जयपुर: स्वच्छता रैंकिंग में जयपुर का नगर निगम ग्रेटर के पिछड़ने की एक बड़ी वजह यह भी है कि यहां के वार्डो में पार्षदों के कार्यालय तक नहीं हैं. मौजूदा बोर्ड को यहां भले ही दो साल का कार्यकाल हो रहा हैं. लेकिन डेढ सौ में से अब भी आधे से ज्यादा पार्षद अपने कार्यालयों का इंतजार कर रहे हैं. बड़ी बात तो यह भी है आम-जन के लिए लिए भी यह बड़ी परेशानी है कि वह आखिर अपने पार्षदों से मिलने कहां जाए.
स्वच्छता की रैकिंग में पिछड़ने के बाद अब इस बात का आकलन नगर निगम ग्रेटर भले ही करें या नहीं करें. लेकिन इसके पीछे ना जहां सफाई एक बड़ी वजह तो रही थी. लेकिन स्वच्छता रैंकिंग अच्छी नहीं आने का एक सबसे बड़ा कारण पार्षद कार्यालयों का नहीं होना भी है. मौजूदा बोर्ड के गठन हुए दो साल का कार्यकाल होने वाला है, लेकिन 150 में से 90 से ज्यादा वार्डों में आज भी पार्षद कार्यालयों का इंतजार है. यह हाल तो तब है जबकि पहले से ही 40 वार्डों में पार्षद कार्यालय बने हुए ग्रेटर नगर निगम को मिले थे. इस दो साल के कार्यकाल में महज 18 वार्ड कार्यालय ही बन पाए हैं. पार्षद कार्यालय वो स्थान है. जहां पार्षद बैठकर जनता की तकलीफ परेशानियां सुन सकता है. मगर ज्यादातर वार्डों में पार्षद कार्यालय ही नहीं बन पाए हैं, जिसकी वजह से पार्षदों को बैठने की जगह ही नहीं मिल पा रही है.
नगर निगम ग्रेटर में 90 से ज्यादा वार्डों में पार्षद कार्यालयों का इंतजार
मौजूदा बोर्ड केवल 18 कार्यालय ही बना पाया
30 पार्षदों ने नहीं दिया कार्यालय का प्रस्ताव
40 कार्यालय ग्रेटर नगर निगम को बने बनाए मिले
18 नए कार्यालय इस बोर्ड में बने हैं
8 का निर्माण कार्य चल रहा है
6 का वर्क आर्डर दिया जाना है
24 में या तो जमीन का विवाद है या जमीन मिली ही नहीं
18 में टेंडर लगे किए गए, लेकिन कोई नहीं आया
6 वार्डों में आज भी अनुमति का इंतजार है
30 पार्षदों ने कार्यालय का प्रस्ताव ही नहीं दिया
पार्षद कार्यालय नहीं होने के कारण पार्षद निजी जगहों पर बैठकर जनता की गुहार सुन रहे हैं. लेकिन इन जगहों का वार्ड के लोगों को पता नहीं है, जिसकी वजह से कई बार पार्षद को शिकायत करने के लिए ढूंढ़ना पड़ता है. फोन पर पार्षदों के कॉन्टेक्ट नहीं हो पाता है. यही वजह है कि पार्षद कई बार निगम को लिखकर दे चुके हैं, लेकिन उनके वार्डों में कार्यालय नहीं खुल पाए हैं. अगर पार्षदों को कार्यालय मिले तो इसमें वे नियमित रूप से सफाई की मॉनिटरिंग करके बैठकें आयोजित कर सकते हैं. एक जगह पर होने से लोगों की समस्याओं का हाथों-हाथ समाधान हो सके. जबकि पार्षद कार्यालयों में बाकायदा एक कर्मचारी को भी तैनात किया जाता था. इधर, महापौर शील धाभाई का कहना है कि कई पार्षदों द्वारा निगम को इस बारे में सूचित किया गया हैं. अब कार्यभार संभालने के बाद इसे लेकर भी वे खास तौर पर ध्यान देगी.
बरहाल, निगम ग्रेटर की तरह हैरिटेज में भी कमोबेश ऐसी ही स्थिति हैं. जयपुर में दोनो नगर निगम बनने के बाद से ही वार्ड 91 से बढकर 250 हो गए लेकिन इस अनुरूप सुविधा और संसाधनों की बढोतरी नहीं की जा सकी. पार्षदों के जरिए आम जन निगम तक अपनी समस्याएं पहुंचाते है. लेकिन जब पार्षद ही एक जगह नहीं मिलेंगे तो फिर समस्याएं सुनेगा कौन.?