दिनों जेडीए में एक ही जोन के छह कार्मिकों को रिश्वत लेने के मामले में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने गिरफ्तार किया था. इस एसीबी एक्शन के बाद जेडीए ही नहीं बल्कि प्रदेश भर के नगरीय निकायों को लेकर एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि आखिर इनकी दागदार होती छवि को कैसे सुधारा जाए? किस तरह कई निकायों में तेजी से पनप रही भ्रष्टाचार की "अमरबेल" का खात्मा किया जा सकता है? 

जेडीए के जोन 9 में कृषि भूमि के भू रूपांतरण के लिए रिश्वत लेने के मामले भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने छह अधिकारी व कर्मचारियों को गिरफ्तार किया था. लेकिन ये हालात अकेले जेडीए के नहीं बल्कि प्रदेश के अन्य विकास प्राधिकरण,नगर सुधार न्यास,नगर निगम,नगर परिषद और नगरपालिकाओं के भी हैं. इनमें से कई निकायों में रिश्वत लेने के मामले में एसीबी की ओर से समय-समय पर कार्रवाई की गई है. एक अनुमान के मुताबिक पिछले एक साल में एसीबी ने इन निकायों में करीब दो दर्जन कार्रवाई की है. फाइलों को बेवजह अटकाने,भटकाने और उन पर कार्यवाही नहीं करने को लेकर इन निकायों की शिकायतें राज्य सरकार को भी मिलती रही है. शिकायत मिलने पर उच्च स्तर से आदेश के बाद उस निकाय के संबंधित अधिकारी-कर्मचारी को उस स्थान से हटा दिया जाता है. 

जेडीए में भी एसीबी एक्शन के बाद अधिकतर संवर्गों में अधिकारी-कर्मचारियों को एक जोन से दूसरे जोन में लगा दिया गया. प्रतिनियुक्ति पर आए कुछ अधिकारी-कर्मचारियों को उनके मूल विभाग रवाना कर दिया गया. लेकिन क्या निकायों के सिस्टम में फल फूल रही भ्रष्टाचार की "अमरबेल" के सफाए के लिए यह सब काफी है? किसी भी निकाय में एसीबी एक्शन के बाद कुछ दिन जरूर भ्रष्टाचार को लेकर सतर्कता की स्थिति रहती है. लेकिन मामला ठंडा पड़ते ही सिस्टम दुबारा अपनी पुरानी रंगत में लौट आता है. आपको सबसे पहले बताते हैं कि नगरीय निकायों में आवेदक अपने प्रकरण के निस्तारण के लिए आखिर क्यों रिश्वत देने के लिए मजबूर होता है?

-फाइल अटकने के डर से आवेदक संबंधित कार्मिक को रिश्वत देने के लिए मजबूर होता है
-ई फाईलिंग के राजकाज पोर्टल के कारण अधिकारी-कर्मचारियों पर समय पर फाइल निकालने का दबाव रहता है
-किसी भी निकाय में उच्च स्तर पर यहीं ध्यान रखा जाता है कि किसी कार्मिक का एवरेज डिस्पोजल टाइम क्या है
-राजकाज पोर्टल पर फाइलों के निस्तारण का एवजरेज डिस्पोजल टाइम क्या है
-इसके लिए कुछ निकायों में तो साप्ताहिक समीक्षा बैठक में आयोजित होती है
-लेकिन क्या फाइल का क्वालिटी डिस्पोजल किया गया? क्या फाइल पर सही और सटीक टिप्पणी की गई है?
-उसको लेकर किसी भी स्तर पर किसी प्रकार की कोई मॉनिटरिंग की नहीं होती है
-विशेषज्ञों के अनुसार इस सॉफ्टवेयर के चलते तय अवधि में कार्मिक अपने पास से फाइल तो भेज देता है
-लेकिन इसके बावजूद भी इन निकायों में फाइलें अटकाने के कई तरीके हैं
-फाइलों को अटकाने के लिए अधिकारी-कर्मचारी अनर्गल या बेवजह की टिप्पणी कर देते हैं
-फाइल में जानबूझकर अप्रासंगिक तथ्यों की कमी निकाली जाती है
- जिन फाइलों में पूरी तथ्यात्मक जानकारी और सभी दस्तावेज उपलब्ध होते हैं
-इसके बावजूद किसी दस्तावेज की कमी पूर्ति या तथ्य की जानकारी के लिए फाइल दूसरे कार्मिक को भेज दी जाती है
-किसी मामले में मौका मुआयना होने के बावजूद कुछ कमी निकालते हुए दुबारा मौका मुआयना की टिप्पणी कर दी जाती है
-कानून,नियम,लागू परिपत्र व आदेशों में स्पष्ट प्रावधान होने के बावजूद फाइल बेजवह विधिक राय के लिए निकाय की विधि शाखा को भेज दी जाती है
-इसी तरह किस प्रकरण में कितना शुल्क वसूला जाए,इसको लेकर भूमि निस्तारण नियम व अन्य नियमों में स्थिति स्पष्ट होती है
-इसके बावजूद फाइल को अटकाने और उसके निस्तारण में देरी करने के लिए उसे निकाय की वित्त शाखा को भेज दिया जाता है
-यहीं नहीं राज्य सरकार की ओर से विभिन्न मामलों को लेकर स्पष्ट आदेश और परिपत्र जारी किए गए हैं
-निकायों से संबंधित कानून और नियमों की भी स्पष्ट व्याख्या करते हुए सरकार की ओर से निकायों को कई बार मार्गदर्शन दिया गया है
-सब कुछ स्पष्ट होने के बावजूद निकाय के अधिकारी फाइल को भटकाने के लिए मामले में राज्य सरकार से मार्गदर्शन मांगते हैं 
-बार-बार बेवजह मार्गदर्शन मांगने से नाराज राज्य सरकार ने कई बार निकायों को कई बार चेतावनी भी दी है
-22 जून 2023 को भी सरकार ने आदेश जारी कर चेताया था कि बेवजह मार्गदर्शन मांगने वाले अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही होगी
-इससे पहले भी कई बार सरकार की ओर से ऐसे ही आदेश जारी किए गए हैं
-लेकिन इसके बावजूद फाइलों को बेजवह सरकार को भेजने का सिलसिला जारी है
-ऐसी तमाम कारगुजारियों के डर के चलते आवेदक को संबंधित अधिकारी-कर्मचारी की मिजाजपुर्सी करनी पड़ती है
-आवेदक को डर रहता है कि कहीं उसकी फाइल कार्मिकों के बीच "फुटबाल" बनकर अटक नहीं जाए
-नियमित निरीक्षण के प्रावधानों के बावजूद निकाय के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी जोन कार्यालयों व अन्य कार्यालयों का नियमित निरीक्षण नहीं करते हैं
-पिछले लम्बे समय से किसी जेडीए आयुक्त या सचिव ने जोन कार्यालय या विभिन्न शाखाओं के कार्यालयों का नियमित तौर पर निरीक्षण नहीं किया
-यहीं हाल दूसरे प्राधिकरण,नगर सुधार न्यास, नगर निगम,नगर परिषद व नगर पालिका का हैं
-नगर निगम आयुक्त जोन कार्यालयों का नियमित निरीक्षण नहीं करते हैं
-अधिकार होने के बावजूद जिला कलक्टर भी अपने जिले के सरकारी कार्यालयों का नियमित निरीक्षण नहीं करते हैं
-यह भी एक बड़ा कारण है निकाय के अधिकारी-कर्मचारियों की ओर से फाइल पर बेखौफ अनर्गल टिप्पणी करने का 

फाइल का निस्तारण जल्द हो जाए,बेवजह उसे अटकाया या भटकाया नहीं जाए, इसी आस में संबंधित आवेदक को फाइल के साथ "भोलाराम के जीव" की तरह भटकना पड़ता है. जहां जिस टेबल पर आवेदक को अनर्गल टिप्पणी किए जाने की आशंका रहती है,वहीं उसे अपनी जेब ढीली करनी पड़ती है. इन हालातों में किस तरह सुधार किया जाए, इसको लेकर फर्स्ट इंडिया न्यूज ने मामले के विशेषज्ञों से चर्चा की.आपको बताते हैं कि विशेषज्ञों के साथ मंथन के बाद ऐसा क्या सुझाव सामने आए, जिन्हें लागू कर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है. 

-फाइलों पर अनर्गल और बेवजह की टिप्पणी करने वाले अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है
-अगर नजीर के तौर पर ऐसे कुछ अधिकारी-कर्मचारियों पर सख्त कार्रवाई की जाए तो
-निकायों के दूसरे अधिकारी-कर्मचारियों में गलत टिप्पणी करने को लेकर खौफ रहेगा
-कार्रवाई के लिए ऐसे अधिकारी-कर्मचारियों की नियमित पहचान करने की जरूरत है
-इन कार्मिकों की पहचान के लिए निकाय में विभिन्न प्रकरणों की पेंडिंग चल रही फाइलों की रेंडमली चैकिंग की जानी चाहिए
-राजकाज पोर्टल पर इस तरह की रेंडमली चैकिंग किया जाना आसान है
-यह चैकिंग खुद निकाय के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी के स्तर पर की जा सकती है
-इसके लिए निकाय में लंबित कुछ फाइलों को हर हफ्ते रेंडमली चिन्हित कर उनमें दर्ज टिप्पणियों की जांच की जानी चाहिए
-इससे फाइलों पर गलत टिप्पणी करने वाले कार्मिकों की पहचान सामने आएगी
-व्यवस्था में सुधार के लिए निकाय के प्रमुख प्रशासनिक अधिकारी को विभिन्न जोन कार्यालयों का नियमित निरीक्षण करना चाहिए
-इस निरीक्षण में फाइलों की जांच का आवश्यक बिंदु जोड़ा जाना चाहिए
-यह देखा जाना चाहिए कि किसी फाइल के निस्तारण में अगर देरी की जा रही है तो क्या उसका कारण फाइल पर की गई कोई अनावश्यक टिप्पणी तो नहीं हैं
-इस तरह की टिप्पणी करने वाले कार्मिक के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए 
ऐसा नहीं हैं कि निकायों में लगे सभी अधिकारी-कर्मचारी दागदार सिस्टम का हिस्सा हैं. कई कार्मिक फाइलों का फास्ट और क्वालिटी डिस्पोजल कर रहे हैं. जरूरत है उन अधिकारी-कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जिनके कारण निकायों की छवि खराब हो रही है. ऐसे कार्मिकों की पहचान के लिए फाइलों की रेंडमली चैकिंग जरूरी है.